वाराणसी : इसे संगीत समारोह मत कहिए। ये तो सुरों का महाकुंभ है। बुधवार रात संकट मोचन संगीत समारोह के प्रथम निषा में मंच पर बांसुरी के सुरों से श्रोताओं अलौकिक अनुभूति करवाने वाले पंडित हरि प्रसाद चैरसिया का मानना है, वो सुर हो या स्वाद दोनो में बनारस का लाजवाब है।
हनुमत दरबार में उपस्थिति के बाद रात 12 बजे के करीब लंका तिराहे पर होटल जाते समय अचानक उनकी कार लंका तिराहे स्थित पहलवान लस्सी की दुकान पर रूकी। उसमें से सफेद सिल्क का कुर्ता, गले में मोती की माला पहने पंडित जी सीधे लस्सी की दुकान पर जा पहुंचे। वहां पुरवे में आहिस्ता-आहिस्ता लस्सी का स्वाद लेते हुए पंडित जी बोल उठे – वाह… वाह क्या स्वाद है, ऐसी लस्सी भला और कहां, इसी को कहते हैं बनारस। हर चीज में रस, फिर चाहे वो सुर हो या स्वाद।
लस्सी पीते-पीते बातों का सिलसिला चल पड़ा तो बोले इसे महज एक कार्यक्रम समझने की भूल मत करिये, यहां तो सुरों की पूजा होती है। ये कला के साधकों का मंच है। संगीत के बदलते दौर और युवा पीढ़ी के एकदम से बदले रूझान के बीच षास्त्रीय संगीत के भविश्य पूछा तो पंडित जी ने कहा जैसे सूर्य-सूर्य और चांद-चांद ही रहेगा। उसी तरह षास्त्रीय संगीत का अस्तित्व भी आदि-अनादि काल तक बना रहेगा। शोर और संगीत में लोग फर्क समझेंगे। शोर लोगो को कुछ समय के लिए छल तो सकता है, लेकिन संगीत तो आत्मा से साक्षात्कार का सीधा माध्यम है, वो कहा जाएगा। दुनियां भर को अपनी बांसुरी की तान का दिवाना बनाने वाले पंडित जी न जाते-जाते कहा- जो बात बनारस में है, वो और कही नहीं, जब तक जिदंगी है यहां आता रहूंगा।
भास्कर गुहा नियोगी