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असफल हो गया हेमंत शर्मा के ‘प्रजातंत्र’ का प्रयोग, पंकज मुकाती ने भी दिया इस्तीफा

इंदौर से प्रकाशित होने वाले प्रजातंत्र अखबार और इसकी संचालक कंपनी ब्लैक एंड व्हाइट मीडिया संस्थान में भारी उथल-पुथल मची हुई है। इसके मालिक हेमंत शर्मा हैं।

खबर है कि दैनिक प्रजातंत्र के स्थानीय संपादक पंकज मुकाती ने भी प्रजातंत्र छोड़ दिया है और एक नए समाचार पत्र समूह मृदुभाषी में दायित्व स्वीकार कर लिया है। पंकज ने महीनों की तनख्वाह नहीं मिलने के कारण बाय बाय किया। वे इसके पहले न्यूज़ टुडे, प्रभात खबर, अमर उजाला आदि में सम्पादक रह चुके हैं।

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सबसे पहले प्रजातंत्र के ग्रुप एडिटर राजेंद्र तिवारी अखबार छोड़कर गए। फिर सीईओ एलमार जाधव ने प्रजातंत्र को बाय-बाय किया। नेशनल प्रोजेक्ट हेड अभिषेक जोसेफ अपने लगाए पौधे को बर्बाद होते देख ‘कई महीनों का वेतन दान में देकर’ चले गए।

नेशनल फोटो एडिटर प्रदीप चंद्रा कभी मुंबई के टाइम्स ग्रुप में थे, वे दो महीनों में ही अखबार से इस्तीफा दे कर चल दिए।

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कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट विद्यापति उपाध्याय ने इस अखबार को छोड़ दिया।

एचआर हेड और एचआर मैनेजर भी अखबार छोड़ कर चले गए। अकाउंट चीफ मनीष सक्सेना और अकाउंटेंट ज्योति भी अखबार छोड़ कर चली गई।

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डिजिटल एडिटर पराग नातू ने भी इस्तीफा दे दिया। अखबार के एडिट पेज इंचार्ज आदित्य पांडे ने भी अखबार से तौबा कर ली। प्रजातंत्र के दिल्ली ब्यूरो चीफ अनिल जैन ने भी कुछ ही दिनों में इस्तीफ़ा दे दिया और महीनों की लड़ाई के बाद अपना वेतन प्राप्त किया।

इसी समूह के अंग्रेजी दैनिक फर्स्ट प्रिंट 16 पेज की जगह अब केवल चार पेज टेब्लॉइड में पीडीएफ पर बन रहा है। केवल खानापूरी हो रही है।

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बीस से ज़्यादा पत्रकारों की टीम में केवल एक ही सदस्य बचा है। विज्ञापन विभाग के दर्जनों लोग वेतन नहीं मिलने से छोड़ गए हैं। कुछ का ही हिसाब हो पाया है।

खेल डेस्क, व्यापार डेस्क, न्यूज़ डेस्क, लोकल रिपोर्टर्स डेस्क आदि खाली हो चुके हैं। यहाँ कभी 80 लोगों का स्टाफ हुआ करता था। अब केवल उंगलियों पर गिने जाने लायक लोग ही बचे हैं।

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इस भगदड़ का एकमात्र कारण तनख्वाह नहीं मिलना है। नाम मात्र वेतन पाने वाले डिजिटल टीम में करीब दो दर्जन पत्रकार वेतन नहीं मिलने के कारण चले गए।

विभव देव शुक्ल इलाहाबाद से आये थे, कई माह तनख्वाह नहीं मिली तो बिना किसी विकल्प के ही छोड़कर वापस चले गए।

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नेहा श्रीवास्तव कॉपी राइटर थीं, लखनऊ से आई थीं, जब पांच महीने वेतन नहीं मिला और उसने मांग की तो कहा गया- नौकरी का इतना संकट है लेकिन हमने तुम्हें काम से तो नहीं निकाला। उसने कहा- वेतन नहीं देना काम से निकालने से भी बुरा है। वह भी बिना वेतन लिए चली गई।

व्हाट्सएप पर आई हुई खबरों के आधार पर और वेबसाइट से खबरें उठाकर अखबार में डाल दी जाती है। जो लोग बचे हुए हैं वह किसी तरह अपना टाइम पास कर रहे हैं।

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