बीते पखवाड़े पूर्वी उत्तर प्रदेश के भ्रमण पर था। इसकी विधिवत शुरुआत बनारस या वाराणसी में ट्रेन से उतरने के बाद सडक मार्ग से बस के जरिये हुई। लेकिन बस के सफर ने जिस-जिस तरह के जितने झांसे दिए, धोखाधड़ी की, चकमे दिए, बस जाएगी-नहीं जाएगी, के जितने सच्चे-झूठे पाठ पढ़ाए गए, बातें बनाई गईं, आनाकानी की गई, बहाने बनाए गए, उसकी मिसाल अपने अब तक के इस जीवन में मैंने न तो कहीं देखी, न सुनी, न ही पढ़ी है। यूपी सरकार की बस पवन सेवा में आजमगढ़ जाने के लिए जब मैं पत्नी संग सवार हुआ तो उसमें पहले से सवार समस्त यात्रीगण बेहद असमंजस में फंसे अनिश्चितता के भंवर में हिचकोले ले रहे थे। बस के कंडक्टर और ड्राइवर कभी कहते बस जाएगी, कभी कहते नहीं जाएगी। कभी ऐलानिया तौर पर बोल पड़ते, उतर जाइए-उतर जाइए बस कैंसिल हो गई, अब नहीं जाएगी, दूसरी बस जा रही है, उसमें बैठ जाइए, वह आजमगढ़ जाएगी। उहापोह का ऐसा माहौल इन दोनों बस कर्मचारियों ने बना रखा था कि सारे बस यात्री बेहद परेशान हो गए।