ज़ी मीडिया कॉर्पोरेशन लि. ने ज़ी रिसर्च ग्रुप को भंग कर दिया है। पिछले तीन-चार सालों से राकेश खर इसके चीफ थे। ज़ी रिसर्च ग्रुप वर्ष 2009 में बनाया गया था। इसका उद्देश्य ज़ी न्यूज़ और ज़ी बिज़नेस के प्राइम टाइम कार्यक्रमों के लिए क्वॉलिटी कंटेंट बनाना था। ज़ी के सभी प्राइम टाइम कार्यक्रमों, उदाहरण के लिए जैसे- ‘DNA with Sudhir Chaudhary’का कंटेंट ज़ी रिसर्च ग्रुप द्वारा ही तैयार किया जाता था। इसके पीछे राकेश खर की नेतृत्व क्षमता थी जो हमेशा संतुलित और क्वॉलिटी पत्रकारिता को बढ़ावा देते थे। जब तक आलोक अग्रवाल ज़ी के सीईओ रहे वो न्यूज़ हमेशा कंटेंट को लेकर राकेश की वस्तुनिष्ठता के कायल रहे और ज़ी रिसर्च ग्रुप के शोधकर्ताओं को प्रेरित करते रहे।
आलोक अग्रवाल ने मधुसूधन आनंद के नेतृत्व में एक मॉनीटरिंग (अनुवीक्षण) विभाग भी बनाया था जो ज़ी ग्रुप के चैनलों के पूर्वाग्रही कंटेंट की निगरानी और नियंत्रण करता था। समस्या तब शुरू हुई जब समीर अहलूवालिया ज़ी न्यूज़ के सीईओ बने। समीर की नीति ज़ी न्यूज़ के कंटेंट के भगवाकरण की थी। समीर और सुधीर चौधरी राकेश खर की निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ पत्रकारिता नीति के खिलाफ थे। ज़ी ग्रुप के चैनलों के मॉनीटरिंग विभाग में भितराघात करके समीर अहलूवालिया ने कुछ ही महीनों में ज़ी रिसर्च ग्रुप को बर्बाद कर दिया।
1 अगस्त, 2014 को समीर अहलूवालिया ने ज़ी रिसर्च ग्रुप को भंग कर दिया और राकेश खर को तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया। राकेश की टीम में अन्य शोधकर्ता थे- त्रितेश नंदन, श्वेतांक शेखर दुबे, रितु राज, पंकज शर्मा, कृष्णा उप्पूलूरी, राशि अदिती घोष और रोहित जोशी थे। राकेश ज़ी न्यूज़ से इस्तीफा दे कर नेटवर्क18 से जुड़ गए, त्रितेश को संपादकीय विभाग में भेज दिया गया, पंकज शर्मा को ‘आई एम डीएनए’ प्रोजेक्ट में भेज दिया गया और रोहित जोशी का तबादला ज़ी बिज़नेस में कर दिया गया।
श्वेतांक एक अनुभवी पत्रकार हैं जिन्होंने हाल ही में टाइम्स ऑफ इंडिया छोड़ कर ज़ी रिसर्च ग्रुप ज्वाइन किया था। लेकिन उन्हें भी जबरन इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया। श्वेतांक ने नम आंखों से संगठन को अलविदा कहा। संगठन छोड़ने के बाद रितु राज और कृष्णा उप्पूलूरी क्या कर रहे हैं, इस विषय में जानकारी नहीं है। राशि अदिति घोष को चैनल ने ज़ी न्यूज़ के संपादकीय विभाग में जाने का ऑफर दिया था लेकिन उन्होंने स्वीकार नहीं किया। राशि ने चैनल से इस्तीफा दे कर मीडिया इंडस्ट्री ही छोड़ दी और ‘वर्ल्ड एनर्जी काउंसिल’ के लिए काम करने लगीं।
इस तरह ज़ी में आने के कुछ ही महीनों के भीतर समीर अहलूवालिया ने ज़ी मीडिया कॉर्पोरेशन की एक पुरानी और महत्वपूर्ण संस्था को तबाह और बर्बाद कर दिया। मई 2014 में ज़ी ग्रुप के मॉनीटरिंग विभाग को बर्बाद करने के बाद समीर का ये दूसरा कारनामा था। अब समीर और सुधीर का ज़ी ग्रुप पर पूरा नियंत्रण है। इनकी नीतियों के कारण ज़ी की पत्रकारिता में कोई निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता नहीं बची है। प्रबंधन द्वारा साफ निर्देश दिए गए हैं कि जिंदल के बारे में कोई भी ख़बर न तो प्रसारित की जाएगी और न ही वेबसाइट पर पोस्ट की जाएगी। यही नहीं जिंदल की कंपनियों की ख़बरें भी नहीं दिखायी जाएंगी।
प्रबंधन ने अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी से संबंधित ख़बरें भी हाईलाइट करने से मना कर दिया है। कुल मिला कर इस समय ज़ी में समीर और सुधीर की तानाशाही चल रही है और सभी को पूर्वाग्रही पत्रकारिता करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। हकीक़त ये भी है कि अधिकतर कर्मचारी ऐसी पत्रकारिता से आजिज आ चुके हैं।
जी ग्रुप में कार्य कर चुके एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित. आपको भी कुछ कहना-बताना है? हां… तो [email protected] पर मेल करें.
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