Yashwant Singh : आज राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस के दिन आइए प्रण करें कि रोजगार और स्वास्थ्य को हर व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार बनाने के लिए हम सब मिलकर प्रयास करेंगे। फेंकू उर्फ झांसागुरु के जन्मदिन को राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस के रूप में मनाए जाने के नौजवानों के फैसले का स्वागत करता हूँ।
कहाँ तो झुट्ठा करोड़ों युवाओं को रोजगार देने का झांसा देकर सत्ता में आया और कुर्सी पाने के बाद करोड़ों लोगों की लगी लगाई नौकरियां खा गया। ट्विटर-फेसबुक पर आज का #राष्ट्रीय_बेरोजगार_दिवस और #राष्ट्रीय_बेरोजगारी_दिवस ट्रेंड कर रहे हैं। ये हर भाजपाइयों के मुंह पर तमाचा है।
आप अगर अब भी भाजपाई हैं तो आप युवा विरोधी हैं। आप पहले एक लोकतांत्रिक नागरिक बनिए, फिर हर सत्ताधारी के प्रति आलोचना का भाव रखिए। तब इस देश के नियंता सही रास्ते पर चलेंगे। बेरोजगार नौजवानों ने आर्थिक मोर्चे पर पूरी तरह फेल मोदी सरकार को आइना दिखा दिया है। किसी पीएम का जन्मदिन राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस के रूप में देश भर में मनाया जाए, इससे ज्यादा शर्म की बात उस नेता के लिए कुछ भी नहीं।
Mukesh Kumar : आज बेरोज़गार दिवस मनाया जा रहा है। जिसने भी आज बेरोज़गार दिवस मनाने की कल्पना की उसे बधाई और इस आयोजन को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने वाले भी हौसला अफ़जाई के पात्र हैं।
एक ऐसे दिन जब आत्ममुग्ध शासक बहुरंगी, बेशक़ीमती पोशाकों में सजकर खुद को देवता के रूप में प्रतिष्ठित करने की अहंकारी कामना पालकर बैठा है, उसके गुब्बारे में बेरोज़गारी की पिन चुभाना बहुत ही सार्थक पहल माना जाना चाहिए।
हालाँकि इस आयोजन को लेकर कुछ लोग उत्साह में हैं, कुछ इसे सिरे से खारिज़ कर रहे हैं और कुछ दुविधा में फँसकर अच्छा भी और बुरा भी बता रहे हैं।
मेरी समझ ये कहती है कि प्रतिरोध के बहुत सारे रास्ते होते हैं और कई बार बड़े विरोध और परिवर्तन की आधारशिला छोटे-छोटे प्रतिरोध रखते हैं। इसलिए उन्हें ये मानकर खारिज़ नहीं किया जाना चाहिए कि आंदोलन की सही समझ आपके पास ही है और जब तक आपकी समझ के अनुरूप आंदोलन नहीं होगा आप उसका आकलन दूसरे ढंग से नहीं करेंगे। ये एक तरह का अहंकार है और ऐसे लोग अकसर गच्चा खाने के लिए अभिशप्त होते हैं।
बेहतर समझदारी ये कहती है कि इन प्रतिरोधों के साथ जुड़ा जाए और उनको सही आकार देने, दिशा देने में भूमिका अदा की जाए।
बेरोज़गारी आज सबसे बड़ी समस्या है। ये करोड़ों लोगों के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा कर चुकी है। ज़ाहिर है कि इस मु्द्दे में सबसे ज़्यादा उद्वेलन है, इसलिए इसे जन समर्थन भी उसी स्तर पर मिल रहा है।
राहत की बात ये है कि इसमें सांप्रदायिक, नस्ली या दूसरे तरह के नाकारात्मक उन्माद शामिल नहीं हैे। ये विशुद्ध आर्थिक मु्द्दा है और मौजूदा सत्ताधारियों की सबसे बड़ी कमज़ोरी भी यही है। उनके पास कोई आर्थिक दर्शन, कार्यक्रम या मानचित्र नहीं है। उन्हें इसी मोर्चे पर आसानी से पटखनी दी जा सकती है।
इसलिए विनम्रता के साथ कहना चाहता हूँ कि बेरोज़गारी दिवस को किंतु-परंतु के साथ नहीं, खुलकर समर्थन दीजिए।
पत्रकार यशवंत सिंह और मुकेश कुमार की एफबी वॉल से.
Aarav Sirohi
September 17, 2023 at 9:41 pm
Matlab politics ke chakkar me itni bhi personal hate mat karo ki janmdin par bhi nafrat failane lago!
Tumhe dikkat unke rajnitik kadam se hai unse ya unke astitva se nahi to personal hate mat failao