अखबार अगर क्रिएटिव नहीं है तो जिंदा लाश है. जैसे हिंदी के अखबारों को देख लीजिए. मुर्दा टाइप दिखते हैं हिंदी अखबार. कभी इंडियन एक्सप्रेस, कभी द हिंदू तो अक्सर टेलीग्राफ अखबार चौंकाते रहते हैं.
टेलीग्राफ ने आज संविधान दिवस के मौके पर जो लीड खबर लगाई है, उसकी हेडिंग में सिर्फ हंसी है, ‘हा हा’। इस हा हा कारी हेडिंग के नीचे सब हेडिंग है, ‘हां आज संविधान दिवस है’.
फिलहाल टेलीग्राफ अखबार को रोज हिंदी अखबार के सठियाए-बनियाए मालिकों को जरूर पढ़ना चाहिए और खुद पर शर्म करना चाहिए कि वे इतने मुर्दा क्यों हैं…
वैसे यह भी सही है कि जिस समाज के लोग मुर्दा होते हैं वहां उन्हें कंटेंट भी मुर्दा टाइप ही परोसा जाता है. हिंदी पट्टी अपनी बौद्धिक दरिद्रता के कारण चेतना के सबसे निम्नतम स्तर पर जीता है और इसी दारिद्रय को भुनाते हैं हिंदी अखबार के धूर्त मालिकान…
आज के टेलीग्राफ अखबार के फ्रंट पेज लीड पर वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह की टिप्पणी है-
“महाराष्ट्र मामले में फैसला आ गया। सुप्रीम कोर्ट में आज फैसला आएगा, इसे कुछ अखबारों में बहुत महत्व दिया गया है। द टेलीग्राफ ने याद दिलाया है कि आज संविधान दिवस है और शीर्षक लगाया है, लोकतंत्र के स्तंभ जब समय ले रहे हैं ….. (होटल) हयात भार उठाए हुए है।”
देखें आज के द टेलीग्राफ अखबार का फ्रंट पेज-
भड़ास एडिटर यशवंत सिंह का विश्लेषण.