Uday Prakash : आज से लगभग सत्ताईस साल पहले. ‘संडेमेल’ का जब सहायक सम्पादक हुआ करता था और इस फीचर पत्रिका का सम्पादक. तब एक बार रंगीन पेन्सिल से मकबूल फ़िदा हुसैन का ये चित्र इसलिए तुरत बनाया क्योंकि लाइब्रेरी में था नहीं और तब तक गूगल का आगमन नहीं हुआ था. एक छोटा-सा चित्र मिला भी तो उसके रिज़ोल्यूशन ऐसे नहीं थे कि उसे पत्रिका के कवर पर प्रिंट किया जा सकता. स्व. कन्हैयालाल नंदन तब ‘संडेमेल’ के प्रधान सम्पादक थे.
उन्हें मेरा यह खेल पसंद आया और जिद करके उन्होंने इसे ही कवर पर जाने दिया. दो दिन पहले अपने पुराने कबाड़ में यह मिला. अब न ‘संडेमेल’ है, न नंदन जी और न ही हुसैन. बस यादें ही हैं.
जाने-माने साहित्यकार उदय प्रकाश की एफबी वॉल से. उपरोक्त स्टेटस पर आए ढेर सारे कमेंट्स में से कुछ प्रमुख यूं हैं :
Vinay Mishra चित्रकारिता और कथाख्यानों में चित्रों का सृजनात्मक प्रयोग, हिन्दी कहानी में उदय प्रकाश की निजी और मौलिक विशेषता है…
Vinod Vithall Great. लेकिन उदय दा, उस दौर के युवा पाठक अभी ज़िंदा हैं और उस दौर को आज भी चाय की थड़ी पर दोस्तों के साथ याद करते हैं। संडे मेल से रिश्ता ही अलग था। नंदन जी, आप और ऊपर कमलेश्वर जी का स्तम्भ। मेरे पास आज भी सारे अंक रखे हैं। वो कॉलेज के हरे दिन थे जब हम ओस के भीतर घर बनाते थे, हवा हमेशा ख़ुशबूदार होती थी, मौसम का रेकॉर्ड बसंत पर अटका रहता था। छोड़िए, मैं भावुक हो जाऊँगा सर। आपके कितने बड़े प्रशंसक है हम लोग, अपनी उम्र आपको दे देना चाहते हैं। आपका होना हमारे लिए एक बड़ा भरोसा है। कभी आइयेगा ना बाड़मेर। रेत के समंदर पर बैठ आपको आई लव यू कहूँगा, हकलाते हुए, शर्माते हुए।
Uday Prakash आपसे हुई पहली मुलाक़ात, जो रघुनन्दन ने करवाई थी, वह अभी तक उतनी ही ताज़ा है. ह्रदय से आभार और अनंत शुभकामनाएं ! (लेकिन कहते हैं कि जो अतीत की ओर बहुत झांकता है वह वर्त्तमान से अपनी दूरी बढ़ाने का प्रयत्न कर रहा होता है. …आपसे मिलना किसी खोयी हुई खुशी से मिलने जैसा होगा. ‘आज’ से कुछ दूर जाते हुए …)
Vinod Vithall अतीत कभी-कभी हार्ट में लगे स्टंट या हड्डी में लगी रॉड की तरह होता है। Watching in back view mirror may help in moving towards new destination. जोधपुर और रोहिणी में आपसे हुई मुलाक़ातें मेरी स्मृति के लॉकर में धरोहर की तरह सुरक्षित है। दिल के डीप फ्रिज में आपकी याद । रघु जी स्मृति को बहुत बड़े वैल्यू के तौर पर देखते थे। आज भी जब मन करता है उन्हें बुला लेता हूँ और ख़ुद को रीचार्ज कर लेता हूँ। आपको शायद ये खेल लगे पर मैं सचमुच ऐसा करता हूँ ।
Manoj Khare खेल ही सही, आपका हाथ सधा और साफ है। चरित्र को भी सटीक पकड़ा है।
Sushil Tigga सुखद आश्चर्य! सर, आपकी ‘चित्रकारी’ में बहुत ऊँचे दर्जे का चित्रकार नज़र आ रहा है! आपकी इस प्रतिभा को भी सलाम!!
संतोष सिंह संभवतः वो दाहिने तरफ दूरदर्शन के नॉस्टैल्जिक दिनों वाली समाचार प्रस्तोता अविनाश कौर सरीन है !
Sudhir Suman अरे वाह, हमलोग उन दिनों कॉलेज में थे। सन्डेमेल के नियमित पाठक थे। अब भी कुछ अंक हैं मेरे पास।
Vinod Sao मकबूल और माधुरी दोनों विलक्षण हैं. आपकी कहानी ‘पीली छतरी वाली लड़की’ की शुरूआत माधुरी से ही हुई है.
Rangnath Singh वाह…आपको कितनी प्रतिभाएं मिली हुई हैं…एक हम हैं बीपीएल वाले….
Uday Prakash सारी ‘प्रतिभाएं’ जीवन को जीवित बनाए रखने में खर्च हुईं … और मैं बस हिंदी का एक ‘नॉन एलीट अनागरिक’ बन कर रह गया… पर इसमें भी मज़ा है.
Rangnath Singh यह इस भाषा और समाज का दुर्भाग्य है Uday Prakash Ji… बाक़ी बकौल फैज…बहुत मिला न मिला जिंदगी से गम क्या है, मताए दर्द बहम है तो बेशो-कम क्या है…
Surendra Raghuwanshi उदय प्रकाश जी आप इतने बेहतरीन चित्रकार भी हैं इस बात का रहस्योदघाटन आपके इस चित्र से हुआ है; जो हूबहू हुसैन का फोटो लग रहा है।देखो न! न हुसैन रहे, न नंदन जी और न सन्डे मेल । पर यह चित्र है और हमेशा रहेगा। साहित्य और कलाएं इसी प्रकार अमर होते हैं और वे अपने जनक रचनाकारों को भी अमर बनाते हैं। यह ध्रुव सत्य बहुत ही प्रेरक है।
Vikrant Pathak हुसैन साहब और नंदन जी याद नहीं आते, वे कभी भूले ही नहीं गए….वैसे इस पोस्ट को साझा करने के लिए आभार
Anand Rai सर आपके इस चित्र के पांच साल बाद तक संडे मेल चला। मुझे याद है कि मार्च 1995 तक। पर आपकी धरोहर कमाल की है।
Susham Bedi अरे वाह उदय जी. मुझे भी याद आया जब मैं संडे मेल के दफतर में प्रणव कुमार वंद्योपाध्याय के साथ आयी थी तो सबसे पहले अाप से ही मिलवाया था उन्होंने. तब विनीता गुप्ता ने इंटरव्यू किया था मेरा. अजीब बात है न पता लगा कि प्रणव भी नहीं रहे . क्या हुआ था? आप उनके संपर्क मे थै.?
Sanjay Narhari Patel अशोक जी (वाजपेयी) ने मेरे एक इंटरव्यू के दौरान पूछे गए सवाल के उत्तर में जो जवाब बहुत गर्मजोशी से दिया था वह आपको नज़्र किया जा सकता है कि कवि, साहित्यकार, संगीतज्ञ, रंगकर्मी, चित्रकार, छायाकार, मूर्तिकार आदि बहुतेरी विधाओं के लोगों को अपनी मूल विधा के अतिरिक्त जुदा-जुदा विधाओं में न केवल रस लेना चाहिए बल्कि उनमें हाथ भी आज़माते रहना चाहिए।इसी से किसी व्यक्ति के जीवन और कर्म से एकरसता का निष्कासन संभव है।
Manoj Kulkarni दिनमान में कुछ और बाद में “पीली छतरी वाली लड़की” के साथ शाया आपके बनाए कुछ रेखांकनों की छवियां स्मृति में कौंधी।