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सियासत

मुजफ्फरपुर में डेढ़ सौ बच्चे मर गए, हमारे लिए मुद्दा पब्लिक हेल्थ नहीं बल्कि राष्ट्रवाद है!

Girish Malviya : मुजफ्फरपुर में बच्चों की मौत का आंकड़ा 150 के पार जाने वाला है. यह हमारी बेहाल हो चुकी स्वास्थ्य सेवाओं की कहानी बयान कर रहा है. हम अभी तक बीमारी की वजहों का अंदाजा तक नहीं लगा पाए है. शोध की बात तो आप छोड़ ही दीजिए. भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में हम मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं. दरसअल पब्लिक हेल्थ हमारे लिए कोई मुद्दा ही नहीं है. हमारे लिए राष्ट्रवाद मुद्दा है.

क्या आप जानते हैं कि भारत में 11082 मरीज़ों के लिए एलोपेथी में औसतन सिर्फ एक डॉक्टर उपलब्ध है. 1844 मरीज़ों पर औसतन सिर्फ एक बेड और 55591 लोगों के लिए औसतन एक सरकारी अस्पताल उपलब्ध है. यह भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी किए गए आंकड़े हैं. जबकि WHO अनुशंसा करता है कि डॉक्टर-जनसंख्या का अनुपात 1: 1,000 होना चाहिए. यानी पब्लिक हेल्थ को लेकर हमारे पास बेसिक सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं लेकिन ढोल ‘आयुष्मान भारत’ का पीटा जाता है. बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं कि देश के 50 करोड़ से ज्यादा लोगों को 5 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध करा दिया गया है. यह दुनिया की सबसे बड़ी योजना है आदि आदि. किंतु क्या आप जानते हैं कि सरकार ने आयुष्मान योजना के लिए कितना बजट पास किया है. जवाब है मात्र दो हजार करोड़ रुपये.

एनएचए के अधिकारी बताते हैं कि 2000 करोड़ रुपये तो आयुष्‍मान भारत को अमल में लाने में ही खर्च हो गए. यह खबर योजना लागू करने के 15 दिन बाद ही आ गयी थी. ऐसे में एनएचए ने मौजूदा वित्‍त वर्ष के लिए वित्‍त मंत्रालय से 4,500 करोड़ रुपये अतिरिक्‍त आवंटन का अनुरोध किया था. लेकिन इस रकम के आवंटन की कोई खबर नहीं है.

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सच तो यह है कि जिस हिसाब से निजी इंश्योरेंस कम्पनियां मेडिक्लेम पॉलिसी उपलब्ध कराती हैं यदि वही तरीका उपयोग में लाया जाए तो 50 करोड़ लोगों को स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध करवाने के लिए 1.5 लाख करोड़ की आवश्यकता है.

आयुष्मान भारत प्रोग्राम से जुड़े एक सरकारी अधिकारी बताते हैं कि इस योजना के तहत 10 करोड़ परिवारों को सुविधा मुहैया कराने के लिए सरकार को हर साल प्रति परिवार करीब 1100 रुपए खर्च करने होंगे. यानी अगर कुल खर्च निकाला जाए तो सरकार को साल भर में इस योजना पर करीब 11,000 करोड़ रुपए खर्च करने होंगे. लेकिन सरकार मात्र दो हजार करोड का बजट देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेना चाहती है और यदि यह अमाउंट हम बढ़ा भी देते हैं तो भारत में स्वास्थ्य सेवाएं सुधर जाएंगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है क्योंकि यह खर्च मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं पर नहीं, बीमा पर खर्च किया जा रहा है. आयुष्मान भारत योजना कोई सरकारी स्वास्थ्य कार्यक्रम नहीं है बल्कि स्वास्थ्य बीमा है.

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भारत अपनी जीडीपी का महज 1.5 फ़ीसदी ही स्वास्थ्य सेवा पर खर्च करता है जो दुनिया के सबसे कम खर्च करने वाले देशों में से एक है. जिसे 2022 में बड़ी अर्थव्यवस्था की दृष्टि से पीछे छोड़ने की बात कर रहे हैं वह ब्रिटेन अपनी स्वास्थ्य सेवा पर 9.6 प्रतिशत ख़र्च करता है. जिस ‘ओबामा केयर’ से प्रेरणा लेकर यह ‘आयुष्मान भारत’ योजना बनाई गई है, वह अमेरिका जीडीपी का 18 प्रतिशत हिस्सा पब्लिक हेल्थ पर ख़र्च करता है. यह है हकीकत हमारे भारत की. लेकिन पब्लिक हेल्थ चुनाव का मुद्दा नहीं है. चुनाव का मुद्दा तो हिंदू मुस्लिम है, अंधा राष्ट्रवाद है.

इंदौर निवासी विश्लेषक गिरीश मालवीय की एफबी वॉल से.

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