Connect with us

Hi, what are you looking for?

वेब-सिनेमा

बेनकाब ज़िंदगी : गूगल अब सिर्फ सर्च इंजन नहीं, एक महादैत्य है!

तकनीकी प्रगति ने हमारे जीवन में क्रांति-सी ला दी है और हमारे जीवन को कदरन आसान बना दिया है। कंप्यूटर का आविष्कार एक बड़ा मील-पत्थर था, फिर इंटरनेट ने इसमें एक और क्रांति ला दी। इसी तरह गूगल के जादुई प्रभाव ने भी हमारे कामकाज को बहुत आसान बना दिया है। गूगल को ज्यादातर लोग विश्व का सर्वाधिक उन्नत सर्च इंजन ही मानते हैं जो हमें हमारी मनचाही जानकारी तुरंत उपलब्ध करवाता है। मोबाइल फोन आये तो हमारे कामकाज के तरीके में एक और बड़ा बदलाव आया और मोबाइल फोन और इंटरनेट के जुड़ जाने से जीवन फिर बदला, अब स्मार्टफोन के कारण मोबाइल ऐप्स ने तो मानो जादू ही कर दिया है। हम कहीं भी रहें, स्मार्ट फोन के ज़रिये हमारा आफिस हमारे साथ चलता है। दरअसल, अब हमारी जिंदगी स्मार्ट फोन से चलती है।

स्मार्ट फोन के सहारे हम दुनिया भर के अखबार पढ़ सकते हैं, खरीद-फरोख्त कर सकते हैं, किसी शो, बस, रेल, हवाई जहाज़ आदि की टिकटें बुक करवा सकते हैं, शेयर खरीद और बेच सकते हैं, फोन बैंकिंग के माध्यम से धन का लेन-देन कर सकते हैं। स्मार्ट फोन की ही तरह प्लास्टिक मनी, यानी, क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड भी हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन गए हैं। हमारे जेब में क्रेडिट कार्ड अथवा डेबिट कार्ड होने का मतलब है कि हमारा बैंक हमारे साथ चलता है। प्लास्टिक मनी का ही जलवा है कि बैंक में जमा हमारे धन के लेन-देन के लिए अब हमें बैंक जाने की आवश्यकता नहीं रही। सन‍् 2016 में नोटबंदी लागू होने के बाद नगदी के लेन-देन की जगह ऑनलाइन भुगतान का चलन तेजी से बढ़ा है। स्मार्ट फोन और क्रेडिट-डेबिट कार्ड के कारण हमारे जीवन को पर लग गए हैं लेकिन फोन और क्रेडिट कार्ड के ही कारण हमारा जीवन बेनकाब और असुरक्षित भी हो गया है। इसे ज़रा विस्तार से समझने की आवश्यकता है।

गूगल अब सिर्फ एक सर्च इंजन ही नहीं रह गया है बल्कि यह एक डेटा और इंटरनेट कांग्लोमेरेट बन गया है। यह एक ऐसा महादैत्य है जो अभी हमें बोतल में बंद नज़र आ रहा है जबकि यह बोतल से बाहर है और हमारे जीवन को कई तरह से प्रभावित कर रहा है। गूगल भिन्न-भिन्न कंपनियों का अधिग्रहण कर रहा है जो हमारे जीवन पर कई तरह से निगाह रख सकती हैं और हमारे स्मार्ट फोन जानते हैं कि हम कब कहां हैं, किस से बात करते हैं, कितनी बार बात करते हैं और कितनी देर बात करते हैं। हमारे क्रेडिट कार्ड के कारण बैंकों को मालूम है कि हमारी खरीदारी का तरीका क्या है, हम कितनी खरीदारी करते हैं, कहां से खरीदारी करते हैं, कितनी बार और कितने मूल्य के सामान की खरीदारी करते हैं। इस प्रकार इंटरनेट, स्मार्ट फोन और क्रेडिट कार्ड ने मिलकर हमारा जीवन आसान किया है पर हमारी निजता भी समाप्त कर दी है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

निजता पर हमला कई और तरीकों से भी होता है। आज हम तरह-तरह की मार्केटिंग कंपनियों के कॉल से परेशान रहते हैं। अजनबी फोन नंबरों से हर दिन हमें न जाने कितने फोन आते हैं। हम झुंझलाएं, बच निकलने की कोशिश करें, फोन काट दें, तो भी दोबारा फोन आ जाता है। विज्ञापनी फोन कॉल्स के इस अतिक्रमण के लिए बहुत हद तक हम खुद भी जिम्मेदार हैं। किसी मॉल या शोरूम में जा कर उनकी गेस्ट बुक भर कर, किसी अच्छे रेस्त्रां में उनको फीड-बैक देकर हम उन्हें अपने संपर्क सूत्र यानी मोबाइल नंबर, ईमेल, जन्म तिथि आदि सार्वजनिक कर देते हैं। फेसबुक पर स्टेटस अपडेट करते हुए भी हम अपनी लोकेशन का पता बताते हैं, अपनी रुचियों की जानकारी देते हैं और अपनी निजता को खुद ही बेपर्दा करते हैं।
स्मार्ट फोन पर इंटरनेट उपलब्ध होने से इंटरनेट छोटे-छोटे गांवों तक में पहुंच गया है। शेष विश्व के मुकाबले भारतवर्ष में इंटरनेट सस्ता भी है। परिणाम यह है कि भारत में स्मार्टफोन और ई-कामर्स दोनों का बाजार तेजी से बढ़ा है, मोबाइल से लेन-देन में तेजी आई है, इन्सान के बजाए मशीनें आपस में ज्यादा बातें कर रही हैं, और प्राइवेसी की समस्या और भी गहरी हो गई है।

यहां तक तो ठीक था, पर अब हमारी निजता ही नहीं, हमारा धन भी चोरों-ठगों-हैकरों के निशाने पर है। कुछ वर्ष पूर्व दक्षिण कोरिया की लगभग आधी आबादी के क्रेडिट कार्डों का ब्योरा चोरी हो गया था। दक्षिण कोरिया के इन दो करोड़ लोगों के क्रेडिट कार्डों के ब्योरे के अलावा उनके नाम और सोशल सिक्योरिटी नंबर जैसी अहम जानकारियां भी चुरा ली गई थीं और इन जानकारियों को विभिन्न मार्केटिंग कंपनियों को बेच दिया गया था। विश्व के अलग-अलग देशों में ऐसी खबरें अब आम हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दरअसल अधिकतर सरकारी एजेंसियां, टेलिकॉम कंपनियां और बैंक आदि अपना काम आगे अलग-अलग कंपनियों को ठेके पर देते हैं। इन कंपनियों के कर्मचारी “उधार के सिपाही” हैं जो कुछ पैसों के लिए किसी भी तरह की जानकारी बांटने, बेचने आदि के लिए स्वतंत्र हैं। बहुत सी मार्केटिंग कंपनियों ने ऐसे लोगों की टीम बना रखी है जो विभिन्न मॉल्स तथा ऐसे ही अन्य स्रोतों से उनके ग्राहकों की जानकारी इकट्ठी करते हैं। इससे हमारी जिंदगी बेनकाब तो हुई ही है, कुछ और असुरिक्षत भी हो गई है। हैकरों का आतंक अलग से चिंता का विषय है, कभी ये फेसबुक से जानकारियां चुराते हैं, कभी किसी बैंक के रिकार्ड चुरा लेते हैं और कभी हमारे क्रेडिट कार्ड का दुरुपयोग करना आरंभ कर देते हैं।

अपने ऐप्स की बदौलत स्मार्टफोन अब हमारी जि़ंदगी का अहम हिस्सा है और सुबह उठते ही और रात को सोने से पहले तक यह अक्सर हमारे हाथ में होता है। यह हमारी जि़म्मेदारी है कि हम अपनी संवेदनशील जानकारी सार्वजनिक न करें, सार्वजनिक न होने दें और स्मार्टफोन, सोशल मीडिया व इंटरनेट के प्रयोग के समय प्राइवेसी सेटिंग्स का ध्यान रखें तथा क्रेडिट अथवा डेबिट कार्ड के प्रयोग के समय आवश्यक सावधानियों का ध्यान रखें। यही नहीं, अपने बच्चों को इस संबंध में आवश्यक जानकारी देना, उन्हें शिक्षित करना और सावधानी बरतने के तरीके बताना भी हमारी ज़िम्मेदारी का अहम हिस्सा हैं। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो पछताना भी हमें ही पड़ेगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

यह समझना बहुत आवश्यक है कि दुनिया में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो धन की खातिर हत्या तक करने से गुरेज़ नहीं करते। यानी, सिर्फ हमारा धन ही खतरे में नहीं है बल्कि हमारी और हमारे बच्चों की ज़िंदगी भी खतरे में है। यह याद रखना आवश्यक है कि दुनिया में ठगों की कमी नहीं है, उनका ध्यान हमेशा हमारी जेब पर है, और अपनी जान और जेब की सुरक्षा करना हमारी ही जिम्मेदारी है।

लेखक पी. के. खुराना वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और राजनीतिक रणनीतिकार हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement