आये दिन पत्रकार सुरक्षा के लिए सवाल उठाया जाता है और इस बाबत खबरें भी आती रहती हैं। सरकार से पत्रकार सुरक्षा की मांग हो रही है। छत्तीसगढ़ राज्य के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पत्रकार सुरक्षा के मामले में गंभीरता से विचार भी कर रहे हैं। यह बहुत ही अच्छी बात है जो मुख्यमंत्री जी पत्रकार की सुरक्षा को लेकर गंभीर हैं। पत्रकारों की सुरक्षा के लिए क़ानून बनना भी चाहिये लेकिन यहाँ पर यह सोचने वाली बात यह है कि आखिर पत्रकार कौन है?
पत्रकार वो है जो वास्तविकता में पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी जान जोख़िम में डालकर पत्रकारिता कर रहें हैं, या वे जो प्रेस क्लब की सदस्यता लेकर वहां बैठकर कैरम खेल रहे हैं। यहाँ तो कई ऐसे लोग हैं जो बीते समय में किसी अख़बार या मीडिया ग्रुप से जुड़े थे और उसी के माध्यम से प्रेस क्लब की सदस्यता ली थी। आज भले ही वे लोग उन मीडिया ग्रुपों से अलग हो चुके हैं लेकिन फिर भी अपने नाम के आगे ‘पत्रकार’ शब्द लगा रहे हैं। वही लोग आज पत्रकार संगठन के नाम पर चुकारा वसूली करते नजर आ जाएँगे। यहाँ पर यह सवाल है कि क्या उन पत्रकारों को सुरक्षा का लाभ मिलना चाहिए?
छत्तीसगढ़ राज्य में, विशेष रूप से राजधानी रायपुर से दूर ग्रामीण और नक्सल प्रभावित क्षेत्र में पत्रकारिता का कार्य करने वाले काफी लोग हैं। ये लोग वास्तविकता में छोटे या बड़े मीडिया समूह से जुड़कर ईमानदारी से जान जोखिम में डालकर खबरे पहुंचा रहे हैं। इन्हें हमेशा से नक्सलियों रसूखदार नेताओं और पुलिस से खबर छापने पर प्रताड़ित किया जाता रहा है। निडरता से सच्ची खबर लिखने के बाद भी जेल जाना पड़ा है। वास्तविकता में सुरक्षा ऐसे पत्रकारों को मिलनी चाहिए, न कि क्लब कल्चर में रमे पत्रकारों को!
छोटी मीडिया ग्रुपों से जुड़े ये पत्रकार शहर के क्लब कल्चर से दूर हैं। चौथ वसूली करने वाले बड़े-बड़े मंत्रियों के आगे पीछे घूमने वाले फर्जी पत्रकारों को मिलने वाली सुविधाओं से भी बहुत दूर हैं। यहाँ तो प्रेस क्लब का सदस्य बिना पत्रकारिता किये वो सब सुविधाएं पा रहा है जिसका वास्तविक अधिकार सही मायनो में पत्रकारिता करने वाले पत्रकार को रखना चाहिए।
पत्रकारों को मिलने वाली सुविधाएँ वास्तविक पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य करने वाले उस पत्रकार को नहीं मिलता क्योंकि यहाँ का दस्तूर ही उल्टा है। जो कभी किसी समय किसी समूह या मीडिया में काम कर के उन क्लबों और संगठनों की सदस्यता ली होगी, वह आज भी अपनी सदस्यता के दम पर फोकट में वह सब सुविधाएं ले रहे हैं जिनकी पात्रता वह अब नहीं रखते। यहाँ मज़े की बात तो ये है कि कई पत्रकार, जनसंपर्क विभाग के अधिमान्यता भी प्राप्त किये हुए हैं जो हर साल नवीनीकरण में काम छोड़े समूह से अधिमान्यता नवीनीकरण करवा लेते है!
उससे भी दुःखद बात यह है कि जो पिछली सरकार में पत्रकार अधिमान्यता समिति में काबिज थे वही अब भी वर्तमान सरकार में अधिमान्यता समिति में हैं! वही आलम विधानसभा पत्रकार समिति का है जहाँ वर्षों से मठाधीश जमे हुए हैं। ऐसे में जो जोख़िम भरे पत्रकारिता करने वाले पत्रकार हैं वे पत्रकार सुरक्षा से भी वंचित हो रहे हैं।
पत्रकार सुरक्षा ग्रामीण पत्रकारों, सुदूर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों को मिलना चाहिए। यहाँ प्रेस क्लब और मीडिया संगठन के नाम पर पिछली सरकार और मंत्रियों से बड़े-बड़े फंड वसूली किये जाते रहे हैं। जो सही पत्रकार हैं उन्हें इन क्लबों और समूहों की सदस्यता से भी वंचित रखा जाता रहा है, जहाँ चुनाव कराने के नाम पर अवैध वसूली होती है।
RTI से निकली जानकारी बता रही है कि इन क्लबों का पंजीयन ही अवैध है क्योंकि इन समूहों ने विधायकों मंत्रियों और सांसदों से मिलने वाले अनुदान राशि का कोई हिसाब ही नहीं दिया है। यानि जनता की गाढ़ी कमाई के टैक्स के पैसों को इन जनप्रतिनिधियों ने इन प्रेस क्लबों को खुश करने के लिए बाँटे, उसका कोई हिसाब किताब ही नहीं। फ़िर भी ये क्लब चल रहे हैं। कई शिकायत होने के बाद भी कार्यवाही नहीं हो रही हैं और अब पत्रकार सुरक्षा माँग रहे हैं।