मीडिया जगत में पत्रकारों का उत्पीड़न कोई नई बात नहीं है। जो पत्रकार समाज के दूसरे वर्ग के लोगों के उत्पीड़न की खबरें लगातार दिखाते रहते हैं और उन्हें न्याय दिलाने की कोशिश करते हैं, उन पत्रकारों के खुद की उत्पीड़न की खबर तक नहीं बन पाती क्योंकि पत्रकारों का उत्पीड़न वही संस्थान करते हैं, जहां पर वो नौकरी करते हैं। ताजा मामला यूपी के आजमगढ़ जिले से जुड़ा हुआ है जहां पब्लिक ऐप के उत्पीड़न से तंग आकर पांच रिपोर्टरों ने सामूहिक रूप से इस्तीफा दे दिया है।
पब्लिक ऐप जैसे संस्थान मीडियाकर्मियों को कितनी सेलरी देते होंगे, मीडिया के क्षेत्र से जुड़ा हर व्यक्ति ये जानता है लेकिन रिपोर्टरों पर अनुचित तरीके से खूब दबाव बनाया जाता है। यहां सैलरी का अता पता नहीं होता लेकिन बात बात पर जुर्माना खूब लगाया जाता है। उपर से मार्केट से विज्ञापन लाने का दबाव अलग से बनाया जाता है। पत्रकार न हुए, विज्ञापन एजेंट हो गए।
रिपोर्टरों को परेशान करने के लिए महत्वपूर्ण खबरों को छोड़ देने का गलत आरोप लगाया जाता है तो काम कराने में इतनी माथापच्ची कराई जाती है कि परेशान होकर रिपोर्टर काम छोड़ दे। काम कराने के ऐसे ऐसे गाइडलाइंस बनाए जाते हैं, जिसके आगे अच्छे अच्छे पत्रकार दम तोड़ दें।
अनुचित दबाव और बात बात पर जुर्माना लगाने की परंपरा से तंग आकर पब्लिक ऐप आजमगढ़ के कई पत्रकारों ने सामूहिक रूप से इस्तीफा दे दिया है। इनमें आशीष कुमार निषाद, संजीव शर्मा, विवेकानंद पांडेय आदि का नाम शामिल है।
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