नेशनल हेराल्ड मामले मे सत्ता के शर्मनाक दुरुपयोग का खुलासा होने के बाद यह सवाल उठना लाज़मी है कि राजनैतिक पार्टियों द्वारा अपना अखबार, खासतौर पर दैनिक अखबार निकालने की क्या तुक है? मजबूरी में खरीदने वाले भी इन्हे रद्दी की टोकरी मे डालना पसंद करते हैं। वैसे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की दिली तमन्ना है कि एक दैनिक अखबार शुरू किया जाए जो पार्टी की विचारधारा और उनकी सरकार की उपलब्धियों को आमजन तक सीधे पहुंचाने का काम करे। इसका खुलासा उन्होने पिछले बरस पार्टी पदाधिकारियों को दिए गए रात्रिभोज मे किया था। इसके लिए उन्होने प्रमुख सहयोगी शिवसेना के मुखपत्र सामना का जिक्र भी किया था। मुख्यमंत्री का मानना है की प्रस्तावित दैनिक पार्टी के दस लाख कार्यकर्तायों तक पहुँच सकेगा। वैसे प्रदेश भाजपा का मासिक पत्र चरैवेति प्रकाशित होता है।
अपने अखबार के विचार के पीछे व्यापम मामले में मीडिया, खासतौर पर राष्ट्रीय अखबार और न्यूज़ चैनलों मे सरकार की बदनामी को प्रमुख कारण माना गया। अब नेशनल हेराल्ड के मामले में सोनिया और राहुल गांधी की फजीहत और अदालतबाजी के बाद संभावना कम ही है कि चौहान अखबार निकालने के अपने इरादे को मूर्त रूप दें। बिना सरकार की कृपा के दैनिक शुरू तो किया जा सकता है पर चलाया नहीं जा सकता। जाहिर है जब मुख्यमंत्री का अखबार शुरू होगा तो सरकार की कृपा बरसेगी ही और बदनामी भी होगी। भोपाल में अर्जुनसिंह द्वारा प्रेस कॉम्प्लेक्स की स्थापना ही इसलिए की गई थी क्योंकि सरकार हेराल्ड को कौड़ियों के भाव जमीन देना चाहती थी। यह खुलासा दमदार पत्रकारों में शुमार नरेंद्र कुमार सिंह ने नईदुनिया में छपे लेख में किया है।
लेख बताता है कि जमीन के लिए यशपाल कपूर कई बार भोपाल आए और एक लाख रुपये प्रति एकड़ की दर से जमीन ले उड़े। जब इंडियन एक्सप्रेस ने नरेंद्रकुमार सिंह की रिपोर्ट पहले पेज पर छाप दी तो हँगामा मच गया, जिसे शांत करने के लिए अर्जुन सिंह ने सभी अखबारों को जमीन देने का निर्णय किया। फिर शुरू हुई मीडिया के नाम पर पात्रों के अलावा अपात्रों और कुपात्रों को जमकर प्लाटों की बंदरबाँट। इसके बाद जो हुआ और जो हो रहा है वह खुला खेल फर्रूखाबादी है और सब जिम्मेदारों की जानकारी में है।
उधर भोपाल की पचास करोड़ कीमत की जमीन यशपाल कपूर एंड कंपनी ने 2007 मे सिर्फ पौने दो करोड़ मे बेच दी । इसे बेचने के लिए भोपाल विकास प्राधिकरण से एनओसी भी नहीं ली गई।भोपाल के बाद कंपनी से जुड़ी जमीन का इंदौर मे हुआ सौदा भी सुर्खियों मे आ गया है। मालूम हो कि इंदौर मे आवंटित जमीन 17 साल पहले महज 27 लाख मे बेच दी गई थी। यहाँ आवंटित जमीन की जांच प्रवर्तन निदेशालय ने शुरू कर दी है। ऐसा नहीं है कि प्रेस के नाम पर हड़पी जमीन के दुरुपयोग मे हेराल्ड अकेला है। इंदौर मे ही चौथा संसार को दी गई जमीन का आवंटन इंदौर विकास प्राधिकरण मार्च, 2012 में ही निरस्त कर चुका है, पर अखबार का कब्जा बरकरार है.
भोपाल से श्रीप्रकाश दीक्षित का विश्लेषण.