राम मंदिर सुप्रीम कोर्ट से ही बनना है तो भाजपा किस मर्ज की दवा?

मोदी सरकार के कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ही राम मंदिर निर्माण का संवैधानिक रास्ता निकलेगा… अब सवाल यह है कि जब सुप्रीम कोर्ट से ही राम मंदिर बनना है तो फिर भाजपा, संघ या उससे जुड़े विहिप सहित तमाम संगठन किस मर्ज की दवा हैं और सालों से वे किस आधार पर ये दावे करते रहे कि कसम राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे..? विपक्ष में रहते भाजपा ने कभी भी संवैधानिक तरीके से राम मंदिर निर्माण की बात नहीं की, उलटा यह नारा लगाया जाता रहा कि दुनिया की कोई अदालत यह तय नहीं कर सकती कि भगवान राम का जन्म कहां हुआ और मंदिर निर्माण कोर्ट का नहीं, बल्कि आस्था का विषय है…

मिस्टर ट्रम्प! पत्रकारिता के नियम हमारे हैं, आपके नहीं

अमेरिका फर्स्ट क्यों है… क्यों वह दुनिया का चौधरी कहलाता है और आर्थिक सम्पन्नता के मामले में भी अमेरिका तमाम मंदी के बावजूद सर्वोच्च क्यों बना हुआ है..? इन सवालों के जवाब ट्रम्पकाल की शुरुआत में ही बड़ी आसानी से खोजे जा सकते हैं… लोकतंत्र की खूबसूरती दमदार विपक्ष के रूप में ही देखने को मिलती है और अमेरिकी समाज ने बता दिया कि वह तंग दिल नहीं, बल्कि खुली सोच का हिमायती है… अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति बने डोनाल्ड ट्रम्प  ने अपनी शपथ में मेक इन अमेरिका के नारे के साथ बाय अमेरिकन-हायर अमेरिकन की बात कही है… उनके शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार जहां 60 डेमोक्रेटिक सांसदों ने किया तो जाने-माने हॉलीवुड अभिनेता रॉबर्ट डी नीरो  ने भी खुलेआम खिलाफत की…

नोटबंदी : खाया-पीया कुछ नहीं, गिलास फोड़ा बारह आना

15 लाख करोड़ तक जमा हो गए बैंकों में, 97 प्रतिशत 1000 और 500 के खारिज किए नोट पहुंचे रिजर्व बैंक के पास, मात्र 47 हजार करोड़ ही बचे : खाया-पीया कुछ नहीं, गिलास फोड़ा बारह आना… ये कहावत मोदी सरकार की नोटबंदी पर पूरी तरह चरितार्थ होती है। खबरों की पुष्टि इन आंकड़ों से हो जाती है कि 30 दिसम्बर तक देशभर की बैंकों में 14.97 करोड़ रुपए मूल्य के 1000 और 500 के खारीज किए नोट जमा हो गए। नोटबंदी के वक्त रिजर्व बैंक ने वैसे तो साढ़े 14 लाख करोड़ के नोट चलन से बाहर करने का दावा किया था, जो बाद में बढ़कर 15.44 लाख करोड़ बताया गया। इस आंकड़े के मुताबिक भी मात्र 47 हजार करोड़ रुपए के नोट ही ऐसे रहे जो बैंकों में जमा नहीं हो पाए। हालांकि अभी भी कई लोग रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के बाहर अपने नोट बदलवाने के लिए खड़े हैं। इतना ही नहीं एक बड़ी राशि लोगों ने महंगा सोना खरीदने और प्रॉपर्टी सहित अन्य जगह खपा दी। इसका मतलब यह हुआ कि 97 प्रतिशत नोट जहां जमा हुए, वहीं बचे 3 प्रतिशत का भी बड़ा हिस्सा लोगों ने अपनी जुगाड़ के जरिए अलग-अलग तरीकों से खपा डाला।

लचर ‘द एण्ड’ के साथ ‘नोटबंदी’ की फिल्म फ्लॉप…

नोटबंदी की जिस फिल्म का 8 नवम्बर को मोदी जी ने धूम धड़ाके के साथ रात 8 बजे प्रदर्शन किया था उसके टाइटल तो बड़े आकर्षक थे… फिल्म जैसे-जैसे आगे बढ़ी तो उसकी पटकथा में तमाम झोल नजर आने लगे। फिल्म के जो सितारे थे वह थोड़े ही दिन बाद खलनायकों में तब्दील हो गए। सोशल मीडिया के भक्तों ने बैंकों के अधिकारियों और कर्मचारियों को सितारा बताते हुए उनकी तुलना सरहद पर खड़े जवानों की ड्यूटी से कर डाली। यह बात अलग है कि बैंकों के ये सितारे बाद में गब्बर सिंह निकले, जिन्होंने पिछले दरवाजे से काले कुबेर रूपी मोगेम्बो से सांठगांठ कर कतार में लगे तमाम मिस्टर इंडियाओं को मूर्ख बना दिया और परवारे ही नए नोट बैंकों से लेकर एटीएम से गायब होकर काले कुबेरों के पास जमा हो गए।

‘दंगल’ बनाम ‘नोटबंदी’ : मूर्ख भक्तों को कोई कैसै समझाए….

सोशल मीडिया पर ऐसे लोगों की जमात ज्यादा है, जिन्हें मुद्दों की समझ कम है… या तो वे आंखों पर पट्टी बांधकर भक्तगिरी में लिप्त हैं और इसी तरह की पोस्टों को कॉपी कर-करके माथा पकाते हैं… जिस विषय से संबंधित बात है उस पर तर्क देने की बजाय बे सिर-पैर की पोस्ट डाली जाती है। अभी आमिर खान की फिल्म दंगल को लेकर ही ऐसी ही घासलेटी और बकवास पोस्ट पढऩे को मिल रही है। शाहरुख खान के साथ आमिर खान का भी विरोध असहिष्णुता के मामले में किया गया और धमकी भी दी गई कि उनकी फिल्मों को प्रदर्शित नहीं होने दिया जाएगा। शाहरुख खान की कमजोर फिल्म दिलवाने ने भी ठीकठाक बिजनेस किया और भक्तों ने इसे भी फ्लॉप बता दिया। अभी आमिर खान की फिल्म दंगल रिलीज होने से पहले कई प्रमुख नेताओं ने सोशल मीडिया पर ही सबक सिखाने की बात कही, लेकिन सिनेमाघरों के सामने उनका छाती-माथा कूटन नजर नहीं आया।

‘आप’ बन सकती है मप्र में नकारा कांग्रेस का विकल्प!

लोकतंत्र में सशक्त विपक्ष का होना अत्यंत जरूरी है। इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा ने विपक्ष की भूमिका दमदार तरीके से निभाई। इसी कारण सत्ता में आने के बाद भी वह कई मर्तबा विपक्ष की भूमिका अदा करती नजर आती है। एक लम्बे समय तक यह धारणा भी रही कि कांग्रेस सरकार चलाने वाली पार्टी और भाजपा विपक्ष की पार्टी है। यही कारण है कि भाजपा का अदना-सा नेता और कार्यकर्ता भी भाषणवीर होता है और कांग्रेस कभी भी दमदारी से विपक्ष की भूमिका अदा नहीं कर सकी। पिछले आम चुनाव में कांग्रेस की बुरी दुर्गति हुई और उसके बाद अधिकांश राज्यों के चुनावों में भी कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा।

पानी और पर्यावरण के लिए लड़ने वाले संत पुरुष अनुपम मिश्र नहीं रहे

आज सुबह व्हाट्सएप पर सुप्रभात संदेशों के साथ एक दु:खद संदेश यह भी मिला कि जाने-माने पर्यावरणविद् और गांधीवादी अनुपम मिश्र नहीं रहे… जिस देश में चारों तरफ पाखंड और बनावटीपन का बोलबाला हो वहां पर एक   शुद्ध खांटी और खरे अनुपम मिश्र का होना कई मायने रखता है। सोशल मीडिया से ही अधकचरी शिक्षित हो रही युवा पीढ़ी अनुुपम मिश्र को शायद ही जानती होगी। देश में आज-कल ‘फकीरी’ के भी बड़े चर्चे हैं। लाखों का सूट पहनने और दिन में चार बार डिजाइनर ड्रेस पहनने वाले भी ‘फकीर’ कहलाने लगे हैं, मगर असली फकीरी अनुपम मिश्र जैसे असल गांधीवादी ही दिखा सकते हैं। उनका अपना कोई घर तक नहीं था और वे गांधी शांति फाउंडेशन नई दिल्ली के परिसर में ही रहते थे।

मोदी जी, आप 8 नवम्बर को सही थे या अब 29 नवम्बर को?

कालेधन के रद्दी कागज को नोटों के रूप में फिर जिंदा क्यों किया… प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी आपने कालेधन के खिलाफ जो सर्जिकल स्ट्राइक की उसे देश की अधिकांश जनता ने तमाम दिक्कतों के बावजूद सराहा। 8 नवम्बर को रात 8 बजे आपने देश के नाम अपने संदेश में नोटबंदी की घोषणा करते हुए कहा कि आज आधी रात यानि 12 बजे के बाद 1000 और 500 रुपए के चल रहे नोट अवैध हो जाएंगे। इससे ईमानदार जनता, कारोबारी, करदाता, गृहणियां कतई न घबराए और वे अपने पुराने नोट दो दिन बाद से 30 दिसम्बर तक बैंकों और डाक घरों में जाकर जमा कर दें और बदले में 500 और 2000 के नए नोट पा लें।

मोदी के फैसले से आर्थिक आपातकाल, देशभर में हाहाकार

40 प्रतिशत से ज्यादा कालेधन का है बाजार में चलन, सभी तरह का कारोबार पड़ा ठप

राजेश ज्वेल

इंदौर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मास्टर स्ट्रोक ने जहां आम आदमी को फिलहाल पसंद किया वहीं तमाम कारोबारी माथा पकड़कर बैठे हैं। 500-1000 रुपए के नोट बंद करने की घोषणा के साथ ही देशभर में हाहाकार मच गया और आर्थिक आपातकाल से हालात हो गए, क्योंकि साग-सब्जी वाला भी 500 रुपए का नोट लेने से इनकार कर रहा है और आज से तो वैसे भी ये बड़े नोट कागज के टुकड़े साबित हो गए हैं। देश की 40 प्रतिशत से ज्यादा इकॉनोमी कालेधन से ही चलती रही है। लिहाजा एकाएक इस पर ब्रेक लगा देने से हर तरह का कारोबार ठप पड़ जाएगा।

हे जेम्सबॉण्ड… तुम गुटखा बेचने लायक ही हो!

वैसे तो शीत युद्ध की समाप्ति के बाद ही तुम्हें घर बैठ जाना था… दुनिया में अब एक ही चौधरी व्हाइट हाउस वाले बचे हैं और दूसरे चौधरी के लिए कबड्डी जारी है। आज तुम्हारे रचियता स्वर्ग में बैठे इयान फ्लेमिंग का सीना अवश्य 56 इंच का हो गया होगा कि उनका जेम्सबॉण्ड भारत की धरा पर गुटखा बेच रहा है… हम भारतवासियों ने ही गुटखे का आविष्कार किया और  इसकी पिचकारी से कोई सड़क या बिल्डिंग का कोना बिना चित्रकारी से अछूता न रहा… गुटखा खाने में भारतवंशियों की कोई जोड़ ही नहीं है और मौका आए तो इसकी तलब लगने पर कोई अम्बानी किसी ठेला चलाने वाले  रामलाल से भी गुटखा मांगकर खा सकता है… ये गुटखा ही है, जिसने विविधताओं से भरे देश को एकजुट करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है…

व्यापमं पर खुल गई दावों की पोलपट्टी… ये है हकीकत

मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान सहित उनकी पूरी पार्टी भाजपा लगातार ये दावे करती रही है कि व्यापमं कोई बहुत बड़ा महाघोटाला नहीं है और इसकी जांच खुद उन्होंने ही शुरू करवाई। मुख्यमंत्री तो खुद को व्हिसल ब्लोअर भी बताते रहे हैं और पहले सीबीआई जांच से बचते रहे और जब देखा कि सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले को सीबीआई को सौंपने जा रहा है तब आनन-फानन में सीबीआई जांच करवाने का अनुरोध-पत्र सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत कर दिया। सीबीआई ने हालांकि व्यापमं घोटाले की जांच शुरू कर दी है और सुप्रीम कोर्ट तो व्यापमं से अधिक बड़ा और गंभीर घोटाला डीमेट को बता रहा है और इसकी भी सीबीआई जांच होगी। इधर नगरीय निकायों के चुनाव में भाजपा को एक बार फिर जोरदार सफलता मिली, जिसे व्यापमं घोटाले की क्लीन चिट के रूप में भी जमकर प्रचारित किया जा रहा है।

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