विजय शंकर सिंह-
उत्तराखंड : एम्स ऋषिकेश में भर्ती पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा (94 वर्षीय) का शुक्रवार दोपहर 12 बजे निधन हो गया। सुंदर लाल बहुगुणा कोरोना संक्रमित थे।
नहीं रहे चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदर लाल बहुगुणा…
सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद और चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा जी नहीं रहे। वे एम्स ऋषिकेश में भर्ती थे। उनकी तबियत थोड़ी सुधरी, पर वे दुबारा स्वस्थ न हो सके। आज उनका देहांत हो गया।
सुंदरलाल बहुगुणा जी, वरिष्ठ पत्रकार Rajiv Nayan Bahuguna के पिता भी थे। बाबा से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को शांति तथा परिजनों और समस्त पर्यावरण प्रेमी परिवार को यह आघात सहने की शक्ति प्रदान करें। विनम्र श्रद्धांजलि।
शम्भूनाथ शुक्ल-
मिट्टी, पानी और बयार! वर्ष 1993 में मैं टिहरी गया था, तब भागीरथी के दूसरे किनारे पर सुंदर लाल जी बहुगुणा टिहरी बांध के ख़िलाफ़ अनशन पर बैठे थे। नदी से कुछ ऊँचाई पर उनकी छोटी-सी कुटिया थी, उसी में वे रह रहे थे। मैं गंगोत्री मार्ग के दूसरी तरफ़ नदी पार कर उनकी कुटिया में गया मिला था। उस समय तक वे चिपको आंदोलन के कारण देश-विदेश में विख्यात हो चुके थे। उन्होंने और चंडी प्रसाद भट्ट ने इस पर्वतीय इलाक़े की हरियाली को बचाया।
तब उत्तर प्रदेश की सरकार और उसके नौकरशाह उनको शत्रु की भाँति देखते और उन पर गुर्राते थे। लेकिन जैसे ही इस पर्वतीय क्षेत्र को अलग प्रांत बनाने की सुगबुगाहट शुरू हुई, उन्हीं नौकरशाहों और नेताओं ने उस हरीतिमा पर क़ब्ज़ा कर लिया। आज मैदान के लोग यहाँ बंगले बनवा कर अपना बुढ़ापा शान से काट रहे है। जबकि यही बंगलों वाले अफ़सर लोग तब बहुगुणा जी को भागीरथी में फ़ेक देने की धमकी दे रहे थे। चिपको आंदोलन के वक्त उनका नारा था-
क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार।
मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार।।
आज सबको इन शब्दों के अर्थ समझ आ रहे हैं। न उस समय न बाद में बहुगुणा जी में कोई अहंकार दिखा। वे चुपचाप अपना काम करते रहे, एक सच्चे गांधीवादी की तरह। ऐसे लोग कभी-कभार ही जन्म लेते हैं। आज ऋषिकेश के एम्स में 94 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उन्हें कोरोना हो गया था। वे बचाए नहीं जा सके। ऐसे महामानव को शत-शत नमन!
सौमित्र रॉय-
‘धार ऐंच डाला,
बिजली बणावा खाला-खाला।’
यानी पहाड़ पर ऊंचाई में बांध बनाने के बजाय निचले हिस्सों में छोटी सिंचाई परियोजना लगाएं। सुंदरलाल बहुगुणा का यह नारा आज विकास की उन तमाम अवधारणाओं को खारिज करता है, जो नेहरू के समय से चले आ रहे हैं।
1981 में इंदिराजी ने उन्हें पद्मश्री लेने के लिए दिल्ली बुलाया। लेकिन बहुगुणा जी ने ठुकरा दिया। बड़े बांधों से लेकर नदी जोड़ो तक, तमाम नीतियों का उन्होंने सख़्त विरोध किया।
सुंदरलाल बहुगुणा जी आज हमें छोड़कर चले गए। भारत के खत्म होते पर्यावरण की चिंता करने वालों के लिए ये बहुत बड़ा झटका है।
उनका होना एक बड़ा संबल था। वे उत्तराखंड में तबाही झेल रहे लोगों की ताकत थे, रोशनी थे। बाबा की जगह कोई नहीं ले सकता, पर उनके दिखाए रास्ते पर बढ़ सकें तो अच्छा होगा।
अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि।
पंकज चतुर्वेदी-
प्रकृति की पूजा करने वाले प्रख्यात पर्यावरण प्रेमी सुंदरलाल बहुगुणा को भी कोरोना ने नहीं छोड़ा। वे गत १२ दिनों से संघर्ष कर रहे थे। श्री बहुगुणा का देहावसान पर्यावरण खासकर उत्तराँचल के लिए अपूरणीय क्षति हैं।
सुंदर लाल बहुगुणा जी का जन्म 9 जनवरी 1927 को उत्तराखंड के टिहरी जिले के सिल्यारा गांव में हुआ था. अपने गांव से प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद बहुगुणा लाहौर चले गए थे. यहीं से उन्होंने कला स्नातक किया था. फिर अपने गांव लौटे बहुगुणा पत्नी विमला नौटियाल के सहयोग से सिल्यारा में ही ‘पर्वतीय नवजीवन मंडल’ की स्थापना भी की.
साल 1949 के बाद दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आंदोलन छेड़ा. साथ ही दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत रहे.उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा हॉस्टल की स्थापना भी की गई. यही नहीं, उन्होंने सिलयारा में ही ‘पर्वतीय नवजीवन मंडल’ की स्थापना की.
1971 में सुन्दरलाल बहुगुणा ने चिपको आंदोलन के दौरान 16 दिन तक अनशन किया. जिसके चलते वह विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए. पर्यावरण बचाओ के क्षेत्र में क्रांति लाने वाले बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने 1980 में पुरस्कार से सम्मानित किया. इसके साथ ही पर्यावरण को स्थाई सम्पति मानने वाला यह महापुरुष ‘पर्यावरण गांधी’ बन गया. अंतरराष्ट्रीय मान्यता के रूप में 1981 में स्टाकहोम का वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार मिला. यही नहीं, साल 1981 में ही सुंदर लाल बहुगुणा को पद्मश्री पुरस्कार दिया गया. मगर, सुंदरलाल बहुगुणा ने इस पुरस्कार को स्वीकार नहीं किया.
इन पुरस्कारों से किये गए सम्मानित
1985 में जमनालाल बजाज सम्मान. 1987 में राइट लाइवलीहुड पुरस्कार. 1987 में शेर-ए-कश्मीर पुरस्कार. 1987 में सरस्वती सम्मान. 1989 सामाजिक विज्ञान के डॉक्टर की मानद उपाधि आईआईटी रुड़की. 1998 में पहल सम्मान. 1999 में गांधी सेवा सम्मान. 2000 में सांसदों के फोरम द्वारा सत्यपाल मित्तल अवॉर्ड. 2001 में पद्म विभूषण से सम्मानित।
सादर नमन के साथ बाबा सुन्दरलाल जी अमर रहें।