Connect with us

Hi, what are you looking for?

वेब-सिनेमा

पाब्लो सीज़र और सूरज कुमार को ‘थिंकिंग ऑफ़ हिम’ के लिए शुभकामनाएं

‘हॉट बेब और कूल ड्यूड’ के वर्तमान कल्चर में नि:संदेह प्लेटोनिक प्यार की बात बेमानी सी लगती है. क्योंकि वास्तविकता ये है कि आज की पीढ़ी ये मानने को राज़ी ही नहीं है कि प्लेटोनिक प्यार जैसा कोई जज़्बा होता भी है. कोई मानेगा ही नहीं कि बग़ैर रिश्ते के भी कोई खूबसूरत रिश्ता हो सकता है, जिसे किसी रिश्ते की आड़ लेकर फिजूल का कवरअप देना जरूरी हो. मसलन आज भी ऐसे लोग हैं जो चोरी छिपे प्रेम करते हैं और जमाने के सामने रिश्ते को भाई बहन का नाम देने से गुरेज नहीं करते. खैर..

‘हॉट बेब और कूल ड्यूड’ के वर्तमान कल्चर में नि:संदेह प्लेटोनिक प्यार की बात बेमानी सी लगती है. क्योंकि वास्तविकता ये है कि आज की पीढ़ी ये मानने को राज़ी ही नहीं है कि प्लेटोनिक प्यार जैसा कोई जज़्बा होता भी है. कोई मानेगा ही नहीं कि बग़ैर रिश्ते के भी कोई खूबसूरत रिश्ता हो सकता है, जिसे किसी रिश्ते की आड़ लेकर फिजूल का कवरअप देना जरूरी हो. मसलन आज भी ऐसे लोग हैं जो चोरी छिपे प्रेम करते हैं और जमाने के सामने रिश्ते को भाई बहन का नाम देने से गुरेज नहीं करते. खैर..

Advertisement. Scroll to continue reading.

यूनानी दार्शनिक प्लेटो के नाम पर प्रेम के इस रूप को नाम मिला है प्लेटोनिक लव. प्लेटो का मानना था कि प्रेम मूलत: मनुष्य का पूर्णता की ओर अधिगमन है. इसीलिए स्त्री पुरुष अपने जीवन में एक ऐसे साथी की तलाश में रहते हैं जिससे जुड़कर पूर्णता प्राप्त करें. प्लेटोनिक लव, प्रेम का दमन नहीं करता. वो वासना से परे है ऐसा भी नहीं, लेकिन हां, वो संकेत है बौद्धिक प्रेम का, बौद्धिकता का वो मिलन, जहां पहले मन में होता है एकाकार और पूर्णता का अहसास.

राष्ट्रगान के रचयिता, 1913 में गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर सूफी रहस्यवाद और वैष्णव काव्य से प्रभावित थे. उनके लिए प्रेम है प्रारंभ, और परमात्मा है अंत. प्रेम अपने हर रुप में टैगोर की रचनाओं का मूल आधार है. गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर को भी हुआ प्लेटोनिक लव. जी हां, ये टैगोर की जिंदगी का वो अनछुआ हिस्सा है जिससे हम भारतीय कम ही परिचित हैं. 1913 में नोबेल मिलने के बाद दुनिया भर के लिए गुरुदेव महत्वपूर्ण हो गए. विदेशों में उनका आना-जाना ज्यादा बढ़ गया. दुनिया भर में गीतांजलि के हर भाषा में अनुवाद शुरु हो गए. यही दौर था जब उनका ये प्रेम अस्तित्व में आया.

Advertisement. Scroll to continue reading.

सन 1914, अर्जेंटीना में 25-26 साल की एक लड़की ने फ़्रेंच में गीतांजलि पढ़ी. वो टैगोर की लेखनी की मुरीद हो गई और टैगोर से मिलने को बेताब थी. वो खुद कोई सामान्य लड़की नहीं थी, वो थी अर्जेंटीना की फ़ेमिनिस्ट राइटर, एक साहित्यिक मैग्जीन की एडिटर, एक कल्चरल एक्टिविस्ट विक्टोरिया ओकैम्पो. वो वहां की पहली महिला थी जिसे अर्जेंटीना एकेडमी ऑफ लैटर्स का सदस्य भी बनाया गया था. 1924 में विक्टोरिया की टैगोर से मुलाकात की तमन्ना पूरी हुई. टैगोर तब पेरु की यात्रा पर थे, रास्ते में बीमार हुए तो आराम करने के लिए उन्हें ब्यूनस आयर्स में रुकना पड़ा. विक्टोरिया को जैसे ही ये खबर मिली वो उनसे मिलने पहुंच गईं. गुरुदेव को ठहराने के लिए वहां एक कमरा किराए पर लिया. गुरुदेव वहां दो महीने से ज्यादा रुके.

26 साल की विक्टोरिया ओकैम्पो और 63 साल के टैगोर के बीच बौद्धिकता का जबरदस्त आदान-प्रदान हुआ. कई भाषाओं की जानकार विक्टोरिया की बुद्धिमत्ता से टैगोर प्रभावित हुए. उन्होंने अपना एक कविता संग्रह ‘पूरबी’ विक्टोरिया ओकैम्पो को समर्पित किया. इस दौरान उन्होंने करीब 30 कविताएं लिखीं. अपनी एक कविता ‘अतिथि’ में वो विक्टोरिया से कहते हैं- सात समंदर पार के वो रिक्त पल, पूर्ण किए तुमने, अपने मिठास के घोंसले से.

Advertisement. Scroll to continue reading.

मेलजोल, पत्राचार अब दोनों के बीच आम हो गया. 1930 में दोनों की दूसरी मुलाकात हुई, जब ओकैम्पो ने पेरिस में गुरुदेव की पेंटिग्स की प्रदर्शनी लगाई. ये आखिरी मुलाकात रही, लेकिन 1941 में गुरुदेव के निधन तक चलता रहा खतों का सिलसिला. वो अपने खतों में ओकैम्पो को बिजोया बुलाते थे. इंडिया में भले ये प्रेम कहानी चर्चित नहीं हुई लेकिन अर्जेंटीना के लिट्रेचर सर्किल में ओकैम्पो और टैगोर की मित्रता चर्चा का विषय है.

अब टैगोर और उनकी बिजोया की इस अनछुई प्रेम कहानी को फिल्मी पर्दे पर ला रहे है इंडिया-अर्जेंटीना मिलकर. अर्जेंटीना के मशहूर फिल्म निर्देशक पाब्लो सीज़र और एक भारतीय प्रोड्यूसर सूरज कुमार ने इस काम के लिए हाथ मिलाया है. फिल्म का नाम है ‘थिंकिंग ऑफ़ हिम’. निर्देशक पाब्लो सीज़र, विक्टोरिया ओकैम्पो और टैगोर के प्रशंसक हैं, तो सूरज कुमार इस खूबसूरत प्लेटोनिक लव स्टोरी को आम जन तक पहुंचाने का जुनून पाले हैं.

Advertisement. Scroll to continue reading.

सूरज कुमार कहते हैं कि टैगोर-ओकैम्पो के बीच लिखे गए खत उनके प्रगाढ़ रिश्ते का वो सबूत हैं जिसका कंटेंट बौद्धिक प्रेम की परिभाषा को विस्तार देगा. फिल्म की कास्ट अभी तय नहीं हुई है. फिल्म की रूपरेखा के लिए इस महीने सूरज और पाब्लो शांति निकेतन जाने वाले हैं. सूरज कुमार के मुताबिक ‘थिंकिंग ऑफ़ हिम’ फिल्म इंडिया-अर्जेंटीना दोनों जगहों पर शूट की जाएगी. साथ ही ये कलर और ब्लैक एंड व्हाइट दोनों तरह के सीन्स में दिखेगी.

यूं तो टैगोर हर युग में प्रासंगिक हैं लेकिन अगर उनके 150 वें जयंती वर्ष में ‘थिंकिंग ऑफ़ हिम’ की शुरुआत हो रही है तो उनके लिए इससे अच्छी श्रद्धांजलि नहीं हो सकती. यही नहीं, दो देशों के बीच कला साहित्य संस्कृति का आदान प्रदान उनके संबंधों को भी मजबूत बनाता है और वहां की पीढ़ियों की सोच भी हरी भरी रखता है. टैगोर भारत-अर्जेंटीना के जिस रिश्ते की नींव बनाकर आए थे वो रिश्ता अगर उनके और विक्टोरिया की प्रेम कहानी के जरिए फिर खड़ा होता है तो बुरा क्या. पाब्लो सीज़र और सूरज कुमार को ‘थिंकिंग ऑफ़ हिम’ के लिए शुभकामनाएं

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement