Dayanand Pandey : प्रसार भारती की अध्यक्ष रही किसी महिला की भाषा इतनी तुच्छ, इतनी टुच्ची भी हो सकती है, नहीं मालूम था। लेकिन मृणाल पांडे की नीचता और तुच्छता की यह पराकाष्ठा है , इस ट्वीट में। हिंदी की महत्वपूर्ण लेखिका शिवानी की बेटी मृणाल पांडे जब हिंदुस्तान अखबार में संपादक थीं, तभी पूरे अखबार में निकृष्ट पहाड़वाद चला कर अखबार की चूलें हिला दी थीं। मृणाल पांडे की तुच्छता की एक नहीं अनेक मिसाल तब सामने आई थी। मृणाल पांडे का पहाड़वाद हिंदुस्तान अखबार में तब बाकायदा बदबू मारने लगा था।
कभी हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक रहे खुशवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा में एक जगह लिखा है कि एक बार बिरला ने उन से पूछा कि अखबार में कोई दिक्क्त , ज़रूरत हो तो बताएं। तो तमाम विवरण देते हुए खुशवंत सिंह ने कहा था कि स्टाफ बहुत सरप्लस है। कुछ विशेष विषय के लोग नहीं हैं तो उन्हें रखना होगा। बाकी को हटाना होगा। तब बिरला ने खुशवंत सिंह से साफ़ कहा था कि आप को जैसे और जितना स्टाफ रखना हो, रख लीजिए लेकिन निकाला एक नहीं जाएगा।
बिरला के उसी अखबार में मृणाल पांडे ने लेकिन चुन-चुन कर नान पहाड़ियों को हटाया। सभी संस्करणों में, सभी ख़ास पदों पर सिर्फ पहाड़ियों को ही नियुक्त किया। अजब हिटलरशाही चलाई थी मृणाल पांडे ने तब हिंदुस्तान अखबार में कि लोग तब त्राहिमाम कर बैठे थे। पर चूंकि कांग्रेसी पृष्ठभूमि वाली मृणाल की तब की कांग्रेस सरकार में खासी पैठ थी सो प्रबंधन आंख मूंदे रहा। बिरला की दलाली भी खूब की मृणाल ने। मृणाल के श्वसुर राज्यपाल रहे थे, पति आई ए एस। पिता भी शिक्षा अधिकारी रहे थे।
एक समय दूरदर्शन पर प्रधान मंत्री नरसिंहा राव का एक मीठा-मीठा इंटरव्यू भी लिया था मृणाल पांडे ने। 2010 में मृणाल पांडे प्रसार भारती की अध्यक्ष भी बनीं। लेकिन प्रसार भारती की अध्यक्ष रही महिला प्रसार भारती के ही धारावाहिक रामायण के लिए यह विशेषण और यह तुच्छता का भाव रख सकती है, यह नहीं मालूम था। जितनी निंदा की जाए कम है। विरोध की भी आखिर एक सीमा और शालीनता होती है। विरोध के नाम पर भाषा और मानसिकता का इतना पतन? तौबा-तौबा !
लखनऊ के पत्रकार और साहित्यकार दयानंद पांडेय की एफबी वॉल से.