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सुख-दुख

द गार्जियन की फर्जी वेबसाइट और प्रधानमंत्री का मिथ्या महिमागान

विजय शंकर सिंह-

झूठ बोलना एक आदत है। फासिज़्म की प्राणवायु ऑक्सीजन ही झूठ और फरेब पर आधारित है। भारत मे भी झूठ के आधार पर व्हाट्सएप्प और सोशल मीडिया के माध्यम से बहुत ही झूठी खबरे प्लांट की गई। नेहरू की वंशावली, सावरकर के भगत सिंह से सम्बंध, सावरकर की नेताजी सुभाष बाबू को देश छोड़ कर बाहर जाने की सलाह, जैसी बहुत से मिथ्या ऐतिहासिक तथ्य, एक सुनियोजित तरह से आरएसएस और भाजपा के लोगो द्वारा लम्बे समय से फैलाये जा रहे हैं। 1994 में गणेश जी को दुनियाभर में दूध पिलाने की अफवाह को फैलाने की योजना गोएबेलिज़्म के भारतीय संस्करण का एक परीक्षण था। लेकिन यह झूठ और फरेब लंबे समय तक नहीं चल पाता है। झूठ के बवंडर थमते भी हैं और फिर जब आकाश निरभ्र हो जाता है तो सब कुछ दीखने भी लगता है।

गोएबेलिज़्म की इसी परंपरा में एक नया झूठ प्लांट किया गया। द गार्जियन नामक एक ब्रिटिश अखबार की तर्ज पर बीजेपी आईटी सेल और एक बड़े नेता ने एक साइट बनाई जिसे नाम दिया, The daily guardian.com द डेली गार्जियन डॉट कॉम। आप को याद कीजिए एक बार गृहमंत्री अमित शाह ने अपना सीना फुला कर कहा था कि वह कोई भी खबर कुछ ही घण्टो में देश भर में फैला सकते हैं। सरकार समर्थक मित्रगण, एक केंद्रीय गृहमंत्री को, अफवाह फैलाने की उनकी क्षमता पर शेखी बघारते देख कर कितने लहालोट थे।

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द डेली गार्जियन एक ब्रिटिश अखबार है जो 1821 में पहली बार मैनचेस्टर से छपना शुरू हुआ था। उसका शुरुआती नाम मैनचेस्टर गार्जियन था। 1959 में उक्त अखबार का नाम बदल कर, द गार्जियन कर दिया गया। इस अखबार के साथ गार्जियन मीडिया ग्रुप के दो और अखबार निकलते हैं, ऑब्जर्वर और द गार्जियन वीकली। यह ग्रुप स्कॉट ट्रस्ट द्वारा संचालित है। इंग्लैंड का यह एक प्रतिष्ठित मीडिया समूह है।

इसी अखबार के नाम से एक देसी वेबसाइट लॉंच की गई। भाजपा आईटी सेल ने इस नकली वेबसाईट के जरिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के छवि सुधार का एक कार्यक्रम शुरू किया। छवि सुधार कार्यक्रम की ज़रूरत इसलिए पड़ी कि, कोरोना महामारी आपदा में सरकार और प्रधानमंत्री की भूमिका पर बहुत अधिक सवाल उठ रहे हैं और यह सवाल और आलोचनाएं जितनी देश के अंदर की मीडिया द्वारा नहीं उठायी जा रही हैं, उससे अधिक विदेशी मीडिया द्वारा उठाए जा रहे हैं, लेख लिखे जा रहे हैं और संपादकीय छापे जा रहे हैं। विदेशी अखबारों में, द गार्जियन, ऑब्जर्वर, वाशिंगटन पोस्ट, न्यूयॉर्क टाइम्स, डेली मेल जैसे प्रतिष्ठित अखबार हैं। अब यह सब अखबार चूंकि नेट पर उपलब्ध हैं तो लगभग जिन्हें रुचि है, वे इन्हें पढ़ ले रहे हैं।

लेकिन भाजपा आईटी सेल, और कुछ मंत्री भी, इस छवि सुधार के दुंदुभिवादन में रंगे हांथ पकड़े भी गए।अब ये गोएबेल तो हैं नहीं। ये ठहरे गोएबेल की नकल करने वाले लोग। इन्होंने द गार्जियन The Guardian’ को बदल कर, द डेली गार्जियन डॉट कॉम, The daily guardian.com तो कर दिया है, पर इसका रजिस्ट्रेशन का स्थान, मैनचेस्टर यूनाइटेड किंगडम तो हो नहीं सकता है। जब आप Thedailyguardian dot com वेबसाइट पर जाएंगे तो आप खुद ही समझ जाएंगे कि यह वेबसाइट नाम ही विदेशी अखबार द गार्जियन की लगती है, लेकिन दरअसल ऐसा बिल्कुल नहीं है।

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इसी बीच 11 मई को एक और न्यूज़ आर्टिकल ट्विटर पर शेयर किया जाने लगा. लेकिन यहां मोदी सरकार की आलोचना नहीं हो रही थी. बल्कि, तारीफ की गई, कि
” वो कितने मेहनतकश हैं. ये किसी को नहीं दिखता. बस ऑक्सीजन और दवाइयों की किल्लत का टोकरा उनके सिर रख दिया गया है।”

यह आर्टिकल था ‘द डेली गार्जियन’ से, पर इसका ब्रिटिश अखबार ‘द गार्जियन’ से कोई सम्बंध नहीं है।

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बीजेपी से जुड़े कई बड़े नामों ने इस न्यूज़ आर्टिकल को शेयर किया. यूनियन मिनिस्टर अनुराग ठाकुर, किरण रिजिजू, डॉ. जितेंद्र सिंह, प्रल्हाद जोशी, रघुबर दास भी शेयर करने वालों की लिस्ट में शामिल थे. यहां तक कि बीजेपी आईटी सेल हेड अमित मालवीय ने भी इसे अपनी टाइमलाइन पर शेयर किया. साथ में लिखा कि मौत बड़ी खबर है, लेकिन रिकवरी नहीं. दावा किया कि 85 प्रतिशत लोग बिना हॉस्पिटल में एडमिट हुए ठीक हो गए. इतनी जगह शेयर होने के बाद लोग ‘द डेली गार्डियन’ की उत्पत्ति जानने को इच्छुक थे. जो कोरोना महामारी में भी मोदी सरकार को डिफेंड कर रहा था. लोग वेबसाईट चेक करने लगे. इस कदर कि ‘द डेली गार्डियन’ का पेज क्रैश कर दिया. इसके ऑरिजिन पर सवाल करने लगे।

दिनभर वेबसाईट की पीएम मोदी वाली स्टोरी का लिंक डाउन रहा. हालांकि, शाम को ओपन होने लगा। जब खुला, तो पाया गया कि यह एक संपादकीय था। स्क्रॉल करते-करते नीचे जब यूजर पहुंचे तो पूरी बात समझ मे आयी, क्योंकि वहां लिखा था, “इसे लिखने वाले बीजेपी मीडिया रिलेशन्स डिपार्टमेंट के कन्वेनर हैं और टीवी डिबेट में पार्टी प्रवक्ता की भूमिका भी निभाते हैं. उन्होंने ‘नरेंद्र मोदी: द गेम चेंजर’ नाम की बुक भी लिखी है. यहां लिखे विचार उनके व्यक्तिगत विचार हैं।”

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यह वेबसाईट, यूपी इंडिया में 2007 में रजिस्टर्ड है और 2 मई 2021 में इसे अपडेट किया गया है और यह 22 मई को समाप्त हो जाएगी। यह सूचना और फ़ोटो Manvendra Jay मानवेन्द्र जय की पोस्ट से मैं ले रहा हूँ। फिलहाल यह महत्वपूर्ण नहीं है कि इस वेबसाइट से प्रधानमंत्री का कितना महिमामंडन किया गया पर यह महत्वपूर्ण है कि एक वैश्विक प्रतिष्ठा वाले विदेशी अखबार के नाम से एक फर्जी वेबसाइट द्वारा उक्त अखबार की खबरें बता कर मनचाही खबरें प्लांट की गयीं। यह कृत्य एक फ्रॉड है और भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत एक दंडनीय अपराध भी है।

दरअसल 2014 के बाद अधिकांश टीवी मीडिया सरकार के पीआर एजेंसी में बदल गया है। अखबार सरकार की विरुदावली गाने लगें हैं। सवाल पूछ कर, असहज करने वाले कुछ पत्रकारों को उनके चैनल से निकलवा दिया गया। सोशल मीडिया पर अमित मालवीय का झुठबोलवा गैंग सक्रिय है ही। पर जब देश समस्याओं से घिरने लगा और सरकार का निकम्मापन हर सरकारी निर्णय में सामने आने लगा तो, सरकार की भूमिका पर लोग सवाल उठाने लगे। दुनियाभर में विदेशी अखबार जो अपनी स्वतंत्रता के प्रति सजग और सचेत रहते हैं, प्रधानमंत्री की सख्त और तार्किक आलोचना करने लगे तो, फिर इस नयी आफत से कैसे पार पाया जाय ? तब आइटी सेल के फ्रॉड लोगों ने दिमाग लगाया कि क्यों न एक अंतराष्ट्रीय अखबार का नाम चुनकर उससे मोदी की ब्रांडिंग कर दी जाए।

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जो फर्जी लेख मोदी जी की ब्रांडिंग में द गार्जियन के नाम से लिखे गए उन्हें, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर सहित मंत्रिमंडल के अन्य सदस्यों ने धड़ाधड़ ट्वीट और रीट्वीट भी करने शुरू कर दिए। उन मंत्रियों ने यह भी नही देखा कि वे सच मे असल द गार्जियन में छपे भी हैं या नही। पर वे ही नहीं एक अदना सा मोदी समर्थक भी यह मान कर चलता है कि, मोदी तो कोई गलती कर ही नहीं सकते। आखिर वे एंटायर पॉलिटिकल साइंस में ग्रेज्युएट जो ठहरे।

Gaurav Singh Rathore गौरव सिंह राठौर ने गार्जियन का एक लिंक पोस्ट किया है उसे मैं यहाँ दे रहा हूँ। गार्जियन ने भारत मे कोरोना की स्थिति पर तमाम लेख लिखे है उन्हीं में से यह भी एक लेख है।

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https://www.theguardian.com/world/2021/apr/21/system-has-collapsed-india-descent-into-covid-hell

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