राहुल देव-
मेवात-नूँह की सामुदायिक घटना पर इस चैनल के शीर्षक पढ़िए और महान एंकर की बातें सुनिए। फिर चैनल से पूछिए, क्या है उनका ‘परमानेन्ट इलाज ’? गूगल कीजिए किसने कहा था ‘final solution’ और किया था ६० लाख यहूदियों का संहार। कल सिपाही द्वारा ४ लोगों की रेलगाड़ी में हत्या को भी याद रखिए।
अमन चोपड़ा- राहुल सर प्रमाण, आज उन्हीं 90 लाख यहूदियों का देश इजरायल दुश्मनों के घर में घुसकर उनका ‘परमानेंट इलाज’ करता है, जिससे भी कुछ ‘बारूदी बुद्धिजीवियों’ को पीड़ा पहुँचती है। पत्थरबाज़ों के परमानेंट इलाज के विचार से आपको कष्ट का कारण क्या है ? समाज का ‘हर’ वर्ग पत्थरबाज़ी वाली इस नई महामारी का ‘final solution’ चाहता है। एक DSP के सिर में गंभीर चोट, इंस्पेक्टर के पेट में गोली, एक जवान की मौत और दर्जन भर ज़ख़्मी हैं। पत्थरबाज़ों को Cover Fire देने की आपकी मजबूरी समझ नहीं आई।
राहुल देव- मुझे जीवन भर यह दुख रहेगा कि तुम्हें स्नेह और प्रोत्साहन देते समय तुम्हारे भीतर बैठे कलुष को मैंने नहीं पहचाना। तुम और तुम्हारे वैचारिक साथी पत्रकार मेरे लिए पत्रकारिता का कलंक हो, अमन। ‘परमानेंट’ कुछ नहीं होता, न मनुष्य न स्थितियाँ। एक ही तत्व चिरस्थायी है पर वह घृणा से परे है।
विष्णु राजगढ़िया- अमन को अपने नाम का मतलब भी नहीं मालूम। अमन और हत्यारे चेतन सिंह में फर्क सिर्फ हिंसा के तरीके का है। एक कलम और माइक से हिंसा कर रहा है। दूसरा ट्रेन में बंदूक चला रहा है। दोनों जॉम्बी बन चुके हैं। नफरत की मशीन। अमन को ‘शांति’ नहीं मालूम। चेतन में अपनी ‘चेतना’ नहीं।
शादाब सिद्दीक़ी- अमन चोपड़ा से बड़ा नफरती पत्रकार देश में कोई नहीं है , यह खुलेआम एक संप्रदाय के खिलाफ नफरत घृणा और हिंसा फैलाता है , इसने कभी देश के बुनियादी मुद्दों पर सवाल नहीं किया महंगाई रोजी रोटी बेरोजगारी का मसला नहीं उठाया , यह देश को का माहौल खराब करना चाहता है , सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिरकार रिलायंस ग्रुप इस जैसे नफरती को क्यों प्लेटफार्म दे रहा है और मुकेश अंबानी जैसा व्यक्ति क्यों चुप है , यह व्यक्ति अपने प्रोग्राम में सिर्फ विपक्ष और एक समुदाय के खिलाफ प्रोपेगेंडा फैलाता है।
संजय कुमार सिंह- सत्तर साल में जो हुआ है… बहुत से उदाहरण मिल जाएंगे जब पत्रकारों की आड़ में ऐसे लोगों को मीडिया में प्लांट कर दिया गया था। वे जानते ही नहीं हैं कि क्या कर रहे हैं। कुछ चैनल भी शुरू किये गये थे, मीडिया संस्थान तो थे ही। सब मिलकर अब संघ परिवार का सपना पूरा कर रहे हैं। कुछ लोग तभी समझ गये थे, कुछ अभी तक नहीं समझे। जो होना था वह हो रहा है। मेरा सवाल है कि सारी अपेक्षाएं मुसलमानों से क्यों? (कम से कम शीर्षक में) पहले राम मंदिर और अब ज्ञानव्यापी ….. फैसले जो हुए वो सब ने देखा है। अब एएनआई के इस इंटरव्यू और इंडियन एक्सप्रेस के इस प्रसारण से आखिर हो क्या रहा है? कम से कम डराने का काम तो हो ही रहा है। फिर इसे छापने का मतलब? यह पत्रकारिता तो नहीं है। पर पीटीआई – यूएनआई को छोड़कर एएनआई को बढ़ावा दिया जा रहा है और यह छिपा हुआ नहीं है। मेरे ख्याल से पीटीआई ऐसे इंटरव्यू करता नहीं और जो किया था वो पसंद नहीं आया।
साभार- ट्विटर