संजय कुमार सिंह-
सारे जहां से अच्छा और गांधारी का कुरुक्षेत्र
द टेलीग्राफ में छपी यह तस्वीर इलाहाबाद यानी प्रयागराज की है। इस तस्वीर में शव गिन सकते हैं? पीटीआई की इस तस्वीर का कैप्शन है, कोविड-19 के दूसरे दौर में इलाहाबाद में गंगा के किनारे रेत में दबे शव जैसा शनिवार को देखा गया।
अखबार ने इसकी तुलना 2 अप्रैल 1984 की घटना से की है जब इंदिरा गांधी ने अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा से पूछा था, अंतरिक्ष से भारत कैसा लगता है? इसपर उन्होंने कहा था, “सारे जहां से अच्छा”।
अखबार ने लिखा है कि 15 मई 2021 को कोई प्रधानमंत्री मोदी से पूछता, आपके बसेरे से भारत कैसा लगता है? तो वे कहते, आपको याद होगा गांधारी ने कुरुक्षेत्र में क्या कहा था : जहां कहीं मैं देखती हूं, हर दिशा में अनगिनत लाशें पड़ी हुई हैं …. ।
रवींद्र श्रीवास्तव-
गांधारी विलाप
द टेलीग्राफ ने आज के अंक में लगभग आधे पेज पर यह चित्र छापा है। दो तारीखों का जिक्र है। पहली है 2 अप्रैल 1984 । जब इंदिरा गांधी ने राकेश शर्मा से पूछा था अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है। जवाब मिला था सारे जहां से अच्छा।
दूसरी तारीख है 15 मई 2021। मोदी जी से पूछा है कि आप जहां हैं, वहां से आपको भारत कैसा दिख रहा है। फिर कहा गया है कि शायद कुरुक्षेत्र में गांधारी के विलाप की याद आ जाए। हर दिशा में लाशें ही लाशें हैं।
यह है सरोकारों की सच्ची पत्रकारिता । चित्र देखकर भी जिनकी रूह न कांपे, वे इंसान हो ही नहीं सकते।
हर्ष देव-
यह कुरुक्षेत्र नहीं, कोरोना क्षेत्र है। भारत नरेश की तरह एक दिन पहले ही आपने कहा था कि यह देश हिम्मत नहीं हारता है। लेकिन जब देश की कमान आप जैसे हीनताग्रस्त शख़्स के हाथ में हो तो वैसी ही नियति होती है जैसी लद्दाख में घुस आए चीन की मौजूदगी की हामी भरने के वक़्त देखी थी।
चीन का नाम तक लेने में आपकी ज़ुबान सूख गई थी।
आप महाभारत जीतने की बात क्या करते हो! आप तो अभी-अभी बंगाल में भी हार की कालिख पोतकर लौटे हो। भाड़े पर जमा की गई भीड़ पर ताली बजाना दीगर बात है।माफ़ कीजिए!
महामारी से जूझने के लिए साँस लेने तक को तरसती बेसहारा छोड़ दी गई जनता का साथ देने का नैतिक और मानसिक साहस आप में है नहीं। विश्वास न हो तो स्वयं देख सकते हैं हैं यह दृश्य जिसमें जहां तक भी, जितनी दूर तक निगाह जा पा रही है, शव ही शव बिखरे पड़े हैं। ये आपकी झूठी बहादुरी और भयभीत होने की गवाही दे रहे हैं।
यह घंटा राज के इलाक़े का मंजर है जहां दीवाली पर लाखों दीयों में तेल को धुँआ किया जाता है।