उर्मिलेश-
राहुल गांधी जी की टिप्पणियां कभी-कभी बहुत बेतुकी होती हैं. अभी कुछ ही देर पहले उनका एक वीडियो देखा, जिसमें वह अपनी ‘खास खिसियाती मुद्रा’ में BBC के वरिष्ठ पत्रकार सलमान रावी के साथ संवाद कर रहे होते हैं. उसमें वह कहते हैं: “आप एक छोटे रिपोर्टर हैं’. इस टिप्पणी से पहले वह रावी से उनका नाम और संगठन पूछते हैं. इसके बाद उन्हें ‘छोटा रिपोर्टर’ कहकर संबोधित करते हैं.
मुझे लगता है, राहुल गांधी का यह कहना सरासर गलत था. सलमान या उनकी पत्रकारिता के बारे में अगर उन्हें कुछ मालूम ही नहीं था तो उन्हें ‘छोटे रिपोर्टर’ का विशेषण वह क्यों देने लगे?
वैसे भी छोटा या बड़ा रिपोर्टर या पत्रकार कौन है, कौन नहीं है; यह पाठकों, श्रोताओं, दर्शकों या उस पत्रकार के संगठन पर छोड देना चाहिए. पत्रकारों के मूल्यांकन का काम राजनेताओं का नहीं है, चाहे वे सत्तापक्ष के हों या विपक्ष के!
कुछ समय पहले राहुल गांधी ने एक टीवी पत्रकार से सार्वजनिक तौर पर उसकी जाति पूछी थी. यह पूछने के पीछे उनका इरादा चाहे जो भी रहा है, उनका तरीका निश्चय ही गलत था.
राहुल जी विपक्ष के बडे नेता हैं. देश इस वक्त गहरे संकट में है. संवैधानिक लोकतंत्र पर खतरा बढता जा रहा है. ऐसे दौर में उन जैसे विपक्षी नेताओं से देश और समाज को बडी अपेक्षाएं हैं. लोकतंत्र की रक्षा के मद्देनज़र आज हमारे राजनीतिक परिवेश में उत्तेजना, खीझ और खिसियाहट की नहीं; बौद्धिक प्रौढ़ता, राजनीतिक शालीनता और संवाद में विनम्रता की ज्यादा दरकार है..