राघवेंद्र दुबे ‘भाऊ’-
दैनिक जागरण, बिहार और बंगाल के स्टेट हेड (राज्य संपादक ) रहे ये हैं , आदरणीय शैलेन्द्र दीक्षित जी । आज इनका जन्मदिन है। मेरी तरफ से भी अशेष मंगलकामनाएं।
सर , लिखने का मूड बन जाये तो 250 से 300 पेज तक की किताब आप पर भी , मात्र 15 दिनों में ही संम्भव है । आप उसके योग्य भी हैं ।
जाने क्यों जिस सम्बोधन से मुझे चिढ़ रही और जिसमें मुझे औपनिवेशिक बू आती थी, हम कभी – कभी उसी से आपको संबोधित करते रहे। और यह आपके व्यक्तित्व का असर था कि ‘ सर ‘ शब्द भैया का समानार्थी होता गया । उसी तरह ध्वनित भी होने लगा ।
‘ आज ‘ अखबार के मालिक शार्दूल विक्रम गुप्त जी और पत्रकारिता के नैपोलियल व्यक्तित्व विनोद शुक्ल जी के बाद ‘ भैया ‘ संबोधन आपके ही साथ जुड़ा। आप ‘ भैया ‘ या ‘ संपादक जी ‘ आज भी कहे जाते हैं। ठीक उसी तरह जैसे चन्द्रशेखर जी प्रधानमंत्री हो जाने और उसके बहुत बाद अंतिम सांस तक ‘ अध्यक्ष जी ‘। लोगों के दिल में बना यह ओहदा बिरलों को नसीब होता है । पद से हट जाने के बाद न कोई ‘ अध्यक्ष जी ‘ रह जाता है न ‘ सम्पादक जी ‘ । आप आज भी ‘ संपादक जी ‘ ही कहे जाते हैं ।
घाट – घाट का पानी पीते लखनऊ , दिल्ली , कोलकाता होते पटना 2003 में पहुंचा था । अपने एकदम शुरूआती बहुत रोमांचक , जोखिम वाले , दुस्साहसिक एसाइनमेंट आज तक मेरी थरथराती याद हैं ।
2004: उफनाई और सब कुछ तबाह कर देने , लील लेने को उतारू नारायणी , गंडक , भूतही बलान नदी में बांस – बांस तक चढ़ जाती लहरों पर , इस सिरे से उस सिरे तक आम लदी एक बेऔकात डोंगी में बैठकर दरभंगा से कुशेश्वर स्थान तक शाम ढले से रात तक की मीलों यात्रा । बस मल्लाह और मैं । नदी के भंवर में जब कभी डोंगी नाच जाती थी , कलेजा मुंह को आ जाता था । बहुत नाराज हुए थे आप – प्लीज इस तरह का जोखिम न लिया करो .. कुछ हो जाता तो मैं क्या मुंह दिखाता ?
आपने मुझे पूरे बिहार की बाढ़ की विभीषिका कवर करने भेजा था । बाढ़ के मारे , रोते – कलपते लोगों से अलग मैं ऐसे आदमियों को अपनी रिपोर्ट में खोज लाया जो विपदा एम्यून होकर अब बाढ़ के साथ जीने लगे थे और छाती तक पानी में डूबकर कर भी ‘ कमर की कटाव ‘ से निकले मादक गीत गाने लगे थे । कुशेश्वर स्थान : कुछ मनबढ़ लड़कों ने एक फ़िल्म के पोस्टर में करीना कपूर की अनावृत नाभि को खतरे के निशान में बदल दिया था । बाढ़ का पानी नाभि के नीचे ही था । इस यात्रा में में मैं धीरेंद्र ब्रह्मचारी , सर गंगानाथ झा के गांव भी गया ।
आपने ही भेजा था सुल्तानगंज ( भागलपुर ) से देवघर ,बाबा वैद्यनाथ धाम । कांवरियों के साथ का तकरीबन 101 किलोमीटर का यह यात्रावृतांत पूरे एक पेज में ‘ कांवरियों के साथ – साथ राघवेन्द्र दुबे ‘ बाइलाइन से छपा ।
जागरण के ‘ इंटेलेक्चुअल फेस ‘ के लिये समकालीन विमर्श का परिशिष्ट ‘ कसौटी ‘ थी तो आपकी परिकल्पना लेकिन उसका प्रभार आपने मुझे सौंपा । देश भर के स्थापित लेखकों , विचारकों , अकादमिकों से लेख मंगाना और संपादकीय लिखना मेरा काम था । पटना से दिल्ली तक तमाम बुद्धिधर्मियों के बीच अपनी पहचान और पैठ बनाने का अवसर मुहैया कराने के लिये आपका कृतज्ञ हूं । दिल्ली में वही कमाई , कसौटी वाली ही खा रहा हूँ । ‘ अपने ही बाग की धूप में बागवान ‘ आपकी ही मुहिम थी । 10 – 12 ऐसे अभियान मुझे याद हैं , जो आपने चलवाये और जिससे वह तबका जो जागरण नहीं पढ़ता था , वह भी जागरण का फैन हुआ । आपने मुझे फ़िल्म फेस्टिवल और लिट् फेस्टिवल से जोड़ा । मुझे जागरण के लिये अपरिहार्य और बौद्धिक संपदा का तमगा दिला दिया ।
ठीक हैं आप राजेन्द्र माथुर या प्रभाष जोशी नहीं रहे । हो भी नहीं सकते थे । आपने कभी दावा भी नहीं किया जैसा एक दूसरे राज्य के स्टेट हेड नटई भर दारू चांप लेने के बाद अक्सर करते रहे । आज भी करते हैं ।
लेकिन एक कुशल संगठनकर्ता , प्रतिभा की परख , चयन और प्रोत्साहन , लोगों को जोड़ने , अद् भुत नेतृत्व क्षमता और प्रो इम्प्लाई रुख के व्यापक सन्दर्भों में पूरी हिंदी पट्टी में आपकी कोई मिसाल नहीं है । आप नवरत्न जुटा सकते हैं , उनके नखरे भी उठा सकते हैं उन्हें संरक्षण भी दे सकते हैं , देते रहे । इस मायने में नहीं है कोई दूसरा शैलेन्द्र दीक्षित ।
मैंने अपना अधिकतम बेहतर अखबार को दिया , कभी एहसास तक नहीं हुआ नौकरी कर रहा हूं ,तो यह आपकी ही वजह से आपके ही नेतृत्व में संभव था । लेकिन आपने कुछ डगरा के बैगन , मतलब परस्त और पीठ में छुरा मारने वाले लोगों को भी प्रोत्साहित कर दिया , हो सकता है यह अति उदारता में हुआ हो । कुछ के लिये जागरण में फिर एंट्री का दरवाजा भी आपने ही खुलवाया । आप इन्हें क्यों न पहचान सके ? इस चक्कर में कुछ बहुत प्रतिभाशाली मारे गए । सुविज्ञ दुबे ‘ जनेवि ‘ जैसे प्रतिभाशाली के साथ नाइंसाफी हुई । राज्य ब्यूरो में आखिर कुछ चुगद आप जैसे पारखी के होते कैसे बने रह गए?
मुझे तो आपने मेरा वांछित दिलाया । यह कम नही है कि अखबार मालिकों में एक , लखनऊ , गोरखपुर , पटना , रांची , सिलीगुड़ी के निदेशक मुझे जागरण की बौद्धिक संपदा कहते थे । कुछ मेरी काबिलियत तो थी लेकिन बुलन्दी आपने दिलाई ।
राजनीतिक रिश्ते बनाने में आप जरूर कच्चे रहे । उमाशंकर दीक्षित , शीला दीक्षित से लेकर कांग्रेस के भीष्म पितामह रहे द्वारिका प्रसाद मिश्र के बेटे तत्कालीन सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र तक पारिवारिक संबन्ध होने के बावजूद आपने कोई लाभ नहीं उठाया । हां कांग्रेस के लिये एक सॉफ्ट कॉर्नर आप में हमेशा बना रहा । आपने कब राजीव गांधी को भैया और राहुल गांधी को भतीजा कहना शुरू किया ये मैं जरूर नहीं जानता ।
मुझे आप पर गर्व है । आपके बनाये दो दर्जन संपादकों में तो तीन – चार स्टेट हेड भी हैं । प्रतिभा पहचाने , जुटाने , सलीके से काम ले लेने और अखबार को वांछित ऊँचाई तक ले जाने में आपका कोई जवाब आज भी नहीं है । आपने जागरण की कई यूनिटें आनन – फानन स्थापित कीं । आप सही मायनों में लांचिंग एडिटर रहे । आपने अखबार ही नहीं प्रतिभाएं भी लांच कीं ।
आपका डिजिटल वेंचर ‘ बिफोर प्रिंट ‘ भी बहुत कामयाब है । सुना है वह बिहार का लीडर न्यूज पोर्टल हो चुका है । उसका विस्तार कीजिये । दिल्ली – लखनऊ तक । दिल्ली में उसे मैं संम्भाल लूंगा । हो सके तो उसमें मेरा यह पत्र हूबहू छपवा दीजिएगा ।
जन्मदिन की अशेष मंगलकामनाएं । आप स्वस्थ्य रहें , शतायु हों । प्रणाम आपका ही भाऊ