पनामा पेपर्स की रिपोर्टिंग पत्रकारिता की दुनिया में मील का पत्थर है। अब यह किताब की शक्ल में आ रही है। जो छात्र इस पेशे में आना चाहते हैं वे इसे पढ़ें। अपने संस्थान की लाइब्रेरी में मँगवाए और इससे जुड़े पत्रकारों से ज़रूर बात करें। ऋतु सरीन, जय मजुमदार और वैद्यनाथन ने भारत में पनामा पेपर्स की पड़ताल की थी। हमने इनके अनुभवों पर एक प्राइम टाइम भी किया था।
आज की पत्रकारिता जटिल हो चुकी है। सत्ता के पीछे का ग्लोबल खेल पत्रकारों के ग्लोबल नेटवर्क से ही पकड़ा जा सकता है। इसके लिए एक नहीं कई प्रकार के कौशल की ज़रूरत है। जो अकेले किसी पत्रकार में संभव नहीं है।
पनामा पेपर्स की रिपोर्टिंग कई तरह के कौशल का संगम है। खोजी पत्रकारिता सिर्फ़ सुराग मिलने का विषय नहीं बल्कि अंजाम तक पहुँचाने का कौशल है। जैसे नितिन सेठी ने इलेक्टोरल बॉन्ड के फ्राड को जो उजागर किया है वह हर किसी के बस की बात नहीं है।
जटिल दस्तावेज़ों को पढ़ना और उनके पीछे चल रहे पैसे के खेल को समझना जुझारू काम है। जो कई साल की मेहनत से आता है। कोई भी रिपोर्टर नैसर्गिक नहीं होता है। वह लगता नैसर्गिक यानि नेचुरल है मगर बनता वह दशकों में है।
रवीश कुमार की एफबी वॉल से.