प्रेस क्लब के इस साल के चुनाव के मुद्दे भ्रष्टाचार और तानाशाही हैं। पिछले दस साल से जो समूह इस क्लब पर काबिज है, उसने इसे मनमाने ढंग से चलाया है, और जिसने उसके खिलाफ आवाज उठाई, उसे क्लब से बाहर कर दिया गया या निलंबित कर दिया गया है या फिर उसे नोटिस थमाकर चुप कराने की कोशिश की गई।
करीब आधा दर्जन पत्रकार इस तानाशाही के शिकार हुए हैं। वर्तमान प्रबंध कमिटी ने तो उस समय इतिहास रच दिया जब इसने अपने खजांची को एक महीने के लिए इस कारण निलंबित कर दिया क्योंकि उसने क्लब से पांच लाख रुपए नकद के गबन की पुलिस जांच की मांग की। खजांची ने जांच के दौरान इतनी गड़बड़िया पाई कि उसने क्लब के पूरे अकाउंट्स की फोरेंसिक जांच की मांग कर डाली।
इसी तरह प्रबंध कमिटी ने संतोष ठाकुर को कारण बताओ नोटिस थमा दिया जब उन्होंने भी पांच लाख रुपए के गबन की पुलिस जांच की मांग की। एक पत्रकार सदस्य को क्लब प्रबंधन ने इस लिए नोटिस थमा दिया क्योंकि उसने कल्ब के बारे में सोशल मीडिया पर कुछ लिखा।
इसके अलावा क्लब अनिता चौधरी, चंदन यादव और यशवंत सिंह को क्लब से बाहर कर दिया क्योंकि उन्होंने क्लब के बारे में सोशल मीडिया पर लिखा।
तीन महीने पहले क्लब प्रबंधन ने निर्निमेष कुमार को क्लब से बाहर कर दिया क्योंकि उन्होंने सरकारी फंड से खरीदी गई 32 लाख रुपए की जिम मशीन को 20 हजार रूपए में बेचने का मुद्दा उठाया और क्लब के परिसर से रेलवे में नौकरी देने के नाम पर बीसियों लोगों से लाखों रुपए के ठगी का मामला उठाया।
इस मामले में क्लब का कर्मचारी गिरफ्तार हुआ, और जब वह जेल से वापस आया तो क्लब प्रबंधन उसे नौकरी पे वापस ले लिया।
इस चार पैनल चुनाव मैदान में हैं। लेकिन दो पैनल अधूरा है। पूरा पैनल केवल विनय-लखेड़ा का और संजय बसाक-पल्लवी घोष का है। तीसरा पैनल रास बिहारी-संदीप ठाकुर का है। चौथे पैनल में केवल कुछ लोग अधिकारी पद पर लड़ रहे हैं। संजय बसाक-पल्लवी घोष पैनल के पक्ष में हवा है। इस पैनल के जीतने के चांसेज ज़्यादा हैं। चुनाव इक्कीस मई को है।