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सुख-दुख

सीनियर पत्रकार प्रदीप सिंह को इस जूनियर पत्रकार ने भी दिया 10 सूत्रीय जवाब, पढ़ें

पत्रकार राइजिंग राहुल ने प्रशांत कनौजिया पर प्रदीप सिंह के पूछे दस सवालों का क्रमवार उत्तर दिया है। पढ़ें प्रदीप सिंह के सवाल और उनके जवाब।

1) कनौजिया की ट्वीट देखने के बाद क्या उसे पत्रकार कहा जा सकता है?
जवाब : गलत सवाल। कनौजिया पर कार्रवाई उसकी पत्रकारिता या उसकी किसी खबर के लिए नहीं हुई है। कनौजिया का ट्वीट सामान्य नागरिक का व्यंगात्मक ट्वीट है। बेहतर होता कि आपका सवाल यह होता कि क्या कनौजिया की खबर देखने के बाद उसे पत्रकार कहा जा सकता है? लेकिन यह सवाल नहीं है। यूपी सरकार के आरोपपत्र में भी किसी खबर का जिक्र नहीं है। जैसे आप झुंझलाते हैं, खीझते हैं, व्यंगात्मक टिप्पणी करते हैं, वैसे ही कोई दूसरा इंसान भी झुंझला सकता है, खीझ सकता है, व्यंगात्मक टिप्पणी कर सकता है। इससे उसकी पत्रकारिता का कोई संबध नहीं है।

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2) क्या कनौजिया के समर्थन में खड़े होने वाले लोग यह मानते हैं कि वाजिब प्रतिबंध की यह संवैधानिक व्यवस्था पत्रकारों पर लागू नहीं होती?
जवाब : पूरी तरह से कन्फ्यूज सवाल। बल्कि यह सवाल कम, अभिव्यक्ति को दबाने की कोशिश ज्यादा है। पत्रकार हो या आम इंसान, अभिव्यक्ति की आजादी सबको है। ऐसा लगता है कि सिंह साहब की एक आंख फूट चुकी है और दूसरी में काला मोतिया हो गया है। इसी वजह से उन्हें दिख रहा है कि जो लोग खड़े हुए हैं, वह कनौजिया के समर्थन में खड़े हुए हैं। जबकि सच यह है कि इस मुकदमे के विरोध में खड़े होने वाले लोग अपने नागरिक अधिकारों को बचाने के लिए खड़े हैं। आज इस बहाने की नोक पर कनौजिया है, कल को खुद सिंह साहब भी हो सकते हैं। यह नागरिक अधिकारों के हनन का मामला है, पत्रकारिता का नहीं। ऐसे वरिष्ठ पत्रकार से ऐसे बचकाना सवाल का आना स्वयं उनकी समझ पर और उनके पूरे जर्नलिज्म करियर बड़ा सवाल है। आत्मचिंतन करें।

3) उसे बचाने के लिए अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई दी जा रही है। जिसकी प्रतिष्ठा पर हमला हुआ है क्या उसका कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है?
जवाब : सवाल का पहला हिस्सा भीषण दुर्भावना से प्रेरित है। ऐसा लगता है कि सिंह साहब के पूरे शरीर में बेतहाशा जहर भरा हुआ है जो उनके सवालों में छलकता जा रहा है। पहले हिस्से के लिए सिंह साहब को सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए और प्रायश्चित करना चाहिए। सवाल का दूसरा हिस्सा वाजिब है। जिसकी प्रतिष्ठा पर हमला हुआ है, उसके पास अपनी प्रतिष्ठा के लिए पूरे कानूनी अधिकार हैं। वह जब चाहे, तब इसका प्रयोग कर सकता है। लेकिन इस मामले में जिसकी प्रतिष्ठा पर हमला हुआ, उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया। यह मामला राज्य पोषित आपराधिक साजिश है क्योंकि इसमें वादकारी नदारद है और यह आपराधिक मामला नहीं है। इस मामले में पुलिस ने स्वयं संज्ञान लेकर कार्रवाई की है। क्या गांव में जब हरवाहे को सिंह साहब गालियों भरा आर्शीवाद देते हैं तो पुलिस खुद आकर मुकदमा दर्ज करती है? नहीं। अगर हरवाहा थाने पहुंचता है, थानेदार की जेब गर्म करता है, तब कार्रवाई होती है, और अक्सर तो नहीं होती। याद रखें, मुख्यमंत्री हो, राष्ट्रपति हो या खेत का हरवाहा हो- किसी के संवैधानिक अधिकार न किसी से कम हैं और न किसी से अधिक हैं।

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4) आखिर इस बात पर विचार होगा कि नहीं कि कनौजिया ने जो किया है वह कानून की नजर में सही है या गलत?
जवाब : इस बारे में सुप्रीम कोर्ट की वेकेशन बेंच ने साफ कहा है कि उन्होंने कनौजिया के ट्वीट्स पढ़े हैं। वे आपत्तिजनक हैं, लेकिन वे इतने भी आपत्तिजनक नहीं हैं कि आरोपी के साथ हत्यारोपी जैसा सलूक हो। कानूनन सही या गलत जानने के लिए सिंह साहब को इंतजार करना होगा क्योंकि मामला अभी लोअर कोर्ट में है, जिसके रिमांड के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 से बदल दिया है। ऐसे में प्रथम दृष्टया दोष यूपी सरकार का ही ज्यादा लग रहा है।

5) वह गलत है तो कानून को अपना काम क्यों नहीं करना चाहिए?
जवाब : वाह सिंह साहब वाह। आप ही पुलिस, आप ही सरकार और आप ही कोर्ट? खुद ही कह दिया कि वह गलत है? कम से कम अदालती फैसले का तो इंतजार कर लेते। या देह के किसी गुप्त हिस्से में कोई आग वाग तो नहीं लगी है जो अदालत से भी पहले आप फैसला देने के लिए मरे जा रहे हैं? दूसरी बात यह कि कानून काम करे, किसी ने नहीं रोका है। लेकिन जब कानून की जगह चमचागिरी और भक्तई काम करती है, तब दिक्कत है और चमचम मलाई से लिपटे ऐसे कानून को काम न करने देने के लिए ही शायद आप भी पत्रकार बने होंगे। एकबारगी मान लें कि आप भी इसी चमचम मलाई के लिए ही पत्रकार बने तो माफ करिए सिंह साहब, हम आपकी तरह नहीं हैं। हम सरकारी चमचागिरी नहीं करते और हमने पूरे करियर में इसका मूल्य चुकाया है।

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6) सवाल यह भी है कि जब इस तरह के ट्वीट, खबरें लिखी और दिखाई जाती हैं, तब वे कहां होते हैं जो आज कनौजिया के समर्थन में खड़े हैं?
जवाब : कनौजिया के समर्थन में कोई नहीं खड़ा है। जो भी खड़ा है, वह नागरिक अधिकारों के उल्लंघन होने पर खड़ा हुआ है और सिंह साहब, आप तो आप, किसी मोदी योगी का बाप भी उन्हें मना नहीं कर सकता, अगर नागरिक अधिकारों का हनन हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने भी साफ कहा है कि वह इस मामले में हस्तक्षेप न करता, अगर मामला नागरिक अधिकारों के हनन का न होता। दूसरी बात, खबर का यहां कोई मामला नहीं है। कैसे पत्रकार हैं आप कि आपने आरोपपत्र ही नहीं पढ़ा? अब तो मुझे आपकी पूरी पत्रकारिता पर शक हो रहा है। आपको सलाह देता हूं कि साशा बैरन कोहेन का अमेरिका में प्रसारित होने वाला टीवी सीरियल हू इज अमेरिका का अवलोकन करें। अभिव्यक्ति की औकात आपको अच्छे से पता चलेगी।

7) क्या ऐसे संगठनों की यह जिम्मेदारी नहीं है कि इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए कोई सांस्थानिक व्यवस्था करें?
जवाब : बिलकुल नहीं। संस्थान कर्मचारी के सांस्थानिक काम काज के जिम्मेदार होते हैं। वह टॉयलेट में टेढ़ा बैठता है या भिखारी को चिढ़ाता है- इसके जिम्मेदार संस्थान नहीं हो सकते। आपका ही संस्थान अभी आपसे कह दे कि चैनलों पर बैठकर आप जो बीजेपी की चेलाई-तेलाई करते हैं, उसे बंद कर दें या आपको पादना है तो टॉयलेट में ही जाकर पादें, तो क्या होगा? आपकी जो दुकान चल रही है, उसका शटर तुरंत गिर जाएगा।

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8) कनौजिया जैसे व्यक्ति के बचाव में खड़े होने वाले क्या संदेश दे रहे हैं?
जवाब : संदेश साफ है। सुप्रीम कोर्ट ने भी बिलकुल साफ किया है। नागरिक अधिकारों का हनन न कोई मोदी कर सकता है, न कोई योगी। और इस बात को लिखकर अपनी डेस्क पर चिपका लें, आइंदा ऐसी बेवकूफियों से शायद बच जाएंगे।

9) इन संगठनों के दबाव से कनौजिया बच गया तो ऐसे दूसरे लोगों का जो हौसला बढ़ेगा उसके लिए जिम्मेदार कौन होगा?
जवाब : कनौजिया के बचने से दिक्कत है या हौसले से दिक्कत है? यह सवाल नहीं है बल्कि इसके लिए आपकी ठकुरैती/सामंती मानसिकता पूरी तरह से जिम्मेदार है। आप पत्रकार नहीं हैं। आप सामंत हैं। वह भी ऐसा टटपुंजिया सामंत जो समझता है कि सत्ता के लिए ऐसे सवाल पूछकर पत्रकार कहलाएगा तो बाकियों का तो नहीं पता, लेकिन मैं आपको बतौर पत्रकार पूरी तरह से खारिज करता हूं।

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10) कानूनी कार्रवाई का विरोध करने से पहले क्या अपने अंदर झांकने की जरूरत नहीं है?
जवाब : अपने अंदर झांकने के बाद ही विरोध करने वालों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक को समझ में आया कि यह नागरिक अधिकारों के हनन का मामला है। सबने झांक लिया है। बेहतर होगा कि आप ये तांकझांक बंद करें और अपने अंदर के सामंत को जिंदा रखें। पत्रकार तो मर ही चुका है, सामंत ही दिखे सबको और भविष्य में इसी नंगई से दिखता रहे, यही कामना है।

युवा पत्रकार राइजिंग राहुल से सम्पर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

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3 Comments

3 Comments

  1. naseem

    June 13, 2019 at 10:46 am

    Very good. Kyaa khoob jawaab. Pradeep Singh ko samajh aa jaana chahiye ki unn jaise saamantwadi aur satta ke chatukaro/chamcho ki aukaat aur samajh kitni hai. Jinko khud kuch aataa jaata nahi wo aajkal teacherji ban kar prashnpatr set karne baith jaate hain.

  2. Rahie bahaar

    June 13, 2019 at 4:03 pm

    बेहतरीन और तार्किक जवाब दिए, साधुवाद

  3. pinaki

    June 14, 2019 at 5:59 pm

    darasal ye admi darpok hai….isne buttering karke hi ab tak apni aur apne pariwaar ka bharan poshan kiya hai…..nihayat hi jahil aur murakh insan hai….

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