नौकरी गई तो क्या, हौसला न जाने दीजिए
आगरा । लॉकडाउन में मीडिया जगत में तमाम लोगों की नौकरी चली गई। अमर उजाला आगरा के एक युवा पत्रकार ने इस दरम्यान बड़ा साहस दिखाकर समाज के सामने मिसाल पेश की है।
अमर उजाला आगरा में सिटी डेस्क इंजार्च रहे अविनाश चौधरी की अमर उजाला संपादक से नहीं बनी। काम के पक्के अविनाश को चाटुकारिता पसंद नहीं थी। इसके कारण संपादक ने अपनी हठधर्मिता दिखाते हुए अविनाश का ट्रांसफर रोहतक कर दिया।
यह बात युवा पत्रकार को अखर गयी। मीडिया जगत में 15 साल से अधिक समय तक क्राइम समेत कई प्रमुख बीट पर काम कर चुके अविनाश ने पत्रकारिता को गुडबाय करने के बाद नई मंजिल की तलाश शुरू की। हालांकि इस बीच कई संस्थानों ने उनसे जुड़ने के लिए संपर्क किया। अविनाश ने मीडिया लाइन की दयनीय स्थिति को देखते हुए नया कुछ करने का इरादा किया।
अविनाश ने एक नया काम शुरू करने के लिए सबसे पहले अपने आवास को बेच दिया। खुद के परिवार को किराये के मकान में रखा। इसके बाद अपनी 15 साल की गाढ़ी कमाई और जमापूंजी को लगाकर आगरा दयालबाग डीम्ड विवि के महज सौ मीटर की दूरी पर एक जमीन खरीदी। उन्होंने खरीदी गई जमीन पर बैंक से लोन लिया।
लोन से जमीन पर चार माह के लॉकडाउन पीरियड में लगातार काम कराते हुए तीन मंजिला 24 कमरे का महिला छात्रावास तैयार करा दिया।
इस हॉस्टल की आधुनिकता को देखकर आगरा पत्रकार जगत में अविनाश के दृढसंकल्प की सराहना हो रही है। अविनाश अब आगरा के पत्रकारों के लिए नजीर बन गए हैं। अविनाश का इस बारे में कहना है कि जिस नौकरी को हमने 15 साल का समय दिया, घर परिवार से बढ़कर समझा, उस नौकरी में केवल चापलूसों की ही दुनिया सुरक्षित है। मेरे पास परिवार है, उन्हें पालना है। परिजनों के चेहरे को देख मैंने हौसले को जिंदा रखा। जिस भी पत्रकार साथी की नौकरी जा रही है, उनसे केवल यह कहना चाहूंगा कि नौकरी रहे या न रहे, हौसले को अपने मरने न दीजिए, हौसला जिंदा रखिए।
देखिए स्थानीय अखबार में छपी एक खबर-