लखनऊ। यह एक ऐसी खबर है जिस पर आपको भरोसा नहीं होगा, मुझे भी नहीं हुआ था। आइये आपको बताते हैं एक ऐसा वाक्या जिसने पूरी यूपी पुलिस के दामन पर ऐसा दाग लगाया है जो मुश्किल से छूटेगा। जब पुलिस का सबसे बड़ा अफसर गुंडों की पैरवी में दिन-रात एक कर दे तो भला कानून का ध्यान कौन रखेगा। अपने डीजीपी अरविंद कुमार जैन ने जो कारनामा कर दिया है वैसा कारनामा आज तक शायद किसी डीजीपी ने नहीं किया होगा।
मामला इलाहाबाद का है। यहां के एक बड़े व्यापारी संजय अग्रवाल अपनी पत्नी के साथ कम्पनी बाग में टहल रहे थे। इसी दौरान वहां छिपे नितिन गोयल ने संजय अग्रवाल पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं। संजय अग्रवाल के पेट में गोली लगी। लहूलुहान हालत में उन्हें प्राइवेट नर्सिंग होम में ले जाया गया। वह इलाहाबाद के सभ्रांत घराने से ताल्लुक रखते हैं। आनन-फानन में सभी बड़े अफसर नर्सिंग होम पहुंचे। नितिन संजय से इसलिए चिढ़ता था क्योंकि वह अपनी भतीजी रिचा के मामलों में अदालत में पैरवी कर रहे थे।
नितिन गोयल की पत्नी संजय अग्रवाल की भतीजी है। राजस्थान की रहने वाली रिचा अग्रवाल पर शादी के बाद से ही नितिन दहेज को लेकर भयंकर रूप से अत्याचार करता था। जब मामला हद से पार हो गया तो रिचा ने दहेज का मुकदमा दायर कर दिया। पुलिस ने यह आरोप सही पाए और नितिन गोयल के खिलाफ चार्जशीट दायर कर दी। रिचा समझ गई थी अगर वह नितिन के साथ रहेगी तो उसकी जान जोखिम में रहेगी। लिहाजा वह अपने घर इलाहाबाद आ गई। अपने पैसे के दम पर कानून को जेब में रखने वाला नितिन गोयल अपनी पत्नी को अपने खिलाफ लिखे मुकदमे में सबक सिखाना चाहता था। लिहाजा वह एक दिन इलाहाबाद के थाना जार्ज टाउन क्षेत्र में रह रही रिचा के घर पहुंचा और उसे मारना शुरू कर दिया। जब रिचा ने इसका विरोध किया तो नितिन ने उस पर गोली चला दी। ईश्वर की कृपा से रिचा बच गई और नितिन फरार हो गया।
पुलिस ने इस मामले में नितिन के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की और उसकी तलाश शुरू की। नितिन इस चार्जशीट के खिलाफ पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट गया मगर दोनों जगह उसको राहत नहीं मिली। इसके बाद पुलिस ने उसके घर की कुर्की कर ली। इसके बाद नितिन एक करोड़ रुपये लेकर ऐसे शख्स की तलाश में जुट गया जो उसके सारे मुकदमे की पैरवी कर सके। मगर सारा केस देखने के बाद किसी की हिम्मत नहीं पड़ी जो नितिन की पैरवी कर सके मगर इसके बाद जो कुछ हुआ वह पूरे सिस्टम को शर्मिंदा करने के लिए काफी था। जिस अपराधी की तलाश में पुलिस दिन रात एक किए हुए थी वह कुछ लोगों के साथ आकर डीजीपी ए. के. जैन से मिला। आमतौर पर किसी गरीब को डीजीपी से मिलने में भले ही पसीने आ जाए मगर इस अपराधी को मिलने में उन्हें कोई समस्या नहीं आई। डीजीपी ने 17 मार्च और 22 अप्रैल को एसएसपी इलाहाबाद को जो खत लिखा उसने सब नियम कायदे ताक पर रख दिये। इन दोनों खतों के ऊपर महत्वपूर्ण/फैक्स लिखा गया।
न जाने इस अपराधी की किस बात का इतना प्रभाव था कि डीजीपी ने अपने खत में लिखा कि नितिन गोयल ने कहा है कि उन पर गलत मुकदमें दर्ज हो रहे हैं। लिहाजा इस मामले की जांच करा लें और अगर ऐसा है तो मुकदमा दर्ज करने वाले पर कार्रवाई करें। यह अपने आप में निराला मामला था। पुलिस जिस अपराधी की तलाश में दिन-रात एक कर रही हो वह अपराधी न सिर्फ डीजीपी से मिलता है बल्कि डीजीपी उनकी पैरवी में दिन-रात एक कर देते हैं। यही नहीं डीजीपी ने इस खत में अप्रत्याशित रूप से अपनी राय दर्ज करते हुए कहा कि लडक़ी से संबंधित दहेज का मुकदमा जयपुर में चल रहा है इसकी आड़ में फर्जी मुकदमे कायम करना उचित नहीं होगा।
यही नहीं उन्होंने लिखा कि इसकी जांच किसी ईमानदार एएसपी अथवा सीओ से करा लें। और तब तक अभियुक्त की न तो गिरफ्तारी हो और न ही दबिश डाली जाए। डीजीपी का यह खत सबको चौंका गया। लोग यह नहीं समझ पाए कि डीजीपी किस हैसियत से यह लिख सकते हैं कि इसकी जांच ईमानदार अफसर से कराई जाये। क्या जो जांच करेगा वहीं ईमानदार होगा और बाकी सब बेईमान। यही नहीं अदालत ने जिस अपराधी की तलाश में कुर्की के वारंट जारी कर रखे हैं भला उसकी गिरफ्तारी पर रोक कैसे लगाई जा सकती है। मगर जैन साहब सूबे के डीजीपी हैं और वही बता सकते हैं कि इस अपराधी पर इतनी कृपा का आखिर क्या मतलब है।
हाईकोर्ट का आदेश ताक पर
विवेचना ट्रासफर के सम्बन्ध में वंदना श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश सरकार में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 21 मई 2014 के आदेश में स्पष्टï रूप से कहा था कि विवेचना ट्रांसफर न की जाए और यदि ऐसा करना आवश्यक हो तो कम से कम विवेचक से विवेचना की स्थिति अवश्य ज्ञात कर ली जाए। हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि आदेश में ट्रांसफर के विस्तृत कारण बताये जायें और यथासंभव वादी को अपनी बात कहने का मौका दिया जाए। कोर्ट ने यह भी कहा था कि किसी भी हालत में इन आदेशों का उल्लंघन न किया जाये। मगर डीजीपी एके जैन ने फरार गुंडे नितिन की पैरवी में हाईकोर्ट के आदेशों को भी ताक पर रख दिया और इस अपराधी की पैरवी में एसएसपी इलाहाबाद को जो खत भेजा उसके ऊपर महत्वूपर्ण/फैक्स लिखकर बता दिया कि डीजीपी इस अपराधी को कितना प्यार करते हैं।
जिसने दिया आदेश वही बताए
इस मामले में डीजीपी डॉ. जैन से बात करने की कोशिश की गई मगर बताया गया कि वे मीटिंग में व्यस्त हैं। मगर डीजीपी के पीआरओ नित्यानंद राय ने तो हद ही कर दी। जब उनसे पूछा गया कि क्या डीजीपी साहब एसएसपी को यह लिख सकते हैं कि किसी ईमानदार अफसर से इसकी जांच कराई जाए तो उन्होंने कहा कि मैं क्या बताऊ जिसने आदेश दिया वहीं बताए। यह हालात बताते हैं कि पीआरओ भी डीजीपी को ठेंगे पर रखते हैं।
लेखक संजय शर्मा लखनऊ से हाल में ही प्रकाशित मिडडे अखबार ‘4पीएम’ के प्रधान संपादक हैं.