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अमर उजाला के पत्रकार की घटिया हरकत, राष्ट्रीय सेमिनार को निजी कार्यक्रम बता छापने से किया इनकार

कार्यक्रम के आयोजक ने पत्रकार की नीच हरकत के कारण अमर उजाला के नाम खुला पत्र जारी किया… पढ़ें…

सेवा में,

श्रद्धेय राजेन्द्र त्रिपाठी जी,
स्थानीय संपादक, अमर उजाला,
वाराणसी, उत्तर प्रदेश।

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मान्यवर,

आत्मीय पीड़ा के साथ आप को अवगत कराना है कि जिस अमर उजाला की जनपक्षधरता की मिसाल दी जाती है, उसकी खबरों के चयन को आदर्श स्वरूप में माना गया है। उसका आजमगढ़ ब्यूरो कार्यालय इन दिनों जनसंवाद और जन आवाज बनने की बजाय शातिर और अपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का अड्डा बन चुका है। जो बाकायदा किसी के विरूद्ध तथ्यहीन समाचार और चरित्रहनन का घातक व्यापार करने में संलग्न है। ये न केवल ऐसे कदाचरण में संलग्न हैं बल्कि किसी के मानमर्दन में अपराधिक वृत्ति की हद तक चले जाते हैं, जो पत्रकारिता के पवित्र धर्म के विरूद्ध है। हमारे द्वारा जब ये बाते कही जा रही है तो हमारा उद्देश्य अमर उजाला के सम्मान और प्रतिष्ठा पर सवाल खडा करना नहीं है। बल्कि एक जनपद के ब्यूरो कार्यालय की कार्य संस्कृति को संस्थान के सक्षम प्राधिकारी तक पहुँचाना है। क्योंकि मैं स्वयं दस साल पहले इसका हिस्सा रहा हूँ और हमारे समय में श्री तीरविजय सिंह, श्री अकु श्रीवास्तव स्थानीय संपादक तथा हेमंत श्रीवास्तव ब्यूरो प्रभारी आजमगढ़ हुआ करते थे तथा मैं स्वयं एक आंचलिक संवाददाता था।

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महोदय, हम किस दौर में जी रहे हैं जहां एक पत्रकार और एक शातिर अपराधी में हमें फर्क करने में भी मुश्किल होने लगी है। जहां ब्यूरो का प्रमुख और उसके एक सहयोगी जनपद के सभी कार्यालयों में लगभग रोजाना चक्कर लगाते देखे जाते हैं। जिस ब्यूरो प्रमुख की गरिमा हमने पूर्व में देखी और सुनी है वह गिरते-गिरते इतना गिर सकता है कि अब कार्यालय-कार्यालय चक्कर लगाना पड़े। क्यों, यह बताने की जरूरत नहीं है। कारण कम से कम समाचार तो नहीं ही होगा। क्योंकि ऐसा होता तो वह अगले दिन अखबार में दिखता जरूर।

महोदय, हाल-फिलहाल के घटनाक्रम पर यदि गौर करें तो आप को अंदाजा हो जाएगा कि अमर उजाला की छवि धूमिल करने और उसका जनविश्वास घटाने में घातक और कुत्सित प्रयास किये गये हैं। जिस ‘मीडिया समग्र मंथन-2018’ की तैयारी हमने लगभग तीन माह से निरंतर श्रमसाध्य कार्य समझ रातों दिन एक किया। जिसके आयोजन की सूचना स्वयं दूसरे अखबारों सहित अमर उजाला ब्यूरो ने प्रकाशित किया, परंतु जब आयोजन हुआ तब उसने इसे कवर नहीं किया। पूछने पर जवाब देते हैं कि ‘यह एक निजी कार्यक्रम था’ जबकि यह राष्ट्रीय स्तर का दो दिवसीय आयोजन (7-8 अप्रैल) था। और इस आयोजन में पत्रकार श्री पुण्य प्रसून बाजपेयी (दिल्ली), श्री प्रकाश सिंह (पूर्व डीजीपी), श्री जयशंकर गुप्त (दिल्ली), श्री विजयनारायण (वाराणसी), श्री यशवंत सिंह (दिल्ली), श्री अखिलेश अखिल (दिल्ली), श्री प्रशांत राजावत (दिल्ली), श्री गोपाल नारसन (रूड़की), श्री अमन त्यागी (नजीबाबाद), श्री गोपालजी राय (सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय), श्री अनामी शरण बबल (दिल्ली), श्री गिरीश पंकज (रायपुर), श्री अतुल मोहन सिंह (अमर उजाला, लखनऊ), श्री बीरेंद्र पुष्पक (अमर उजाला, बिजनौर) तथा साहित्यकारों में प्रो० देवराज (महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्विद्यालय, वर्धा), प्रो० ऋषभदेव शर्मा (दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद), डा० योगेंद्रनाथ शर्मा अरूण (रूडकी) आदि उपस्थित थे।

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जबकि ठीक इसी समय दूसरे अखबारों ने न केवल इस राष्ट्रीय आयोजन को कवर किया बल्कि प्रतिभाग भी किया। ऐसे समय में अमर उजाला ब्यूरो आजमगढ द्वारा इस राष्ट्रीय संवाद के विषयों को कवर न करना उनके अखबार की नीति हो सकती है लेकिन यह किसने अधिकार दे दिया कि अमर उजाला के आजमगढ ब्यूरो प्रभारी पत्रकारिता की इस सार्वजनिक राष्ट्रीय बहस को एक निजी कार्यक्रम बताकर दुष्प्रचार करें, जबकि इसी कार्यक्रम की सूचना (समाचार) अमर उजाला 28 फरवरी को प्रकाशित करता है। बाद में इसी कार्यक्रम को अमर उजाला के आजमगढ जिला प्रभारी निजी कह देते हैं, आखिर इस प्रपंच के पीछे उनकी मंशा क्या है? मेरी समझ से परे है।

आदरणीय त्रिपाठी जी! बात इतनी भर नहीं है। जब हमने आप से दूरभाष पर बात की तब भी मैंने समाचार छपने या ना छपने का कोई मलाल नहीं किया। जबकि आप ने मुझे आश्वस्त किया था कि ‘मैं देखता हूँ और अगर कार्यक्रम के पहले इसकी सूचना आप तक पहुंच गयी होती तो आप इसे पूरी तरह से कवरेज के लिए गाइडलाइन ब्यूरो आजमगढ़ भेज दिए होते।‘ यह आप की सहजता और पत्रकारिता के प्रति प्रतिबद्धता को दिखाता है। आप ने लोक गायिका चंदन तिवारी के आजमगढ़ आगमन पर भी कवरेज कराने की बात की, यह आप की लोक के प्रति प्रेम और जिम्मेदारी का भाव प्रकट करता है।

ऐसे समय में आप का ब्यूरो आजमगढ़ किस कुंभकर्णी निद्रा में सो रहा था यह आप के संस्थान का निजी मामला था और है भी। लेकिन इन दो दिनों में आप के ब्यूरो प्रभारी श्री संदीप सौरभ सिंह की साजिश और इसका हिस्सेदार कार्यालय सहायक श्री अंबुज राय ने मीडिया समग्र मंथन के राष्ट्रीय आयोजन को कवरेज ना देने से राष्ट्रीय स्तर पर हुई अमर उजाला ब्यूरो आजमगढ़ की किरकिरी और निंदा से आहत होकर आयोजक के विरूद्ध अपराधिक साजिश रची। आयोजक शार्प रिपोर्टर और उसके संपादक के खिलाफ कार्यक्रम के नाम पर धन उगाही करने का मामला बनाने की असफल कोशिश की। इस कोशिश में ये दोनों पत्रकार इतने पतित और नीचे गिर गये कि ‘एक अधिकारी को यह बयान देने के लिए उकसाने लगे कि शार्प रिपोर्टर ने उनसे जबरन चंदा मांगा, विग्यापन मांगा और नहीं देने पर उन अधिकारी को देख लेने की धमकी दी।‘ और इस आशय का दुष्प्रचार सोशल मीडिया पर शार्प रिपोर्टर और उसके संपादक की बदनामी के लिए किया गया। लेकिन मान्यवर सांच को आंच नहीं होता है। और शार्प रिपोर्टर ने अपना दस साल सार्थक पत्रकारिता में उसूलों के आधार पर पूरे किए हैं। उसे अपने शब्दों और उद्देश्यों पर पूरा भरोसा है।

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आप के ब्यूरो कार्यालय और इसके प्रभारी तथा सहायक को इस कुत्सित प्रयास में भी मुँह की खानी पड़ी क्योंकि उक्त अधिकारी ने ऐसा कुछ भी नहीं बोला जिसे ये लोग सुनना और रिकार्ड कराना चाहते थे। हाँ इस रिकार्डेड आडियो में विज्ञापन की जरूर बात है जिसे मांगने कोई व्यक्ति आया था। लेकिन इस आडियो में न तो शार्प रिपोर्टर का जिक्र है और न ही इसके संपादक का। बावजूद इस आडियो के आधार पर उक्त लोगों ने कई वाट्सएप समूह में अरविंद कुमार सिंह और मीडिया समग्र मंथन को धन उगाही करने का आरोप लगाकर मेरा चरित्रहनन का कदाचरण किया है। मेरी व्यक्तिगत साख और प्रतिष्ठा को आघात पहुँचाने की कोशिश की है।


महोदय। एक बात बहुत गंभीरता पूर्वक कहना है कि इतने बड़े आयोजन के लिए हमने निश्चित रूप से लोगों से मदद ली, लेकिन किसी से धन उगाही नहीं किया। जनपद के तत्कालीन जिलाधिकारी ने अपने मातहत अनेक अधिकारियों से इस आयोजन में मदद हेतु विज्ञापन देने का लिखित आदेश दिया था। आयुक्त ने मंडल स्तर के अधिकारियों को भी मदद करने का आदेश दिया था। लोगों ने मदद की भी और एक राष्ट्रीय स्तर का दो दिवसीय आयोजन सफलता पूर्वक संपन्न हुआ। सहयोग और विज्ञापन लेना प्रकाशन का अधिकार है और उसे लगभग सभी अपनाते हैं। लेकिन जिस वायरल आडियो के जरिए संपादक के चरित्रहनन की कोशिश की है दरअसल उसमें कुछ ऐसा आपत्तिजनक है ही नहीं। नाम और संस्थान तक का उल्लेख नहीं है फिर उसके आधार पर किसी का मानमर्दन करना, ना केवल नैतिक अपराध है बल्कि अपराधिक कृत्‍य मानहानि भी है। जिसे आप के ब्यूरो के दो व्यक्तियों ने अपनी खीझ मिटाने के लिए किया है। इनके इस कृत्य से हमारी और शार्प रिपोर्टर की साख और प्रतिष्ठा पर गहरा आघात पहुँचा है। जिसके लिए वैधानिक रूप से दोनों लोग दोषी हैं।

उक्त लोगों के इस कुकृत्य पर राष्ट्री स्तर पर प्रति‍ष्ठत व्यक्तियों की नजर में हमारी और हमारे संस्थान की प्रतिष्ठा जो दशकों में स्थापित हुई है वह धूमिल हुई है। जिससे मुझे सामाजिक व मानसिक आघात पहुंचा है।

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भवदीय

अरविन्द कुमार सिंह

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संपादक- शार्प रिपोर्टर

आजमगढ़

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संपर्क : [email protected]

 

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प्रतिलिपि निम्नलिखित को सूचनार्थ एवं कार्यवाही हेतु प्रेषित

1. प्रबंध निदेशक (श्री राजुल माहेश्वरी) अमर उजाला पब्लिकेशन, नोएडा (उप्र)

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2. डॉ इंदुशेखर पंचोली, समूह संपादक, अमर उजाला, नोएडा (उप्र)

3. अध्यक्ष, भारतीय प्रेस परिषद नई दिल्ली

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4. पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश, लखनऊ

संलग्नक

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1. आडियो रिकार्ड

2. व्हाटसएप स्क्रीन शाट

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