Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

अतिरिक्त उपाय नहीं किए तो रेल टिकट कन्फर्म होने की कोई गारंटी नहीं

RAIL

भारतीय रेल, औकात नापने का ऐसा पैमाना है जिससे हर किसी का कभी न कभी वास्ता पड़ता है। राजा हो रंक शायद ही कोई बचा हो। कुछ दिन पहले एक दिलचस्प सर्वे पढ़ा था। सर्वेकर्ता एजेन्सी ने रिश्वत देने के मामले में राजनेताओं व ब्यूरोक्रेटस से राय ली थी कि क्या आपको कभी रिश्वत देने की जरूरत पड़ी। लगभग ९० फीसद लोगों ने स्वीकार किया कि उन्होंने कभी न कभी रेलवे में रिश्वत देने की जरूरत पड़ी है। यह भी कहीं पढऩे को मिला था कि महात्मा गांधी के लिए एक बर्थ के जुगाड़ हेतु उनके सहायकों को रिश्वत देनी पड़ी थी।

भ्रष्ट सेवा प्रदाताओं की सूची में रेलवे अभी भी अव्वल बना हुआ है। यानी की यदि सामान्य ज्ञान की प्रतियोगिता में खुदा न खास्ता यह सवाल आ जाए कि भारत में परमभ्रष्ट कौन तो आँख मंूदकर जवाब दीजिए हमारी भारतीय रेल। रेलवे के टिकिट की महत्ता इतनी है कि… लोकसभा-विधानसभा की टिकट भले कन्फर्म हो जाए पर यदि कोई अतिरिक्त उपाय नहीं किए तो रेलवे के टिकट कन्फर्म होने की कोई गारंटी नहीं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अतिरिक्त उपाय कई तरह के हैं। यदि जनरल क्लास से शुरू करें तो कुली, कुछ अतिरिक्त पैसे लेकर व सीट का बंदोबस्त कर देता है। कुली से आगे बढ़े तो आरपीएफ और रेल पुलिस के बंदे बैठने भर का इन्तजाम करवा देंगे। टीटी को पटा लिया तो फिर सोने में सुहागा। सेकन्ड क्लास में जाना हैं तो दलाल फस्र्ट। दलाल एक घंटे पहले खरीदी गई टिकट को कन्फर्म करवाने का माद्दा रखता है।

RAIL

यदि रेलवे के बुकिंग क्लर्क से लेकर स्टेशन मास्टर से जान पहचान है तो पचहत्तर परसेंट कनफर्मेशन की गारंटी। किसी विधायक, मंत्री या सांसद का डीआरएम लेटर लग जाए तो भी उम्मीद कर सकते हैं। वैसे यह- कौन नेता कितना पावरफुल है इसके आंकलन के बाद तय होता है। एसी फर्स्ट की ९० फीसदी सीटें प्रोटोकाल वालों के लिए तय है। स्वतंत्रता संग्राम ताम्रपत्रधारी और निर्वाचित नेतागण, या ज्यूडिशियरी के लोग। बचे १० प्रतिशत तो आप भले टाटा-बिड़ला हों एचओ कोटा नहीं लगाया तो टिकट कन्फर्म नहीं।

एसी के दूसरे और तीसरे दर्जे का भी यही हाल है। चाहे एक माह पहले टिकट कटाएं यदि वेटिंग मिली है तो वह मंथरगति से खिसककर दो-चार कम हो जाएगी। आरएसी है तो एक में आकर रूक जाएगी। बिना पैरवी, बिना रिश्वत, बिना एच ओ कोटा के आप भूल जाइए कि सीट मिलेगी। कुल मिलाकर भारतीय रेल हमारे राष्ट्रीय चरित्र का चलायमान प्रतीक है। कोटा परमिट सिस्टम पूरे देश से भले ही चला गया हो लेकिन रेलवे में कोटा का दायरा साल-दर-साल बढ़ जाता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

रेलवे में अब दो दर्जे के मुसाफिर सफर करते हैं- एक कोटा वाले दूसरे बिना कोटा वाले साधारण लोग। साधारण लोगों के लिए दलाल और टीटी जोंक की भांति है। दो सौ की टिकट पर पांच सौ का भुगतान। मैंने एक सांसद मित्र से कहा कि सदन में रेलवे के कोटा सिस्टम पर सवाल उठाओ..? तो उनका जवाब था- कि क्या मुझे पागल कुत्ते ने काटा है कि अपनी ही फजीहत का इन्तजाम करवा लूं। अभी तो कम से कम सीट मिल जाती है कल फर्श तक में सोने के लाले पड़ जाएंगे। रेलवे के कोटा सिस्टम पर न कोई बात करना चाहता और न ही रेलवे ये बताना चाहता कि किस-किस भांति के कोटे का प्रावधान उसके पास है। यदि आप मेरी बात पर भरोसा कर सकते हैं तो यह जान ले कि, रेलवे में एक समान्तर तंत्र है जिसे दलालों के माध्यम से रेलवे के ही कुछ लोग संचालित करते हैं और इस काले धंधे का टर्न ओवर भी करोड़ों अरबों का है।

रेलवे की फेयर व आरामदेय यात्रा सुनिश्चित करना विदेश से कालाधन वापस लाने जैसा दुरूह है। इस दुरूह व्यवस्था को न तो मंत्री सुधारना चाहते न अफसर क्योंकि ये सैलून में चलते है और इनके टिकट के कनफर्म होने की सौ फीसदी गारंटी खुद रेलवे स्वीकार करता है। यदि देश की सत्ता व्यवस्था का नियामक मुझे बना दिया जाए तो सबसे पहला मेरा फैसला यही होगा कि जो संसद सदस्य आम आदमी की भांति रेलवे के सामान्य क्लास में सफर करके सबसे पहले दिल्ली पहुंचेगा उसे ही रेल मंत्री बनाऊंगा और वह भी इस शपथ पत्र के साथ कि वह महीने में एक बार सामान्य दर्जे में अवश्य यात्रा करे।

यह रेलवे ही है जिसने आजादी की लड़ाई के लिए मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा गांधी बना दिया। दक्षिण अफ्रीका की रेल यात्रा में अंग्रेजों ने उन्हें ऊँचे दर्जे से बेदखल कर प्लेटफार्म में फेंक दिया था। गांधी ने विषमता के खिलाफ तभी से लड़ाई का संकल्प लिया। इसी संकल्प के साथ वे भारत आए। भारत को समझने के लिए उन्होंने सबसे पहले रेल को ही माध्यम चुना और साधारण दर्जे में सवार होकर देश की यात्रा की। रेल की तीसरी श्रेणी को गांधी श्रेणी कहा जाने लगा और यह गांधी श्रेणी आम आदमी की हैसियत का प्रतीक बन गई।

Advertisement. Scroll to continue reading.

आजादी के बाद यह तीसरी श्रेणी हटा तो दी गई पर कुछ नहीं बदला। रेल आज भारतीय समाज की विषमता का साक्षात रूप है। समाज में जितने आर्थिक वर्ग के लोग हैं उतनी ही श्रेणियां हैं। भारतीय रेल आज भी देश की नग्न विषमता को रोजाना ढोती हैं। एक बाद एक पीढ़ी निकल रही है, यह देखते हुए। मधु दण्डवते एक रेल मंत्री हुए जिन्होंने सामान्य दर्जे को लकड़ी के फट्टे को गद्दीदार बना दिया। अन्य रेल मंत्री यथा स्थिति वादी निकले। रेल के जरिए सामाजिक वर्ग विभेद की कोशिशों को जस का तस रखा। क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि- रेलवे के सभी दर्जे एक से हो जाएं। आम आदमी भी एसी का सुख ले या फिर खास आदमी को भी कबूतर के दडबे जैसे डिब्बे में सफर करना पड़े।

लेखक जयराम शुक्ल मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनसे संपर्क 8225812813 के जरिए किया जा सकता है.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement