मनीष दुबे-
भारत विश्वगुरु बन चुका है. जिसका डंका ऐसे पीटा जाता है जैसे न पता कितने देशों को बिठाकर खिला रहे हों. इस डंके का ढ़ोल भी समय समय पर फटता रहता है, बशर्ते हम आंखें बंद कर लेते हैं या तो बंद करा दी जाती हैं. उसका कारण है कि हम लोग अभी भी सच्चाई के लिए टीवी और अखबारों पर निर्भर हैं और यहीं लोग दोयम दर्जे की लीचड़ता में घिर जाते हैं.
आज मौजूदा प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात की ऐसी स्थिति सामने आयी जिसने हमारे नीति नियंताओं का ऐसा खोखला ढांचा पेश किया है, जिसे छुपाने के लिए उसी टीवी अख़बार वालों को आगे आना पड़ा, जिसकी बदौलत जनता सच जानने का ढोंग लटकाये घूमती है. ट्रेनों की भारी भीड़ में अपनों के बीच त्योहार की ख़ुशी मनाने का अरमान पाले कइयों की दिवाली आज काली हो गई. कुछ की जान भी चली गई, लेकिन मजाल है जो आपकी टीवी में ये सब दिखा हो? बड़ी बात ये तस्वीरें सूरत की हैं. सूरत सुनकर किसी शक्ल पर ठहर मत जाइएगा, आगे भी पढ़िए.
अंशुल शर्मा नाम के यूजर ने रेलवे मिनिस्टर अश्विनी वैष्णव को टैग कर लिखा है, ‘एन आर 8900276502, भारतीय रेलवे का सबसे खराब प्रबंधन, मेरी दिवाली बर्बाद करने के लिए धन्यवाद. थर्ड एसी का कन्फर्म टिकट होने पर भी आपको यही मिलता है। पुलिस से कोई मदद नहीं. मेरे जैसे कई लोग इसमें सवार नहीं हो सके. @अश्विनीवैष्णव …मुझे कुल ₹1173.95 का रिफंड चाहिए.’
वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने एक्स पर एक वीडियो क्लिप शेयर करते हुए लिखा है, ‘रेलवे की हक़ीक़त अब टीवी पर नहीं आती। दस साल में त्योहारों के समय की भीड़ में कोई सुधार नहीं हुआ। दस साल पहले कम से कम इन बातों को कवर किया जाता था, अब इन्हें ग़ायब कर दिया जाता है। सूरत की यह तस्वीर देख कर याद कुछ नहीं आया क्योंकि भूला ही नहीं था। जो भूल चुके हैं वो याद कर सकते हैं। क्या रेल मंत्री इस तरह से बोगी में घुस कर दिखा सकते हैं? यह किसी को न दिखे इसीलिए वंदे भारत दनादन लाँच की जा रही है ताकि ग़रीब और आम लोग भी पास से गुज़रती वंदे भारत को देख कर चकित हो जाएँ। वो तकलीफ़ भूल कर सपना देखने लग जाएँ। मगर राजधानी से लेकर वंदे भारत तक इन लोगों के लिए कुछ नहीं बदला है।’
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट है, ’42 वर्षीय रामप्रकाश सिंह अपने 36 वर्षीय भाई अंकित के साथ बिहार के भागलपुर, अपने परिवार के साथ त्योहार बिताने की उम्मीद कर रहे थे। उन्होंने परिवार के लिए गिफ्ट खरीदे थे। लेकिन उन्हें नहीं पता था कि जब वे सूरत रेलवे स्टेशन पर अपनी ट्रेन में चढ़ रहे थे तो मची भगदड़ में उनमें से केवल एक ही बच पाएगा।
उनका भाई अंकित, जो शनिवार सुबह सूरत-भागलपुर एक्सप्रेस में चढ़ने की कोशिश में हजारों की भगदड़ में दबकर मारा गया. अंकित वराछा स्थित वाधवान जेम्स में हीरे पॉलिश करने का काम करता था। बड़े भाई रामप्रकाश सिंह 17 साल से सूरत में एक हीरा कारखाने में सुरक्षा गार्ड के रूप में काम कर रहे हैं।
वे सुबह 9 बजे रेलवे स्टेशन पहुंचे और उनके पास S7 स्लीपर कोच में कन्फर्म टिकट थे। लेकिन जब वे ट्रेन स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 4 पर पहुंचे, तो यात्रियों की भीड़ देखकर दोनों चौंक गए। कैसे भी S7 कोच तक पहुंचने के लिए संघर्ष किया, लेकिन कोच के सामने तक जाकर भाई की भीड़ में घुटकर मौत हो गई.