अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-
राज्य में औद्योगिक विकास के लिए बनाए गए UPSIDA में भ्रष्टाचार कितना मजबूत और किस स्तर तक है, यह मुझे पिछले तीन माह में पता चल चुका है।
यहां तो हालत यह है कि डंके की चोट पर घूस मांगी जाएगी और न देने पर न सिर्फ फाइल अटका दी जाएगी बल्कि UPSIDA के भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जो भी विभाग बने हैं, जैसे उनका हेड ऑफिस या फिर निवेश मित्र, इन्वेस्ट यूपी और निवेश सारथी, ये सब आपको यही सलाह देंगे कि “क्या फायदा कंप्लेंट करने का? ऑफिस जाकर उन्हीं अधिकारियों से मिलिए, जिन्होंने आपकी फाइल रोकी है।”
फिर यह भी नसीहत देंगे कि “दूसरे रास्ते से ही आपका अप्रूवल हो पाएगा क्योंकि इन शिकायतों से अगर पिछली क्वेरी निपटेंगी तो नई क्वेरी लगाकर वे फाइल फिर अटका देंगे। आप कब तक शिकायत करेंगे और हम कब तक उनसे पूछते रहेंगे।”
दूसरा रास्ता क्या है, यह पूछने पर वे कहते हैं कि जिस इच्छा से वे फाइल लटका रहे हैं, उनकी इच्छा पूरी करना ही दूसरा रास्ता है। हालांकि जिसे वे दूसरा रास्ता कह रहे हैं, मुझे तो एकमात्र वही रास्ता शुरू से दिख रहा है।
लेकिन मैंने उस पर न चलकर उद्यमियों के लिए पंद्रह दिनों में अप्रूवल के सिंगल विंडो सिस्टम के योगी जी के दावों पर भरोसा करके ऑनलाइन अप्लाई कर दिया। तीन माह बाद अब पता चल गया है कि सरकार के सभी अधिकारी विभाग कह तो बिलकुल सही ही रहे हैं।
क्योंकि दिनांक 1 दिसंबर 2023 को मैंने निवेश मित्र पोर्टल में अपनी यूनिट ID UPSW20165540102 के जरिए obpas सॉफ्टवेयर से आवेदन किया। इसके बदले में मुझे एक लम्बी चौड़ी आवेदन संख्या 20165540102210390001 प्रदान की गई। इसके बाद एक डेढ़ महीने तक पहले लखनऊ में एक्स लीडा के लोकल ऑफिस में अधिकारी फाइल रोककर मिलने के लिए बुलाते रहे।
जबकि फाइल में कोई क्वेरी नहीं और जो एक दो बार आई भी, उसका जवाब जमा कर दिया। फिर जन सुनवाई एप और निवेश मित्र पोर्टल के जरिए की गई शिकायतों पर औद्योगिक विकास विभाग ने UPSIDA के अफसरों को लिखा। अफसरों ने हेड ऑफिस से पूछा।
फाइल हेड ऑफिस में पहुंची तो वहां उन्होंने और डेढ़ महीना बिना मुझसे कोई क्वेरी किए रोक कर रखा। फिर हेड ऑफिस की शिकायत दोबारा उन्हीं माध्यमों से की तो हेड ऑफिस ने जबरन कुछ क्वेरी लिखीं। उनका जवाब दे दिया तो भी फाइल अटकी है। इनकी शिकायत उद्यमियों को भ्रष्टाचार से बचाने के लिए बनाए गए निवेश मित्र, निवेश सारथी, इन्वेस्ट यूपी आदि में भी बाकायदा लिखित रूप से सारे डॉक्युमेंट्स के साथ की तो वहां से भी मुझे तमाम टिकट नंबर मिल गए।
इसके साथ ही उन्होंने हेड ऑफिस और लोकल ऑफिस से पूछताछ चालू करते हुए मुझसे भी अपडेट लेना देना शुरू कर दिया। इससे मुझे उम्मीद जगी कि अब तो शायद मेरी फाइल अप्रूव हो जायेगी। मगर अब वह भी टूट रही है क्योंकि जिनसे शिकायत की, अब तो वे भी सलाह दे रहे हैं कि “आप जाकर उन्हीं अधिकारियों से मिलिए। बल्कि अब तो आपको हेड ऑफिस को भी प्रसन्न करना होगा। अगर आप अप्रूवल के लिए दूसरा रास्ता नहीं अपनाएंगे तो अगले कुछ दिनों में आचार संहिता लग जायेगी। फिर दो तीन महीने तक कुछ नहीं सुनवाई होगी। उसके बाद भी फिर वह इसी तरह आपकी फाइल लटकाए रखेंगे।”
कुल मिलाकर मैं योगी आदित्यनाथ, औद्योगिक विकास विभाग के प्रमुख मनोज सिंह, इन्वेस्ट यूपी, निवेश मित्र-निवेश सारथी आदि विभागों के अधिकारियों को धन्यवाद करना चाहूंगा। इसलिए क्योंकि यूपी जिस भ्रष्टाचार के लिए बदनाम है, आज भी आपने उसी छवि को बरकरार रखा हैं।
UPSIDA और एक्स लीडा के अफसर भी कम बधाई के पात्र नहीं हैं क्योंकि भ्रष्ट तंत्र को पहले की ही तरह फलने फूलने देने से बड़ा योगदान भला कोई क्या देगा ? मीडिया में रहने के कारण मीडिया की हकीकत मुझे पता है और हैसियत भी। इसलिए अब इसके आगे कोशिश करने पर मेरी फाइल कोर्ट में जाने के बाद भी अप्रूव हो या न हो, या खुद ही साल दो साल में हो जाए… यह तो मुझे नहीं पता लेकिन जब मैं सोशल मीडिया पर या मीडिया में अथवा कहीं बाहर बोर्ड पर योगी आदित्यनाथ का मुस्कराता चेहरा देखता हूं और उसके साथ ये दावे पढ़ता सुनता हूं कि यूपी में भ्रष्टाचार खत्म हो गया, निवेश बढ़ रहा है, उद्यमी के सामने अब सिस्टम की कोई दिक्कत नहीं है आदि आदि… तो पूछिए नहीं मेरे तन बदन में कैसी आग लगती है।
दिल से यही दुआ निकलती है कि हे ईश्वर इस महाभ्रष्ट सरकार से जल्द से जल्द मुक्ति दिला दो। लेकिन जब देखता हूं कि यह सरकार उसी ईश्वर का नाम लेकर वोट मांगती है और प्रचंड बहुमत से जीत भी जाती है…. तो शंका होने लगती है कि कहीं ईश्वर के यहां भी घूस का ही सिस्टम तो नहीं है।
वहां के इन्वेस्ट यूपी, निवेश मित्र, निवेश सारथी, जन सुनवाई आदि में भी शिकायत करने पर क्या पता यही सलाह मिले कि घूस मांग रहे हैं तो दे क्यों नहीं देते? फिर अपनी इस शंका को दिल से निकाल देता हूं और ईश्वर के न्याय और लाठी पर अपना भरोसा फिर से कायम कर लेता हूं। वैसे भी हारे के लिए हरिनाम के अलावा सहारा भी आखिर कौन सा होता है?