मजीठिया वेज बोर्ड प्रिंट मीडियाकर्मियों का होगा आखिरी वेज बोर्ड, पत्रकारों ने की नए कानून को अपग्रेड करने की मांग
देश भर के प्रिंट मीडिया के पत्रकारों और कर्मचारियों के लिए एक बुरी खबर। अखबार मालिकों की पिट्ठू बनी केंद्र की मोदी सरकार प्रिंट मीडिया के पत्रकारों तथा कर्मियों के लिए वेज बोर्ड खत्म करके अब वर्किंग जर्नलिस्ट का न्यूनतम वेतन तय करेगी जबकि बाकी अन्य अखबार कर्मचारी मजदूरों की श्रेणी में होंगे।
मज़दूरी संहिता विधेयक, 2019 में मज़दूरी, बोनस और उससे जुड़े मामलों से जुड़े क़ानून को संशोधित और एकीकृत किया गया है। राज्यसभा ने इसे दो अगस्त 2019 और लोकसभा ने 30 जुलाई, 2019 को पारित कर दिया था। इसे सितंबर तक लागू होने की उम्मीद है।
केंद्र सरकार ने जिन कानूनों को खत्म किया है उसमें वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट भी शामिल है।
इसके साथ ही प्रिंट मीडिया कर्मियों के लिए गठित मजीठिया वेज बोर्ड प्रिंट मीडिया कर्मियों के लिए आखिरी वेज बोर्ड होगा।
इसके बाद वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट का अस्तित्व खत्म हो जाएगा और इसके साथ ही नया वेज बोर्ड भी आने की उम्मीद खत्म हो जाएगी।
चर्चा तो ये भी है कि संशोधित कानून को लागू किया गया तो प्रिंट मीडिया के पत्रकारों को भी 6 घंटे की जगह 8 घंटे की ड्यूटी करनी पड़ेगी।
कुछ जानकार ये भी बताते हैं कि इस संशोधन से जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड या उसके पहले के वेज बोर्ड के तहत अपना बकाया मांगने वालों का अधिकार सुरक्षित रहेगा।
इस बारे में मजीठिया क्रांतिकारी और मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार शशिकांत सिंह ने मांग की है कि सरकार इस नए कानून को अपग्रेड करे और इसमे प्रिंट मीडिया कर्मियों के साथ साथ न्यूज़ चैनलों और वेब पोर्टलों के मीडियाकर्मी के अधिकारों का भी ख्याल रखे। साथ ही इन्हें किसी ना किसी कानून के अंतर्गत लाया जाए जिससे वेब पोर्टल या न्यू मीडिया में काम करने वाले कर्मचारी सुरक्षित हो सकें। ऐसा न हो कि खुद की नौकरी सुरक्षित रखने के लिए अपने प्रबंधकों की डफली बजाना मजबूरी बन जाए।
शशिकांत सिंह का कहना है कि पत्रकारों की सुरक्षा और उनके विरुद्ध सरकार द्वारा या अन्य लोगों द्वारा की जा रही हिंसा के लिए विशेष कानून बनाकर उन्हें बाकी सभी संस्थानों की तरह सुरक्षित किया जाए।
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