Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

चाहे जो हो जाए, टीवी बिलकुल न देखो

Manisha Pandey : बचपन में मुझे लगता था कि दुनिया की तमाम चीजों के बारे में पापा के आइडियाज बड़े विचित्र किस्‍म के हैं। हर बार मुझे पसंद भी नहीं आते थे। जैसेकि टीवी। हमारे घर में टीवी देखने की इजाजत बिलकुल नहीं थी। बिलकुल नहीं, मतलब कि किसी कीमत पर नहीं। टीवी चलता देखकर भड़क जाते। जिद करने पर हमारी धुनाई भी हो सकती थी। टीवी देखने के अलावा और कुछ भी करने की मनाही नहीं थी। किताब पढ़ो, घूमो, छत पर जाकर बैठो, बगीचे में टहलो, गली में तफरी करो, धूप में लेटो, बारिश में बैठो, किताब पढ़ो, खाना बनाओ, स्‍वेटर बुनो, कागज-दफ्ती काटकर घर बनाओ, पेंटिंग करो, सहेली के घर चले जाओ और कुछ नहीं तो सोओ, रोओ, जो जी में आए करो। टीवी नहीं देखना है।

<p>Manisha Pandey : बचपन में मुझे लगता था कि दुनिया की तमाम चीजों के बारे में पापा के आइडियाज बड़े विचित्र किस्‍म के हैं। हर बार मुझे पसंद भी नहीं आते थे। जैसेकि टीवी। हमारे घर में टीवी देखने की इजाजत बिलकुल नहीं थी। बिलकुल नहीं, मतलब कि किसी कीमत पर नहीं। टीवी चलता देखकर भड़क जाते। जिद करने पर हमारी धुनाई भी हो सकती थी। टीवी देखने के अलावा और कुछ भी करने की मनाही नहीं थी। किताब पढ़ो, घूमो, छत पर जाकर बैठो, बगीचे में टहलो, गली में तफरी करो, धूप में लेटो, बारिश में बैठो, किताब पढ़ो, खाना बनाओ, स्‍वेटर बुनो, कागज-दफ्ती काटकर घर बनाओ, पेंटिंग करो, सहेली के घर चले जाओ और कुछ नहीं तो सोओ, रोओ, जो जी में आए करो। टीवी नहीं देखना है।</p>

Manisha Pandey : बचपन में मुझे लगता था कि दुनिया की तमाम चीजों के बारे में पापा के आइडियाज बड़े विचित्र किस्‍म के हैं। हर बार मुझे पसंद भी नहीं आते थे। जैसेकि टीवी। हमारे घर में टीवी देखने की इजाजत बिलकुल नहीं थी। बिलकुल नहीं, मतलब कि किसी कीमत पर नहीं। टीवी चलता देखकर भड़क जाते। जिद करने पर हमारी धुनाई भी हो सकती थी। टीवी देखने के अलावा और कुछ भी करने की मनाही नहीं थी। किताब पढ़ो, घूमो, छत पर जाकर बैठो, बगीचे में टहलो, गली में तफरी करो, धूप में लेटो, बारिश में बैठो, किताब पढ़ो, खाना बनाओ, स्‍वेटर बुनो, कागज-दफ्ती काटकर घर बनाओ, पेंटिंग करो, सहेली के घर चले जाओ और कुछ नहीं तो सोओ, रोओ, जो जी में आए करो। टीवी नहीं देखना है।

पापा कभी टीवी उठाकर टाण पर रख देते। 1995 में जब मैं नौवीं क्‍लास में थी तो एक दिन गुस्‍से में उठाकर फोड़ डाला। हमारे घर में टीवी की कहानी उसी दिन खत्‍म हो गई। एक वो दिन था और एक आज का दिन है। 19 साल हो गए हैं। अब मैं टीवी नहीं देखती। इसलिए नहीं कि कोई रोकने वाला है। आदत ही नहीं है देखने की। अच्‍छा ही नहीं लगता। डब्‍बा खोलते ही लगता है कि कचरा बह-बहकर मेरे घर, दिल-दिमाग में घुसा जा रहा है। पापा कहते थे कि टेलीविजन इस सिस्‍टम का षड्यंत्र है, लोगों को मूर्ख बनाए रखने के लिए। ज्ञान के दरवाजे बंद करने के लिए। तब मुझे पापा पर गुस्‍सा आता था। आज मुझे भी यकीन है कि वो सही थे। ये फिल्‍म देखकर पुरानी यादें ताजा हो गई हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

http://www.imdb.com/title/tt0810868/

इंडिया टुडे से जुड़ीं पत्रकार मनीषा पांडेय के फेसबुक वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement