आधी रात कैन्टीन का ताला तोड़ समान लूट ले गये प्रबन्ध समिति के लोग… वाराणसी। कहीं लूट कहीं हत्या तो कहीं चोरी। नामजद चोरी की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद भी गिरफ्तारी तो दूर, उल्टे रसूख और पैसे की ताकत से पीड़ित पर ही हो जा रही है एफआईआर दर्ज। यही है प्रधानमंत्री मोदी जी के सांसदीय क्षेत्र में कानून-व्यवस्था का हाल। सूबे में कानून व्यवस्था को सुधारने के लिए योगी सरकार द्वारा दिये गये कड़े निर्देशों का कोई असर बनारस में नहीं देखने को मिल रहा है। खाकी यहां कुछ ज्यादा ही सुस्त है और कानून को ताक पर धरकर घटना को अंजाम देने वाले हाल-फिलहाल कुछ ज्यादा ही सक्रिय हैं।
घटना के बाद भले ही एफआईआर दर्ज कर ली जा रही हो लेकिन जांच के नाम पर सुस्ती और गिरफ्तारी के नाम पर सन्नाटा आरोपी को बचने व सबूतों के साथ छेड़छाड़ का ढेरों मौका उपल्बध करा दे रहे हैं। चौक थाना क्षेत्र के घुघंरानी गली स्थित हिन्दू सेवा सदन अस्पताल में कैन्टीन संचालक माता प्रसाद की आपबीती शहर के कानून व्यवस्था को सवालों के घेरे में खड़ा कर रही है। कैन्टीन का ताला तोड़ 29 मई की आधी रात अस्पातल प्रबन्ध समिति के सम्मानित पदाधिकारी लोग समान उठा ले गये। इस मामले में पीड़ित कैन्टीन संचालक माता प्रसाद की तहरीर पर चौक पुलिस ने प्रबन्ध समिति के सचिव अमिताभ केडिया, उपाध्यक्ष जय प्रकाश मुद्रा, प्रबन्धक जी.वी.रमण सहित चार अज्ञात लोगों पर चौक थाने में धारा 380 का मुकद्मा 30 मई को दर्ज करने के साथ ही पीड़ित पर भी धारा 504, 506 का मुकद्मा ठोक दिया ताकि आने वाले दिनों में पीड़ित पर दबाव बनाकर सुलह-समझौते का रास्ता बनाया जा सके।
घटना के बारे में पीड़ित माता प्रसाद बताते हैं कि कैन्टीन को खाली करने के लिए अमिताभ केडिया पिछले कई महीने से उन पर दबाव बना रहे थे। इस सन्दर्भ में उन्होंने चौक थाने में आधा दर्जन से ज्यादा शिकायतें भी की लेकिन पुलिस ने कुछ नहीं किया। बीते अप्रैल को उनके प्रार्थना प्रत्र पर हुई जांच में पुलिस ने इस बात को माना है कि माता प्रसाद वहां कैन्टीन चलाते हैं और वहां का प्रशासक उन्हें वहां से निकालना चाहते हैं। साथ ही मामले में न्यायालय में मुकदमा भी दाखिल है।
माता प्रसाद बताते हैं कि जब बीते 29 मई की रात उन्हें घटना के बारे में जानकारी हुई तो उन्होनें 100 नम्बर पर डायल कर इसकी सूचना पुलिस को दी। मौके पर पहुंचे तो उन्हें वहां सचिव अमिताभ केडिया, जयप्रकाश मुद्रा, जीवीरमण मिले। कैन्टीन का ताला टूटा हुआ मिला। साथ ही कुछ समान भी अस्पताल परिसर में रखा दिखा। बावजूद मौके पर पर पहुंची पुलिस ने न तो सीसीटीवी कैमरे में कैद फुटेज को देखने या उसे कब्जे में लेने की जहमत उठाई न ही अस्पताल में रखे चोरी के माल को बरामद किया। उल्टे अगले दिन एफआईआर दर्ज करने की बात कहकर लौट गयी। अगले दिन एफआईदर्ज तो कर लिया गया लेकिन फौरी कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं किया गया।
बाद में घटना स्थल के निरीक्षण के नाम पर पहुंची पुलिस को प्रबन्धक की तरफ से लिख कर दे दिया गया कि अस्पताल में लगे सीसीटीवी कैमरे 15 मई से ही खराब चल रहे हैं। प्रबन्धक की ये दलील पूरे मामले में प्रबन्ध समिति की नीयत पर प्रश्न चिह्न खड़ा करती है। हाल-फिलहाल अपने रोजगार से बेदखल कर दिए गए माता प्रसाद रोजगार पर दखल पाने के लिए रोज एक नये प्रार्थना पत्र के साथ पुलिस के उच्च अधिकारियों के दफ्तरों की परिक्रमा कर रहे हैं। न्याय के नाम पर जांच और आश्वासन की घुट्टी से उन्हें इंसाफ मिलेगा कि नहीं, ये तो पता नहीं लेकिन एक बात तो तय है, कि अभी भी उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था प्रभावशाली और ताकतवरों को छूना नहीं चाहती भले ही कमजोर अपनी रोजी-रोटी से जाए या फिर जान-माल से।
….कई और हैं निशाने पर
हिन्दू सेवा सदन अस्पताल में पिछले कई सालों से न्यूनतम वेतन को लेकर कार्यरत कर्मचारी अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। इस मामले में न्यायालय में मुकदमा भी चल रहा है। ऐसे में माता प्रसाद के प्रकरण से शायद प्रबन्ध समीति कर्मचारियों में संदेश देना चाहती है कि खामोश रहकर घुटते हुए खुश रहें, या फिर दूसरी तस्वीर सामने है।
बनारस से भास्कर गुहा नियोगी की रिपोर्ट.