मजीठिया वेज बोर्ड : काशी में कटी पहली 50 लाख की आरसी

बाबा भोलेनाथ की नगरी काशी से एक बड़ी खबर आ रही है। यहाँ नार्दन इंडिया पत्रिका यानि एनआईपी के खिलाफ मजीठिया वेज बोर्ड मामले में 50 लाख की रिकवरी सार्टफिकेट जारी की गयी है। यहाँ मजीठिया की लड़ाई की अगुवाई करने वाले समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन को पहली बड़ी सफलता मिली है।

काशी पत्रकार संघ का द्विवार्षिक चुनाव : सुभाष सिंह अध्यक्ष, अत्रि महामंत्री व दीनबन्धु कोषाध्यक्ष

वाराणसी । काशी पत्रकार संघ के द्विवार्षिक चुनाव में रविवार को सुभाष चन्द्र सिंह (138 मत) वर्तमान अध्यक्ष बी॰ बी॰ यादव (101 मत) को सीधे मुकाबले में पराजित कर निर्वाचित घोषित किये गये। इसके अलावा महामंत्री पद पर अत्रि भारद्वाज (88 मत) त्रिकोणीय मुकाबले में कड़ी चुनौती पेश करते हुए वर्तमान कोषाध्यक्ष पवन कुमार सिंह (74 मत) को परास्त कर विजयी घोषित किये गये। इस पद पर एक अन्य प्रत्याशी वर्तमान महामंत्री रामात्मा श्रीवास्तव को 67 मत मिले। कोषाध्यक्ष पद पर दीनबन्धु राय (127 मत) निर्वाचित घोषित किये गये। उन्होंने डा॰ जयप्रकाश श्रीवास्तव (104 मत) को परास्त किया। पत्रकार सुभाष सिंह आज अखबार, काशीवार्ता और जनवार्ता में सेवा दे चुके हैं. अत्रि भारद्वाज गांडीव अखबार में रह चुके हैं. वे पत्रकार के साथ साथ गीतकार और कवि भी हैं।

बनारस : खताएं कौन करता है, सजा किसको मिलती है

बनारस। भीड़ की कदमों की आहटों से हमेशा गुलजार रहने वाला शहर का गोदौलिया चौराहा सोमवार की शाम अचानक जल उठा। न जाने कैसी आग लगाई की आने-जाने वाले राहगीर, पुलिसकर्मी, मीडियाकर्मी सहित दर्जनों घायल होकर इलाज के लिए अस्पताल पहुंच गए। बीच चौराहे से उठती आग की लपटें तुलसी के मानस चरित और कबीर के पोगापंथ पर किए गए प्रहार से कही ज्यादा उंची होती दिखी। लगा कि गुस्से और नफरत के कारोबार ने कुछ ज्यादा ही पांव पसार लिया है। नहीं तो डरी, सहमी, रोती- बिलखती सुरक्षित ठिकाना तलाशने के लिए भागती महिलाओं के चेहरे पर इतना खौफ और डर नहीं होता। बनारस कोई जंगल तो नहीं कि बीच बाजार कोई खौफनाक जानवर निकल कर इंसानों पर हमला बोल दिया हो। इंसानों की बस्ती में ये कौन सा मंजर है, कि आदमी बस बदहवास भागता रहता है।

बनारस से ‘सौराष्ट्र भारत’ का प्रकाशन क्यों?

काशी, जिसे पत्रकारिता का गढ़ कहा जाता था और कहा जाता है, आज यहां छोटे अखबार जो सही मायने में पत्रकारिता के प्रति समर्पित हैं, शासन की उपेक्षा से अधिकांश मृतप्राय होते जा रहे हैं। जो गिनते के छोटे पत्र-पत्रिकाएं हैं, वे भी इस समय आर्थिक संकट से जूझ रही हैं। यही हाल छोटे व ग्रामीण पत्रकारों का है, जो शासन की उपेक्षा से आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। शासन उनका उत्पीड़न भी कर रहा है। ऐसे एक दो उदाहरण नहीं, अब तो हजारों उदाहरण सामने हैं।

यूपी में जंगलराज : दबंगों की मार और पुलिस की फटकार से गांव छोड़ शहर भागा पूरा परिवार

वाराणसी : उत्तर-प्रदेश सरकार के हर गरीब को न्याय की इससे बेहतर मिसाल क्या हो सकती है। पहले दंबगों की मार, फिर खाकी की फटकार से बेहाल परिवार जान बचाने के लिए गांव छोड़कर बनारस की सड़कों पर  मारा-मारा फिर रहा है। परिवार को डर है कि गांव लौटे तो परिवार में से किसी की जान भी जा सकती है।

दबंगों की मार और पुलिस की फटकार से डरे सहमे नंदलाल और उनका परिवार

सुर और स्वाद दोनो में लाजवाब है बनारस : पं हरिप्रसाद

वाराणसी : इसे संगीत समारोह मत कहिए। ये तो सुरों का महाकुंभ है।  बुधवार रात संकट मोचन संगीत समारोह के प्रथम निषा में मंच पर बांसुरी के सुरों से श्रोताओं अलौकिक अनुभूति करवाने वाले पंडित हरि प्रसाद चैरसिया का मानना है, वो सुर हो या स्वाद दोनो में बनारस का लाजवाब है।

Varanasi : This is one of the filthiest and most congested cities in the world

Jagdish Singh : I frequently c posts of my Benarasi friends praising Benaras. I fail to understand them. I have studied in BHU and lived in Benaras for quite sometime. I hardly found anything praiseworthy in this city. This is one of the filthiest and most congested cities in the world. People have no sense of cleanliness. They keep spitting all the time, majority are quite backward and ignorant, arrogant and full of blind faith, ritualistic, intolerant and they hero worship gunda type people.

25 नवम्बर नजीर बनारसी की जंयती पर : …हम अपना घर न जलाते तो क्या करते?

हदों-सरहदों की घेराबन्दी से परे कविता होती है, या यूं कहे आपस की दूरियों को पाटने, दिवारों को गिराने का काम कविता ही करती है। शायर नजीर बनारसी अपनी गजलों, कविताओं के जरिए इसी काम को अंजाम देते रहे है। एक मुकम्मल इंसान और इंसानियत को गढ़ने का काम करने वाली नजीर को इस बात से बेहद रंज था कि…

बनारसी कुल थूकिहन सगरो घुला के मुंह में पान, का ई सुनत बानी अब काशी बन जाई जापान?

आजकल बनारस सुर्खियों में है… बनारस को लेकर रोज कोई न कोई घोषणा सुनने को मिल रही है…. ऐसा होगा बनारस… वैसा होगा बनारस… पर न जाने कैसा होगा बनारस…. सब कुछ भविष्य के गर्भ में है…. पर दीपंकर की कविता में आज के बनारस की तस्वीर है…. दीपंकर भट्टाचार्य कविता लिखते हैं… दीपांकर कविता फैंटसी नहीं रचतीं बल्कि बड़े सीधे और सरल शब्दों में समय के सच को हमारे सामने खड़ा कर देतीं हैं…. दीपांकर के शब्दों का बनारस हमारा-आपका आज का बनारस है जिसे हम जी रहे है… आप भी सुनिए उनकी कविता…

रस से रिक्त हो गया है पीएम मोदी का बनारस

बीते पखवाड़े पूर्वी उत्तर प्रदेश के भ्रमण पर था। इसकी विधिवत शुरुआत बनारस या वाराणसी में ट्रेन से उतरने के बाद सडक मार्ग से बस के जरिये हुई। लेकिन बस के सफर ने जिस-जिस तरह के जितने झांसे दिए, धोखाधड़ी की, चकमे दिए, बस जाएगी-नहीं जाएगी, के जितने सच्चे-झूठे पाठ पढ़ाए गए, बातें बनाई गईं, आनाकानी की गई, बहाने बनाए गए, उसकी मिसाल अपने अब तक के इस जीवन में मैंने न तो कहीं देखी, न सुनी, न ही पढ़ी है। यूपी सरकार की बस पवन सेवा में आजमगढ़ जाने के लिए जब मैं पत्नी संग सवार हुआ तो उसमें पहले से सवार समस्त यात्रीगण बेहद असमंजस में फंसे अनिश्चितता के भंवर में हिचकोले ले रहे थे। बस के कंडक्टर और ड्राइवर कभी कहते बस जाएगी, कभी कहते नहीं जाएगी। कभी ऐलानिया तौर पर बोल पड़ते, उतर जाइए-उतर जाइए बस कैंसिल हो गई, अब नहीं जाएगी, दूसरी बस जा रही है, उसमें बैठ जाइए, वह आजमगढ़ जाएगी। उहापोह का ऐसा माहौल इन दोनों बस कर्मचारियों ने बना रखा था कि सारे बस यात्री बेहद परेशान हो गए।