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सुख-दुख

फक्कड़, घुमंतू और मस्त-मलंग पत्रकार वैभव वर्धन दुबे को याद करने के लिए उनके मित्र कल प्रेस क्लब आफ इंडिया में जमा होंगे!

आधी रात फ़ोन करो तो क्यों-कैसे की बजाए उसके घर हाज़िर हो जाने वाला, वो था वैभव। कड़की में अनजानों की भी मदद को उधार रहने वाला, वो था वैभव। दोस्तों से बड़े हक़ से ज़ोर-ज़बर्दस्ती से चैरिटी कराने वाला, वो था वैभव।

दिल्ली में नौकरी के लिये भटकने वालों का पता-ठिकाना था वैभव। ‘गुरू तनाव नहीं लेना है’ कह-कहकर उनके सारे तनाव ओढ़ लेने वाला, वो था वैभव। वैभव का किसी टीवी एंकर जैसा वर्चुअल वर्ल्ड नहीं था। वो ट्विटर-फ़ेसबुक पर होकर भी नहीं था, क्योंकि उसे रीयल वर्ल्ड से ही फुर्सत नहीं थी।

वो किसी चैनल का हेड नहीं था, किसी कैंप का नहीं था, बड़ा लिक्खाड़ भी नहीं था। लेकिन उसमें कुछ था कि जिसके साथ वो होता था उसमें भरोसा जगा देता था, उम्मीदें भर देता था। दोस्ती की अनलिमिटेड गारंटी था वैभव। एक फक्कड़, घुमंतू और मस्त मलंग साथी, जिसने जीवन में कभी कुछ प्लान नहीं किया, अपने हर आज को अच्छे से और कई-कई लोगों के लिये जिया।

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”गुरू तुम वहाँ भी तनाव मत
लेना, यहाँ पर हम सब हैं ना”

तुम्हारे अनगिनत दोस्त

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प्रति,
यशवंतजी, संपादक, भड़ास

प्रिय साथी वैभव वर्धन दुबे के अचानक यूँ चले जाने से हमें गहरा आघात लगा है. उनकी स्मृतियों को संजोने और परिवार के प्रति यथासंभव सांत्वना और संबल प्रदान करने हेतु हम साथी प्रेस क्लब में जुट रहे हैं. रविवार, 9 अक्टूबर को दोपहर 12 से 2 बजे के बीच श्रद्धांजलि सभा में आपकी उपस्थिति अपेक्षित है.
सविनय
रजनीकांत एवं साथी

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