कांग्रेस और बीजेपी की तरह अपनी छवि को चमकाने के लिए एसपी की यूपी सरकार ने भी पीआर एजेंसियों का सहारा लिया है. यूपी सरकार को भरोसा है कि पीआर एजेंसियां उसकी बिगड़ी छवि को चमका सकती हैं. अब यूपी सरकार की छवि सुधरती है या नहीं ये तो बाद में पता चलेगा लेकिन मामले के सामने आने पर सरकार पर विपक्षी कटाक्ष करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे.
16वीं लोकसभा चुनाव में अपनी और पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की छवि को सुधारने के लिए कांग्रेस ने भी पीआर एजेंसियों का सहारा लिया था. कांग्रेस की छवि सुधरी तो नहीं लेकिन बिगड़ जरुर गई. कांग्रेस पर विपक्षियों ने जमकर कटाक्ष किया था. मीडिया में आई खबरों के मुताबिक कांग्रेस ने पीआर एजेंसियों को 5 करोड़ रुपए का कांट्रैक्ट दे रखा था. 16वीं लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिले बहुमत के पीछे सोशल मीडिया का बहुत बड़ा हाथ माना जाता है. चुनाव प्रचार के दौरन बीजेपी नेता अधिकांश समय सोशल मीडिया पर छाए हुए थे. छोटी-छोटी बात को भी बीजेपी सोशल मीडिया के जरिए लोगों तक पहुंचाती थी.
किसी राजनीतिक मामले में पीआर एजेंसियां अपने ग्राहक (यहां पर यूपी सरकार) के खिलाफ की गई प्रतिक्रिया पर पलटवार करते हुए उसे बड़ा बताने की कोशिश करती हैं. जैसे यदि सूबे के मुखिया अखिलेश यादव ने किसी तरह का विवादित बयान दे दिया है तो उस पर पीआर एजेंसियां आलोचना करने वाले लोगों पर टिप्पणी करती हैं और उनकी टिप्पणी को गलत बताती हैं. अक्सर पीआर एजेंसिया समाचार चैनलों व पत्रों की बेवसाइट पर जाकर अपने ग्राहक के बचाव में प्रतिक्रिया देती हैं और उसके फैसले को सही बताती हैं.