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सुख-दुख

टीवी चैनलों पर बीजेपी सरकार के समर्थन में तर्क गढ़ने में वाकपटु प्रवक्ताओं को पसीने आ रहे हैं

Sheetal P Singh : सरकार बनने के बाद मैंने आत्मावलोकन बढ़ाया है। साबित हुआ कि जो मैं सोचता समझता हूँ वही सही और आख़िरी नहीं है। देश ने मेरे ख़िलाफ़ तय किया। नई सरकार की दो तरह की आलोचनायें आ रही हैं। एक वे जो पहले “मोदी” के व्यक्तित्व कृतित्व के मुसलमान होने / वामपंथी होने / आपियन होने / कांग्रेसी होने के नाते निन्दक / आलोचक थे, अब ज़्यादा ज़ोर से रेलभाड़े और प्याज़ पर “हमने तो पहले ही कहा था ” वाली तर्ज़ पर तेज़ चल पड़े हैं, दूसरे वे जो ठोक बजा कर तथ्यों के आधार पर सरकार के क़दमों की कमी को उजागर कर रहे हैं।

<p><img class=" size-full wp-image-15041" src="http://www.bhadas4media.com/wp-content/uploads/2014/06/images_kushal_sheetalpsingh.jpg" alt="" width="829" height="445" /></p> <p>Sheetal P Singh : सरकार बनने के बाद मैंने आत्मावलोकन बढ़ाया है। साबित हुआ कि जो मैं सोचता समझता हूँ वही सही और आख़िरी नहीं है। देश ने मेरे ख़िलाफ़ तय किया। नई सरकार की दो तरह की आलोचनायें आ रही हैं। एक वे जो पहले "मोदी" के व्यक्तित्व कृतित्व के मुसलमान होने / वामपंथी होने / आपियन होने / कांग्रेसी होने के नाते निन्दक / आलोचक थे, अब ज़्यादा ज़ोर से रेलभाड़े और प्याज़ पर "हमने तो पहले ही कहा था " वाली तर्ज़ पर तेज़ चल पड़े हैं, दूसरे वे जो ठोक बजा कर तथ्यों के आधार पर सरकार के क़दमों की कमी को उजागर कर रहे हैं।</p>

Sheetal P Singh : सरकार बनने के बाद मैंने आत्मावलोकन बढ़ाया है। साबित हुआ कि जो मैं सोचता समझता हूँ वही सही और आख़िरी नहीं है। देश ने मेरे ख़िलाफ़ तय किया। नई सरकार की दो तरह की आलोचनायें आ रही हैं। एक वे जो पहले “मोदी” के व्यक्तित्व कृतित्व के मुसलमान होने / वामपंथी होने / आपियन होने / कांग्रेसी होने के नाते निन्दक / आलोचक थे, अब ज़्यादा ज़ोर से रेलभाड़े और प्याज़ पर “हमने तो पहले ही कहा था ” वाली तर्ज़ पर तेज़ चल पड़े हैं, दूसरे वे जो ठोक बजा कर तथ्यों के आधार पर सरकार के क़दमों की कमी को उजागर कर रहे हैं।

आश्चर्य यह है कि सोशल मीडिया पर नई सरकार के प्रशंसकों के कमेंट्स सिर्फ “आप” के अड्डों पर ही मिल रहे हैं बाक़ी लगभग नदारद! टीवी चैनलों पर बीजेपी सरकार के समर्थन में तर्क गढ़ने में वाकपटु प्रवक्ताओं को पसीने आ रहे हैं। मोदी मीडिया से ग़ायब हैं पर १८ घंटे दिल्ली को समझने में लगा रहे हैं, उन्हें बहुत कुछ समझना / पढ़ना है। यह जुटाई / भड़काई भीड़ का मोनोलाग वाला मंच नहीं है real delivery का प्लेटफ़ार्म है जहाँ बाबा रामदेव टाइप छक्केबाजी (जो २३ रु लीटर पेट्रोल / टैक्स प्रणाली का खात्मा / मनमानी संख्या के कालेधन से “सोने की चिड़िया” बनाने का स्वप्न) तो चल नहीं सकती बल्कि”कड़वी दवाई” की दरकार रखती है। मोदी यह सच जान गये हैं। उनके नवरत्नों में कुछ को छोड़ बाक़ी एडजस्टमेंट्स हैं। अभी विशेषज्ञों को उन्होंने rope in किया नहीं। बजट आ जाये तो कलई खुले। चलिये अब तो बस चन्द लमहे बाक़ी हैं!

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सरकार बजट की तैयारियों के अंतिम क्षणों में है। मार्क्सवादी शब्दकोश के हिसाब से मोदी की सरकार पूँजीवादी सरकार है जो विचारधारा से दक्षिणपंथी है। मेरी यह सुस्पष्ट धारणा है कि एक पूँजीवादी सरकार को ठीक पश्चिम की तरह खुलकर अपनी नीतियाँ लागू करनी चाहिये। FDI, विनिवेश, भूमि अधिग्रहण, औद्योगिक परिवेश में नौकरशाही की लाल फ़ीताशाही का अन्त और hire n fire की श्रमनीति। जब पूँजीवादी सरकारें कांग्रेस की तरह तथाकथित जनोन्मुख नाटक करती हैं और सब्सिडी के खेल खेलती हैं तो वे देश को और देशवासियों के फ़ैसलों को जो वे पूँजीवादी व्यवस्था की बाबत बदलाव के लिये ले सकते हैं, विलम्बित करती हैं।

हम में से वे जो पश्चिम से परिचित हैं, वहाँ हैं (NRI),या वे जो communication के प्रसार के चलते वहाँ या वहाँ जैसे माहौल में होना चाहते हैं,उस स्वप्न के लिये बेचैन हैं, उनके लिये यह बड़ी बेचैनी का सबब है। जो उपरोक्त में से नहीं हैं उनके स्वप्न कुंद पड़े हैं क्योंकि सब्सिडी सिस्टम ने उन्हें भी अपने भ्रष्टाचार का हिस्सा बनाकर चोर बना लिया है । मोदी सरकार के पास स्पष्ट बहुमत होने के चलते पूँजीवादी सफलता को आज़माने का पूरा मौक़ा है, देखते हैं आने वाले बजट के पिटारे से समझौता निकलता है या साहस?

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अमर उजाला, इंडिया टुडे,  चौथी दुनिया आदि अखबारों-पत्रिकाओं में वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी. सिंह के फेसबुक वॉल से.

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