
अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-
मीडिया में मोदी से अदानी को लेकर सवाल पूछने की हिम्मत है नहीं, मोदी खुद मीडिया के सामने आकर अदानी के मसले पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे नहीं, सरकार का कोई महकमा अथवा सुप्रीम कोर्ट मोदी को अदानी के मसले पर बोलने पर मजबूर नहीं कर सकता तो ले- देकर एक संसद ही बची थी और उसमें भी केवल राहुल गांधी ही वह नेता थे, जो बेख़ौफ़ होकर दिन- रात मोदी से अदानी के मसले पर जवाब मांग रहे थे।
अब संसद भी राहुल के बिना, मोदी के लिए मीडिया, सरकारी महकमे और सुप्रीम कोर्ट की तरह हो गई है, जहां कम से कम मोदी से तो कोई सीधा सवाल- जवाब नहीं करेगा।
अगले साल चुनाव हैं। चुनाव तक अदानी का मामला जेपीसी तक न पहुंचे और संसद व सड़क पर इसको लेकर हंगामा न हो तो मोदी फिर अपने भाषणों में राष्ट्र, धर्म और नेहरू- कांग्रेस के अपने पसंदीदा मुद्दों पर धाराप्रवाह बोलना शुरू कर देंगे।
अदानी का मुद्दा जब तक ऐसी किसी भी जगह गूंजेगा, जहां मोदी से सीधा सवाल- जवाब किया जा सकता है तो धाराप्रवाह भाषण देना तो दूर मोदी के मुंह से इसी तरह बोल नहीं फूटेंगे।
अदानी मसले पर कोई सीधा सवाल- जवाब न करे और राष्ट्र, धर्म और नेहरू- कांग्रेस के मुद्दों पर ही भाषणबाजी करके केवल अगले चुनाव किसी तरह निपट जाएं। फिर यदि मोदी सरकार तीसरी बार आ गई तो उसके बाद अगर अदानी के शेयर पुराने सारे रिकॉर्ड ध्वस्त करके एक ही दिन में अदानी को दुनिया का सबसे दौलतमंद उद्योगपति भी बना देंगे तो भी भारत में लोकतंत्र के तहत आने वाली कोई भी संस्था, इंसान, महकमा आदि में से कोई चूं तक नहीं करेगा। विडम्बना देखिए कि इसके बावजूद इसे लोकतंत्र ही कहा जाएगा, तानाशाही नहीं।