Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

शोक सन्देश के शीर्षक में ‘मौत’ शब्द लिखना उचित है या नहीं?

इंदौर डेडलाईन से दिनांक 29 नंवबर को 04:41 पर जारी एक शोक सन्देश में प्रयुक्त शब्दावली के मायने नहीं समझ पा रहा हूँ| न ही मैं या समझ पा रहा हूँ क़ि यह शोक सन्देश था या आज के आधुनिक दौर में मीडिया संस्थानों के सिर चढ़ा सनसनीखेज कारनामों को प्रकाशित प्रसारित करने का एक ताना-बाना… मेरा आशय 21 मार्च 1961 को जन्मी देश की न्यूज एजेंसी यूएनआई से है| अपने ही संस्थान में इंदौर में कार्यरत मीडियाकर्मी के निधन पर जारी समाचार में मीडियाकर्मी के निधन पर खबर लिखी जिसका शीर्षक था- ‘यूएनआई कर्मी योगेन्द्र उपाध्याय की मौत’| यह खबर मुझे यूनीवार्ता के अधिकारिक पोर्टल पर दिखाई दी|

जब प्रतिष्ठित समाचार एजेंसी के ब्यूरो रत्नेशजी जैसे वरिष्ठ पत्रकार ही इस तरह की शब्दावली का इस्तेमाल करेंगे तो अब किसे हिन्दी का संजीदगी से कार्यरत पत्रकार माने, हिन्दी के श्रेष्ठ शब्दावली प्रयुक्त समाचारों के लिए अख़बार संस्थान एजेंसी पर निर्भर रहते है| आज के दौर की बात तो छोड़िए श्रीमान, मुझे धुँधला-धुंधला याद हैं क़ि पहले भी लोग और आकाशवाणी सहित तमाम समाचार पत्र अधिकृत खबरों के लिए यूनीवार्ता / भाषा पर निर्भर होते थे| आदर्श पैमाने पर कभी कार्य करने वाली एजेन्सी संभवता अपने ही पत्रकारों की करतूतों की वजह से अपनी साख खोती जा रही है|

Advertisement. Scroll to continue reading.

आप और हम जैसे सामान्य लेखन का ज्ञान रखने वाले लोग भी जानते है क़ि ‘मौत’ शब्द का इस्तेमाल कम से कम शोक संदेश में तो नहीं किया जाता| क्या इस शब्द की जगह कुछ अन्य उपयुक्त सम्मान जनक शब्दों का उपयोग नहीं किया जा सकता था? जैसे निधन, अवसान, अंतिम सांस लेना आदि आदि| जिज्ञासावश जब इसी सन्दर्भ में मेरे द्वारा इंदौर ब्यूरो श्री रत्नेश जी से चर्चा की ओर जानने की कोशिश क़ि तो वे बड़े गर्व से बोले कि हाँ, उन्होंने ही शोक संदेश जारी किया था..  उन्होंने कहा- ”मुझे जो ठीक लगा मैंने वही लिखा है… आपको आपत्ति है तो आप शब्द बदल लेवें” और फिर फ़ोन काट दिया। जब मैंने इसी तारतम्य में इंदौर में यूनीवार्ता के पत्रकार जितेंद्र सिंह यादव जी से फोन पर चर्चा की और उन्हें बताया कि आपके ब्यूरो से मेरी इस तरह की बात हुई है तो उन्होंने कहा क़ि ‘जब आपकी ब्यूरो से चर्चा हो चुकी है तो फिर मैं कुछ नहीं कह सकता हूँ इस सन्दर्भ में’ और उन्होंने भी फ़ोन काट दिया| जब पूरे कुएँ में ही भांग मिली हुई है तो अब क्या कहना …..

हिन्दी विशाल शब्दकोश की धनी भाषा है। कई और भी शब्द होते हैं लिखने के लिए। किंतु अपरिपक्वता का इससे बेहतर उदाहरण नहीं मिल सकता| दूसरा मुद्दा एजेंसी की त्वरित सेवाओं का ….  कार्यरत कर्मचारी श्री योगेंद्र जी उपाध्याय के दुखद निधन का शोक संदेश ही उनके निधन के 15 घंटे से ज़्यादा बीत जाने के बाद एजेंसी जारी कर रही है, तो कैसे इसे त्वरित मान लें? जिसका 1 ध्येय वाक्य ही, ‘गति’ हो, उसके कर्मचारी द्वारा इस तरह के गरिमाहीन शब्दकोश का इस्तेमाल और वो भी बिना गति के|

Advertisement. Scroll to continue reading.

…. बहुत हुआ, कम से कम संज्ञान लेकर यूनीवार्ता को अपने कर्मचारियों से अच्छे लेखन के प्रति गंभीरता दर्शाने को कहना चाहिए , वरना ‘ढाक के तीन पात’ मीडियाकर्मी के अवसान की खबर को जिस तरह से ‘मौत’ लिख कर प्रचारित किया ये निंदनीय है| अब आप ही बताइए क्या उपाध्याय जी के अवसान पर UNI एजेंसी ब्यूरों द्वारा “मौत” शब्द का इस्तेमाल सही है या ग़लत? और वह भी १५ घंटे देरी से?

मेरा मीडिया के अन्य साथियों से भी आग्रह है क़ि कम-से-कम अपना आत्मसम्मान बनाएं, जहाँ भी कहीं इस तरह की बात देखें / पड़े उसके विरोध में आवाज़ तो ज़रूर उठाए, आज उपाध्याय जी थे , कल मैं या आप में से कोई एक होगा तब भी रत्नेश जी सरीखे तथाकथित बुद्धि के पंडित उसे ‘मौत’ लिखकर हमारी मृत्यु को कुत्ते के समान सिद्ध कर देंगे| जागो साथियों जागो…. बहरहाल, अभी तो दिवंगत मीडियाकर्मी योगेंद्र उपाध्याय जी को श्रद्धांजलि.

Advertisement. Scroll to continue reading.

अर्पण जैन ‘अविचल’
सम्पादक
खबर हलचल न्यूज, इंदौर
+91-9893877455

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement