लखनऊ : मोदी सरकार दलित, आदिवासी व पिछड़े समाज के सामाजिक न्याय के अधिकार को खत्म करने में लगी हुई है। पदोन्नति में आरक्षण के दलितों के संविधान में प्रदत्त मूल अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए संसद में लम्बित बिल को मोदी सरकार ने वापस ले लिया, सातवें वेतन आयोग में ग्रुप सी और डी के पदों को समाप्त कर उत्पीड़ित समुदाय को सरकारी नौकरियों से वंचित कर दिया, आदिवासियों के सीट आरक्षण बिल को वापस ले लिया, राजस्थान व हरियाणा में लचर पैरवी कर आरक्षण के खिलाफ हाईकोर्ट से निर्णय करवाए गए। इससे स्पष्ट है कि केन्द्र सरकार आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आदेश का पालन करते हुए संविधान द्वारा प्रदत्त आरक्षण खत्म कर रही है।
संविधान के उद्देश्य में लिखे सामाजिक न्याय के अधिकार को मोदी सरकार द्वारा खत्म करने के खिलाफ “आदिवासी अधिकार मंच” आवाज उठायेगा और अपने अभियान में आदिवासी आरक्षण के साथ ही दलितों के प्रोन्नति में आरक्षण, अति पिछड़े वर्गों व पिछड़े मुसलमानों को अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण में अलग आरक्षण कोटा देने व निजी क्षेत्र में भी आरक्षण देने के सवालों को उठायेगा। यह बातें आज नगंवा के केवटम गांव में आयोजित आदिवासी अधिकार सम्मेलन में पूर्व विधायक व मंत्री विजय सिंह गोंड ने कहीं। सम्मेलन की अध्यक्षता पूर्व प्रधान शेषमणि गोंड ने और संचालन राम खेलावन गोंड ने किया।
उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र के भाजपा के सासंद खुलेआम झूठ बोल रहे हैं और जनता को गुमराह कर रहे हैं। सांसद का यह कहना कि वह तीन बार संसद में आदिवासियों के सवाल को उठा चुके हैं, सरासर झूठ है। सच यह है कि पिछले ढाई सालों में एक बार सांसद ने संसद में एक मिनट ग्यारह सेकण्ड का वक्तव्य रखा है और वह भी आदिवासियों के आरक्षण और कोल, धागंर जैसी आदिवासी जाति व चंदौली समेत शेष प्रदेश में गोंड, खरवार को आदिवासी का दर्जा देने के लिए नहीं था। उन्होंने कहा कि इस झूठ की राजनीति पर उन्हें कोई आश्चर्य नहीं है क्योंकि सांसद जिस पार्टी और उसके जन्मदाता आरएसएस से आते हैं, उनका तो सिद्धांत ही है कि एक झूठ को सौ बार बोलो तो वह सच हो जाता है।
सम्मेलन में आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) के प्रदेश महासचिव व आदिवासी अधिकार मंच के संयोजक दिनकर कपूर ने कहा कि 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस पर झाबुआ जिले के अलीराजपुर में मोदी की रैली में लगा ‘आदिवासी उन्मूलन‘ का बैनर और पोस्टर हकीकत में बदलता जा रहा है। यह सरकार छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उत्तराखण्ड, आंध्र प्रदेश, असम, तेलगांना, उड़ीसा से लेकर देश के हर हिस्से में रहने वाले आदिवासी समाज के अस्तित्व और अस्मिता पर हमला करने में लगी है। असम में बाबा रामदेव को ज़मीन देने के लिए 1132 एकड़ पर बसे आदिवासियों को पुलिस के बल पर बेदखल कर दिया गया, छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज के खिलाफ सरकार ने युद्ध छेड़ा हुआ है। आए दिन लड़कियों तक के साथ बलात्कार और हत्याएं हो रही हैं।
उन्होंने कहा कि झारखण्ड में आदिवासियों की जमीन के संरक्षण के लिए सभी कानून खत्म किए जा रहे हैं। उड़ीसा में कारपोरेट घरानों के लिए आदिवासियों की जमीन से बेदखली हो रही है। मोदी सरकार ने सघन जंगलों में मुख्य खनिजों के खनन पर लगी रोक को भी हटा दिया है, जिससे आदिवासी बहुल यह इलाके देशी विदेशी पूंजीपतियों के हवाले किए जायेंगे और आदिवासियों को बर्बाद किया जायेगा। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की आदिवासी उन्मूलन की कार्रवाइयों के खिलाफ पूरे देश में चल रहे आदिवासी व लोकतांत्रिक आंदोलन को आइपीएफ की मदद से आदिवासी अधिकार मंच एकजुट करेगा और शीतकालीन सत्र में मोदी सरकार को संसद के अंदर व बाहर घेरा जायेगा। सम्मेलन को केवटम के प्रधान राम प्रसाद पुजारी, राम नारायन, विनोद कुमार मरकाम, मुस्तकीम, रामेश्वर प्रसाद, पिन्टू गोंड़, राम खेलावन गोड़, इंद्रदेव खरवार आदि ने सम्बोधित किया।