सोशल मीडिया पर ऐसे लोगों की जमात ज्यादा है, जिन्हें मुद्दों की समझ कम है… या तो वे आंखों पर पट्टी बांधकर भक्तगिरी में लिप्त हैं और इसी तरह की पोस्टों को कॉपी कर-करके माथा पकाते हैं… जिस विषय से संबंधित बात है उस पर तर्क देने की बजाय बे सिर-पैर की पोस्ट डाली जाती है। अभी आमिर खान की फिल्म दंगल को लेकर ही ऐसी ही घासलेटी और बकवास पोस्ट पढऩे को मिल रही है। शाहरुख खान के साथ आमिर खान का भी विरोध असहिष्णुता के मामले में किया गया और धमकी भी दी गई कि उनकी फिल्मों को प्रदर्शित नहीं होने दिया जाएगा। शाहरुख खान की कमजोर फिल्म दिलवाने ने भी ठीकठाक बिजनेस किया और भक्तों ने इसे भी फ्लॉप बता दिया। अभी आमिर खान की फिल्म दंगल रिलीज होने से पहले कई प्रमुख नेताओं ने सोशल मीडिया पर ही सबक सिखाने की बात कही, लेकिन सिनेमाघरों के सामने उनका छाती-माथा कूटन नजर नहीं आया।
पता नहीं किस दड़बे में ये बयान बहादुर नेता जा दुबके और दंगल न सिर्फ धूमधाम से रिलीज हुई, बल्कि सुपर-डुपर हिट भी साबित हो रही है। यहां तक कि हरियाणा और छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने तो इस फिल्म को टैक्स फ्री भी कर दिया और इस पार्टी से जुड़े लोग आमिर को सबक सिखाते हुए फिल्म फ्लॉप करवाने के दावे कर रहे थे। ये भी एक तरह का यूटर्न तो है ही, साथ ही पाखंड भी। अब एक घासलेटी पोस्ट जरूर इस संबंध में सोशल मीडिया में चलने लगी। इस पोस्ट में कहा जा रहा है कि दंगल ने 3 दिन में ही 100 करोड़ रुपए कमा लिए, तो नोटबंदी का असर कहां है..? इस पोस्ट में यह भी कहा कि पहले लोग बैंकों की लाइन में मर रहे थे, उनका काम-धंधा चौपट हो गया। श्रमिकों को मजदूरी नहीं मिली। अब उन्होंने फिल्म देखने के लिए नकदी भी जुटा ली और नेट बैंकिंग भी सीख गए।
अब इन पोस्टों को भेजने वाले दिमाग से पैदल लोगों को किस तरह समझाया जाए कि वे असल भारत को जानते और समझते ही नहीं हैं… आमिर खान की दंगल ने जो 100 करोड़ रुपए कमाए वो कोई ठेले वाले, मजदूर, घर में काम करने वाली बाई, साग-भाजी बेचने वाले ने नहीं खर्च किए हैं… इन महामूर्खों को यह तथ्य ही पता नहीं है कि मल्टीफ्लेक्स में फिल्म देखने वाली ऑडियंस यानि उनका दर्शक वर्ग अलग ही है, जो नोटबंदी के पहले भी ऑनलाइन ही अधिकांश टिकट बुक कराता था और इस वर्ग में से अधिकांश को वैसे भी न तो बैंकों की लाइन में लगना पड़ा और न ही एटीएम के सामने… ये वो वर्ग है जिनका कालाधन घर बैठे ही भ्रष्ट बैंक मैनेजरों ने सफेद कर दिया… इसके अलावा बड़ी संख्या में नौकरीपेशा लोग भी फिल्म देखते हैं, जिन्हें नोटबंदी से कोई फर्क इसलिए नहीं पड़ा, क्योंकि उनका वेतन पहले से ही बैंकों में जमा होता रहा है और वे या तो एटीएम से पैसे जरूरत के मुताबिक निकालते हैं या फिर डेबिट अथवा क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करते हैं।
देश की आबादी 125 करोड़ से ज्यादा है और अगर दंगल में 3 दिन में 100 करोड़ कमा लिए और प्रति व्यक्ति मात्र 100 रुपए की औसत टिकट का खर्चा भी जोड़ा जाए तो मात्र 1 लाख लोग ही होते हैं। अगर इन 1 लाख या ऐसे 10-20 लाख लोगों से ही अतुल्य भारत की तस्वीर बनाई जाए तो यह तो मूर्खता का प्रदर्शन ही कहलाएगा। ऐसी पोस्ट भेजने वाले अपने घर की काम वाली बाई, बिल्डिंग के चौकीदार, गली-मोहल्ले के किराने वाले, ठेले वाले, मजदूर या साग-भाजी बेचने वाले से जरूरत पूछ लें कि क्या उन्होंने 200 रुपए की टिकट खरीदकर दंगल देखी..? (इस तरह का तबका ही नोटबंदी से अधिक त्रस्त हुआ है) संभव है कि यह फिल्म आने वाले दिनों में 500 करोड़ रुपए भी कमा ले, तो इसका देश के उन 124 करोड़ से अधिक लोगों से क्या लेना-देना..? पूरे देश में 1 करोड़ लोग भी सिनेमाघर जाकर ये फिल्म नहीं देख पाएंगे… अभी क्रिसमस पर ही तमाम शॉपिंग मॉलों में पांव रखने की जगह नहीं मिली और होटलों से लेकर पर्यटन स्थलों पर भी भीड़ है, मगर यह फर्क इंडिया और भारत को समझने वाले ही बेहतर तरीके से जान सकते हैं…
लेखक Rajesh Jwell इंदौर के सांध्य दैनिक अग्निबाण में विशेष संवाददाता के रूप में कार्यरत और 30 साल से हिन्दी पत्रकारिता में संलग्न एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के साथ सोशल मीडिया पर भी लगातार सक्रिय. संपर्क : [email protected] , 9827020830