आशुतोष वाजपेयी-
दिल मान नहीं रहा कि ‘सुरेंद्र भाई’ (सुरेंद्र संघवी) नहीं रहे। ऐसा भरोसा भी नहीं था कि वे इतनी जल्दी हमारे बीच से चले जायेंगे। सुरेन्द्र भाई पिछले कुछ समय से गंभीर रूप से बीमार थे।
सुरेंद्र भाई एक शानदार शख्सियत के मालिक थे। उनकी ये शख्सियत तब और निखर कर आई जब उन्होंने अपने अखबार ‘ चौथा संसार’ का प्रकाशन आरंभ किया। इस अखबार को लेकर वे जबर्दस्त आत्मविश्वास और उर्जा से भरे हुए थे। इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि जनसत्ता के यशस्वी संपादक प्रभाष जोशी का हाथ उनकी पीठ पर था।सुरेन्द्र भाई हर काम चौखा करते थे। इसलिए अपने अखबार के लिए प्रधान संपादक सुविख्यात साहित्यकार डॉ प्रभाकर माचवे, हिंदी के लब्ध प्रतिष्ठित कवि लेखक श्री श्रीनरेश मेहता से लेकर बेहद प्रतिभा सम्पन्न पत्रकारों और आफसेट प्रिंटिंग के जानकारों के साथ अपना अखबार निकाला। चौथा संसार के पत्रकारों को खुले दिल दिमाग से काम करने की छूट थी।
अखबार के दफ़्तर में सुरेंद्र भाई सहित सभी भाई बैठते। ये सभी खुद भी लिखते और स्टाफ का मनोबल भी बढाते। देखते ही देखते चौथा संसार अखबार प्रदेश के अग्रणी अखबारों में आ गया। एक समय ऐसा भी आया जब चौथा संसार इंदौर से निकलने वाले अखबार नयी दुनिया और दैनिक भास्कर को टक्कर देने लगा। सुरेन्द्र भाई हमेशा अपने स्टाफ के हर छोटे बड़े पत्रकार और कर्मचारी के साथ बडे भाई की तरह खड़े रहे।
चौथा संसार की लोकप्रियता के कारण वे इंदौर, भोपाल से लेकर दिल्ली तक के राजनीतिज्ञों, नौकरशाहों और पत्रकारों के चहेते बन गये। ये उनके चुंबकीय व्यक्तित्व का कमाल था। उनसे जो मिलता वह मित्र प्रशंसक हो जाता था। बडे ही सुलझे और उदार ह्रदय सुरेंद्र भाई पत्रकार बिरादरी के साथ हमेशा खड़े रहे। अपने पत्रकार मित्रों के केरियर की भी हमेशा चिंता करते रहे और उनका अस्तित्व अखबारों में बना रहे इसके लिए वे मदद भी करते रहे। ऐसे भी मौके आये जब उन्होंने अपने अखबार में इंदौर के कयी वरिष्ठ पत्रकारों को ‘गेस्ट जर्नलिस्ट’ रूप में काम करने का सम्मान दिया। अपने स्टाफ रिपोर्टर का अनुभव और ज्ञान बढ़ाने के लिए एक बार तो उन्होंने हर सप्ताह शहर के विषय विशेषज्ञों को आमंत्रित करना शुरू कर दिया। पत्रकार उनके साथ बैठते थे और अपने अनुभव साझा करते थे। अपनी मित्र मंडली में भी वे यारों के यार थे। जहां खड़े होते वहां खुशियां उंडेल देते थे। नवनीत दर्शन में उनके कक्ष में इंदौर से लेकर भोपाल दिल्ली तक की खबरें रहतीं थीं।
अपने अखबार के जरिये उन्होंने संघवी परिवार के लिए बहुत बड़ा सोशल नेटवर्क और प्लेटफार्म तैयार कर दिया था जिसकी ताकत छोटे भाई पंकज संघवी के हर चुनाव में देखने को मिलती थी। हर चुनाव में दिल्ली से लेकर भोपाल तक के नेता जानते थे कि चुनाव के सारे सूत्र और ताकत सुरेंद्र भाई की है।
इंदौर की पत्रकार बिरादरी भी उन्हें कभी नहीं भुलेगी क्योंकि पत्रकारों के हर आयोजन और कार्यक्रम के उदार सहयोगी के रूप में वे हमेशा मौजूद रहते थे।
सुरेंद्र भाई के जाने का दुःख उस हर पत्रकार को है जो उनसे जुडा रहा या चौथा संसार अखबार में रहा। हमने आज अपना शुभ चिंतक, बड़ा भाई और मित्र खो दिया। वे एक शून्य पैदा कर गये हैं।