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मध्य प्रदेश

पहले उत्तर देने वाला विद्वान समझा जाता था, अब ज्यादा प्रश्न पूछने वाला

भोपाल। पत्रकारिता में सुपर वैल्यू को छोड़ते हुए ईगो वैल्यू के मामले सबसे ज्यादा आगे आ रहे हैं। पहले उत्तर देने वाला विद्वान समझा जाता था, लेकिन अब जो सबसे ज्यादा प्रश्न पूछता है वो विद्वान निकलकर आता है। प्रमुख सचिव मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि खबर दोनों पक्षों को देखकर दिखाई या लिखी जानी चाहिए। उसमें एकपक्षीय का भाव नहीं होना चाहिए। वस्तुनिष्ठता पत्रकारिता का एक बड़ा मूल्य है।

<p>भोपाल। पत्रकारिता में सुपर वैल्यू को छोड़ते हुए ईगो वैल्यू के मामले सबसे ज्यादा आगे आ रहे हैं। पहले उत्तर देने वाला विद्वान समझा जाता था, लेकिन अब जो सबसे ज्यादा प्रश्न पूछता है वो विद्वान निकलकर आता है। प्रमुख सचिव मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि खबर दोनों पक्षों को देखकर दिखाई या लिखी जानी चाहिए। उसमें एकपक्षीय का भाव नहीं होना चाहिए। वस्तुनिष्ठता पत्रकारिता का एक बड़ा मूल्य है।</p>

भोपाल। पत्रकारिता में सुपर वैल्यू को छोड़ते हुए ईगो वैल्यू के मामले सबसे ज्यादा आगे आ रहे हैं। पहले उत्तर देने वाला विद्वान समझा जाता था, लेकिन अब जो सबसे ज्यादा प्रश्न पूछता है वो विद्वान निकलकर आता है। प्रमुख सचिव मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि खबर दोनों पक्षों को देखकर दिखाई या लिखी जानी चाहिए। उसमें एकपक्षीय का भाव नहीं होना चाहिए। वस्तुनिष्ठता पत्रकारिता का एक बड़ा मूल्य है।

प्रमुख सचिव वाणिज्यिक कर मनोज श्रीवास्तव ने ये बातें ‘मूल्यानुगत पत्रकारिता : आवश्यकता एवं चुनौतियां’ विषय पर मीडिया विमर्श के दौरान मुख्य वक्ता के रूप में कहीं। माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय के पं. झाबरमल शर्मा सभागार में उन्होंने कहा कि आज की पत्रकारिता में करुणा पक्ष को अनदेखा किया जा रहा है। वरिष्ठ पत्रकार प्रो. कमल दीक्षित ने कहा कि आज पत्रकारिता जिस मोड़ पर आ गई है उसे पुराने दौर में वापस लाना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि इस विषय पर विमर्श का यह पहला आयोजन है और इस कंसेप्ट की सबसे ज्यादा जरूरत है। वेबदुनिया के संपादक जयदीप कार्णिक ने कहा कि क्या पत्रकारिता आजादी के पहले और उसके कुछ समय बाद तक ही होती थी, आज के दौर में इसका स्वरूप बिलकुल बदल गया है। मीडिया विमर्श में अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री विजयदत्त श्रीधर द्वारा की गई। यहां प्रकाश साकल्ले सहित बड़ी संख्या में पत्रकार और छात्र-छात्राएं मौजूद हुए।

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विज्ञापनों के बीच में शब्दों की तड़प फड़फड़ा रही है उसमें 30 पेज का अखबार 70% प्रतिशत विज्ञापनों से भरे होने के कारण टेबल पर दम तोड़ देता है। उन्होंने कहा कि चंद पत्रकारों की वजह से वास्तविक पत्रकारों को भी संदेह के घेरे में देखा जाने लगा है। इसके लिए जिस तरह पत्रकारों का सेमीनार आयोजित किया गया है उसी तरह अखबार और न्यूज चैनल के मालिकों के लिए भी सेमीनार आयोजित किया जाना चाहिए।

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