अपने परम आदरणीय प्रातः स्मरणीय सुब्रतो राय के एक खत पर चट्टानी मजबूती के साथ मोर्चे पर डटे कर्तव्य योगियों ने एक झटके में हडताल तोड़ दी. आखिर क्यों? देश के सबसे बडे न्याय के मंदिर सुप्रीम कोर्ट में अपने प्यारे प्यारे (इनके सहारा श्री का यही संबोधन है) के कष्टों के कारण वेतन का न दे पाना बताते हुए सहारा के वकील कपिल सिब्बल का कहना कि ”मेरे बैंक खाते आपने सीज कर रखे हैं, मैं उन्हें पैसे कहां से दूं, मैं पैसे नहीं दे पा रहा हूं, आप खाते पर से रोक हटाइए, तो मैं पैसे दूं”, यह इशारा करता है कि कहीं हड़ताल शुरू होना और खत्म होना प्रबंधन की प्लानिंग तो नहीं थी? क्या कोर्ट की तारीख और हड़ताल की तारीख का मिल जाना महज संयोग था या प्री-प्लांड रणनीति?
शुरुआती दिनों की मैनेजमेंट की भाषा और अंत की भाषा दोनों में जमीन आसमान का अंतर था. पहले बुधवार तक वेतन उसी माह मजीठिया वेतन आयोग संबंधी लेटर जिसमें सब कुछ पारदर्शिता के दर्शाने का वादा और कहा सिर्फ सब्जबाग। सूत्रों के अनुसार पहले अगले दिन पूरा वेतन फिर इसी बकाया देने का प्रलोभन दिया गया था। जब शाम को वास्तविक संदेश आया तो सारी तारीख गायब थी। वेतन जल्दी देने की बात कही गई। बकाया कब देंगे, इसका जिक्र नहीं है। पत्र में नये वेतन आयोग की भूले से चर्चा तक नहीं की गई। जबकि अवमानना की तारीख २८ जुलाई को है। बहरहाल, कर्मचारियों की जितनी दाद दी जाए कम है क्योंकि आंदोलन बिना लीडरशिप के, बिना तैयारी के और बिना किसी आह्वान के शुरू किया गया और डट के लडा गया। सब कुछ स्वतःस्फूर्त था। हाँ, कार्य बहिष्कार समाप्त होते ही यह सुगबुगाहट भी शुरू हो गई कि कहीं आंदोलन तोड़वाया तो नहीं गया?
एक सहाराकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.
Bharat
July 15, 2015 at 5:52 am
Lagta hai jo saharakarmiyon ke andolan ko lead kar rahe the ya hawa de rahe the unhe prabandhan puraskrit karegi. Jo sansthan ke saath the unhe dandit kiya ja sakta hai. Prabhu teri chal nirali.