कन्हैया बोला- मीडिया में कुछ लोग ‘वहां’ से वेतन पाते हैं
Sanjay Sharma : वर्षों से इतना बढिया और दिल की गहराइयों से बोलने वाला भाषण नहीं सुना.. जेएनयू और कन्हैया ने इस देश को लूटने वालों के खिलाफ आज़ादी की जो जंग शुरू की है उसके बड़े नतीजे देश भर में जल्दी ही देखने को मिलेंगे.. ग़लत जगह हाथ डाल दिया भक्तों ने. रात के दस बजे कन्हैया के मुँह से निकले कई नारे कई कंसों के पेट में दर्द कर देगे.. कन्हैया ने जेएनयू पहुँच कर सबसे पहले भारत माँ की जय के नारे लगाये और उसके वाद वही नारे लगाये जो सत्ता के लोगों के पेट मे दर्द पैदा करते हैं.. हमको चहिये आज़ादी .. पूँजीवाद से आज़ादी .. मनुवाद से आज़ादी .. ब्राह्मण वाद से आज़ादी ..सलाम तुम्हें कन्हैया.. तुम्हारा भाषण दिल को छू गया.. तुमने उन चैनलों को भी आइना दिखा दिया जो भक्त हो गये थे.. भरोसा है तुम्हारे जैसे नौजवान समाजवाद को सही रूप मे लायेंगे.. जो राजनैतिक दल कन्हैया की विचारधारा का समर्थन कर रहे थे उन्हे कन्हैया को राज्यसभा भेजना चहिये.. इस देश की संसद को कन्हैया जैसे सांसद और उनकी आवाज़ चहिये संसद में.. सारा विपक्ष मिलकर मोदी सरकार की इतनी बैंड नही बजा पाया जितनी अकेले कन्हैया ने बजा दी..
Sanjaya Kumar Singh : कन्हैया कुमार अभी भी आजादी ही मांग रहा है। पिछली बार उसे लगा होगा कि लोग समझ जाएंगे पर नहीं समझने वाले नहीं समझे और लोगों ने वीडियो में डाक्टरी करके ‘देशभक्ति’ कर दी और कन्हैया कुमार को जेल भिजवा दिया। अब कन्हैया ने विस्तार से बताया है कि वह कैसी और किस आजादी की बात कर रहा था। साथ ही मीडिया से भी अपील की है कि देश को बताया जाए कि वह कैसी और किस आजादी की बात कर रहा है। इससे यह भी समझ में आएगा कि, भक्तों को गुस्सा क्यों आता है। देखिए टेलीग्राफ ने भी भाषण का शीर्षक एक ही शब्द में लगाया है, आजादी।
Gyanesh Tiwari : फ़ैन हो गया मैं तुम्हारा कन्हैया! इतनी सी उमर में ऐसी सोच। देश को बहुत से कन्हैयों की ज़रूरत है। विश्वास है कि तुम्हारा संघर्ष रंग लाएगा। एक मज़ेदार बात बताऊँ? …आज तो धो ही डाला मोदी को।
Pankaj Chaturvedi : सालों बाद ऐसा भाषण सुना। उसकी उम्र ही क्या है? बेहद सीमित अनुभव लेकिन शब्दों का सहज चयन, व्यंग्य की तीखी मार, घटनाओं को जोड़ना और एक घंटे से ज्यादा उसी जोश के साथ तक़रीर करना!! कमाल कमाल। अभी तीन दिन पहले जब मैंने लिखा था कि कन्हैया जेल से निकलेगा तो वह एक राष्ट्रीय चेहरा होगा, चिंटू गिरोह ने मुझे बहुत गरिआया था. देख लो — जो मीडिया को एक कप चाय पिलाने की हैसियत भी नहीं रखता, यदि तीन बड़े चैनल रात में अपने विज्ञापनों का नुकसान कर एक घंटे से ज्यादा उसका भासण दिखाते हैं और सुबह होते होते रजत शर्मा और दीपक चौरसिया को भी उसे दिखाना पड़ता है, तो जान लो उसमे कुछ दम होगा, वरना राजनैतिक दलों की रैलियों के पांच मिनट का प्रसारण कैसे होता है, ये सबको पता है. फिर कह रहा हूँ यह आंधी बन गया है और अब इसकी सुरक्षा भी जरूरी है, यह निकलेगा तो कई एक के राजनितिक अस्तित्व पर विराम लग जाएगा। दिल से बोलो आज़ादी।
Vishnu Nagar : जेल से रिहा होकर आज शाम जेएनयू लौटे जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार का एनडीटीवी चैनल पर अभी पूरा भाषण सुना। एक घंटे से ज्यादा वह बोला मगर मजाल है कि एक क्षण के लिए भी उसका भाषण ऊबाऊ लगे। वह चमत्कारिक भाषणकर्ता है और वह विचारधारा के मामले में ही नहीं, भाषणकला के मामले में भी मोदीजी को बेहद कड़ा मुकाबला दे सकता है। उसके भाषण में प्रवाह है, अतिउत्साह है मगर असावधानी नहीं। उसमें विट् है, ह्यूमर है, हाजिरजवाबी है। उसके पास ऐसी भाषा है जिसमें वह साधारण लोगों को भी संबोधित कर सकता है, सिर्फ जेएनयू के छात्रों को नहीं। उसके पास लोगों के व्यापक वर्ग तक पहुँचने वाली भाषा है, जिसके अभाव में वामपंथी आम लोगों तक पहुँच नहीं पा रहे हैं। उसमें अंबेडकरवाद और मार्क्सवाद को साथ लाने की, करीब लाने की स्पष्ट दृष्टि है, जिसका अभी तक वामपंथियों में अभाव रहा है। अगर उसे मौका मिला और वह अंततः लालू प्रसाद यादव की तरह भाषा का खिलाड़ी बनकर नहीं रह गया तो बिहार का यह पूत देश में वामपंथी लहर को लाने में बड़ी भूमिका निभा सकता है, बशर्ते उसकी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी अपनी नींद से जागे और उसका सही इस्तेमाल कर सके, उसे बड़ी भूमिका दे सके, ताकि देश में वामपंथी परिवर्तन लाने मे वह सहायक बने। वैसे भाकपा अपने को बहुत बदल सकेगी या माकपा इसकी संभावना कम है। अभी तो लगता है कि देशद्रोह का फर्जी मामला उठाकर और जेएनयू को छेड़कर भाजपा-संघ ने बहुत बड़ी रणनीतिक गलती कर दी है, जो अंततः देशहित में साबित हो सकती है। जेएनयू में कन्हैया एक हो सकता है मगर वहाँ परिवर्तन की ऊर्जा बहुत है, अगर उसे निजी महत्वाकांक्षाओं में विसर्जित न होने दिया जाए। भाजपा अब और कोशिश करेगी कन्हैया को फँसाने की,जेएनयू पर हमलावर होने की लेकिन उसका नतीजा उसके लिए अंततः और भी बुरा ही साबित हो सकता है मगर वह मानेगी नहीं। राज्यशक्ति का हर तरह से इस्तेमाल करेगी, जिसमें वामपंथियों में आपसी फूट डालना भी एक कदम हो सकता है।
Ajay Prakash : कन्हैया को भाजपा ने कन्हैया बना दिया। इससे पहले कांग्रेस ने केजरीवाल को केजरीवाल बनाया था। केजरीवाल कुछ बन भी गए क्योंकि उनको नया रचना था, अपनी राह खुद बनानी थी। लेकिन क्या कन्हैया बना पाएंगे? इससे बड़ा सवाल कि उनको अपनी राह बनाने दी जाएगी? सैकड़ों मुंडों और दर्जनों पार्टियों में बंटा वामपंथ कन्हैया को अपना सर्वमान्य नेता स्वीकार करेगा? एक नए लौंडे की समाजदृष्टि को वामपंथ नई युगदृष्टि मानकर आगे बढ़ने को तैयार होगा। 1920 से ’13’ तरह की क्रांति ला रही ’73’ कम्युनिस्ट पार्टियां क्या विरेाध और उत्पीड़न के मौकों के अलावा राजनीति को नई दिशा देने के लिए एकजुट हो पाएंगी? क्या सीताराम येचुरी, प्रकाश करात से लेकर सुधाकर रेड्डी तक कन्हैया के नीले और लाल रंग की बातों को व्यवहार में उतरने देंगे? क्या ये पार्टियां देश को एकसूत्र में बांधने वाले तिरंगे को लाल झंडे से उपर रख पाएंगी? क्या वे जयहिंद बोलने में उसी गर्व का अनुभव कर पाएंगी जो लाल सलाम बोलने में उन्हें होता है? क्या वो भारत के गांधी और आंबेडकर को वह सम्मान दे पाएंगी जो उनके मन में मार्क्स, लेनिन और माओ के लिए है? क्या वह फीता काटने को प्रगतिशीलता और नारियल फोड़ने को पोंगापंथ कहने की समझदारी से बाहर निकल पाएंगी? ब्राम्हणों और बूढे नेतृत्वकर्ताओं से भरी कम्यूनिस्ट पार्टियां क्या दलितों—पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं को अपना नेतृत्व देंगी? क्या वह एक गरीब कन्हैया को अपना नेता मानेंगी? अंग्रेजी के प्रति अभिशप्त वामपंथी क्या एक हिंदीभाषी को रोलमॉडल बनने देंगे? मैं इस राजनीति जितना जानता—समझता हूं, उसके हिसाब से इन सभी सवालों का जवाब ‘ना’ में है। इसलिए खुशी की बजाए चिंतित होने का वक्त है। हमें अपने कन्हैया को इनसे बचाना होगा। इससे पहले भी इन्होंने कई युवा तुर्कों को राजनीतिक रूप से मार डाला है। कन्हैया को इनसे बचाइए। देश को कन्हैया की दरकार है।
Amitaabh Srivastava : दिन मोदी के भाषण का था। लोकसभा के भीतर। प्रशंसकों ने कहा मोदी ने राहुल को धो डाला। शाम ढलते ढलते जब रात में बदली तो पूरी तरह कन्हैया कुमार के असर में थी। लोकसभा से बाहर एक जनसभा में। जेएनयू में। छात्रों के जमावड़े में। कन्है़या ने अपने भाषण से सरकार, बीजेपी, संघ परिवार के सारे धुरंधरों को धो डाला। क्या बोला है बंदा। क्या क्या नहीं कहा। आज़ादी के नारे भी लगाये। फिर से। मोदी के ट्वीट पर चुटकी लेते हुए कहा सत्यमेव जयते प्रधानमंत्री का नहीं, देश का है इसलिए मैं भी कहता हूँ सत्यमेव जयते। मोदी ने स्टालिन, ख्रुश्चेव का ज़िक्र किया था। कन्हैया ने कहा- हिटलर, मुसोलिनी का नाम भी ले लेते। बहुत शानदार बोला कन्हैया। बेहद जोशीली तक़रीर दी, लेकिन जोश में कहीं भी होश नहीं खोया। सीमा पर लड़ने वाले जवान और खेत में काम करने वाले किसान को जोड़ दिया । और कहा लड़ने वाले ज़िम्मेदार नहीं, लड़ाने वाले ज़िम्मेदार हैं। तीखा लहजा, साफ़गोई से खूब खरी खरी कही। बोला मीडिया में कुछ लोग “वहाँ” से वेतन पाते हैं। रोहित वेमुला को नहीं भूला। बाबा साहब आंबेडकर का बार बार ज़िक्र किया, लेनिन का ज़िक्र किया- democracy is indispensable to socialism. वामपंथियों और आंबेडकरवादियों को एक साथ आना चाहिये, कहीं ये संकेत भी दिया जेल में मिली लाल और नीली कटोरी के प्रतीक के ज़रिये। कन्हैया का भाषण, नारों की गूँज और जेएनयू के माहौल की तस्वीरें देखने के बाद ये समझ़ना क़तई मुश्किल नहीं कि मोदी सरकार , संघ और समूचे दक्षिणपंथी समुदाय ने अपनी नासमझी, नफरत और जल्दबाज़ी के घालमेल के चलते कैसे छात्रों के बीच एक नायक खड़ा कर दिया है। आज के दौर का- पढ़ा लिखा, समझदार और नाराज़। इस युवा आक्रोश की गूँज सुनी तुमने सरकार?
Om Thanvi : कन्हैया ने बड़ी सहजता से एक बात कही कि जेएनयू से कुछ भारी शब्दावली निकलती है जो संप्रेषण की मुश्किलें बढ़ाती है। मेरा खयाल है, शब्दावली से ज्यादा बड़ी पेचीदगी भाषा की है। अंगरेजी को बौद्धिकता का पर्याय क्यों समझा जाय? गौर करें, अगर कन्हैया की तकरीर अंगरेजी में हुई होती तो क्या इतना गहरा और व्यापक असर पैदा कर सकती थी? दिल्ली में हिंदी, हैदराबाद में तेलुगु, चेन्नई में तमिल, अहमदाबाद में गुजराती, नागपुर में मराठी, त्रिवेंद्रम में मलयालम, कोलकाता में बांग्ला – अपनी भाषाओं का जलवा ही निराला होता है। पराए परिवेश में अंगरेजी में तो शायद गाली भी वह असर न करती होगी! प्रसंगवश, जेएनयू में मैं अपनी क्लास हिंदी में ही लेता हूँ; पूर्वोत्तर के छात्र तक की सहमति पाने के बाद। अंगरेजी का इस्तेमाल तो कभी-कभार यह दरसाने के लिए करता हूँ कि थोड़ी-बहुत गिट-पिट अपन को भी आती है! मुझे लगता है अब संपर्क भाषा के बतौर हिंदी देश में अंगरेजी के मुकाबले कहीं ज्यादा समझी जाती है – दक्षिण तक में मैंने खुद इसे आजमा कर देखा है। बहरहाल, कन्हैया को लोग हिंदी की ताकत (अनजानों को) बताने और भाषा की शान बढ़ाने के लिए भी याद रखेंगे।
Yashwant Singh : रिहा होने के बाद जेएनयू में दिया गया भाषण भक्तों और भाजपा के लोगों को जरूर सुनना चाहिए. साथ ही मीडिया वालों को भी. इस लड़के से कुछ ज्ञान हासिल कर सकेंगे. भाषण का लिंक ये है : https://www.youtube.com/watch?v=i6hY0AhaRfw
(फेसबुक से)
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prashant
March 4, 2016 at 11:10 am
Wah re wah. 1 ghante tak prasaran hua live, wo bola kuch media bika hua. Wah!
Samjh mai to aaya kaun sa media bika hua hai jo 1 chatra neta ka bhashan 1 ghante tak dikhaya kyuki wo Modi ke khilaf bol raha tha.
Wah! Aur jo abhi taliya baja rahe hai wo bhi shyaad 1 hee admi ke dushman ha, aur usko sab jante hai.
Rahul shukla
March 4, 2016 at 1:32 pm
सलाम है कामरेड कन्हैया को,गरीबो की आवाज है कन्हैया
आज़ाद राजीव
March 5, 2016 at 2:28 am
कोर्ट से अग्रिम जमानत ही मिली है,बरी नहीं हुआ है कन्हैया। अगर हिम्मत है तो कोर्ट के जगमेंट को पूरा छापो और बताओ की कोर्ट ने क्या कहा।
manish kumar
March 6, 2016 at 12:56 am
Mera ek. Sawal..
Manuwad se Aazadi , brahman vad se azadi etc ki maag abhi hi kyu. Isse pahle kanhaiya america me rhta tha.
Azadi ke liye apne kbhi chhatis gadh ki bat ki hoti
vikash
March 6, 2016 at 10:13 am
dogla aur desh drohi hai kanhaiya kumar. hume bhi desh ki fikra hai but is tarah nahi mai bhi student hu aur student kya ker sakta hai ye bhi mujhe pata hai aur sabse badi baat wo hai jisme mai apne desh k baare me kuch na galat sun sakta hu aur na kah sakta hu aur jo is tarah karega uski gardan katne ka jigar rakhta hu to isliye mai kahunga ye tamasha bahut ho desh ki janta-desh ki janta ab bhi waqt hai sudher jao
Dharmendra s
March 6, 2016 at 12:32 pm
कल रात JNU में श्री कन्हैया सिंह जी” का भड़ासपूर्ण भाषण और उसमें RSS, मोदी, भाजपा, ABVP, हिटलर आदि को कोसने-गरियाने के बाद देश को यह पता चला है कि –
१) गरीबी… – पिछले डेढ़ साल में आई है…
२) शोषण… – पिछले डेढ़ साल से अधिक हो गया है…
३) असमानता… – सिर्फ पिछले डेढ़ साल में बढ़ी है…
४) पूंजीवाद… – डेढ़ साल पहले ही पैदा हुआ है…
५) मनुवाद… – डेढ़ साल पहले था ही नहीं…
६) दलितों पर अत्याचार… – डेढ़ साल से ही होने शुरू हुए हैं…
७) आतंकवाद… – डेढ़ साल पहले तक नामोनिशान भी नहीं था…
कहने का तात्पर्य यह है कि 2004 से 2014 तक भारत का “स्वर्णिम काल” था… और कन्हैया के “बौद्धिक पिताओं” द्वारा ३० साल तक शासित राज्य पश्चिम बंगाल दुनिया का सबसे खुशहाल और समृद्ध राज्य है…
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Dharmendra s
March 6, 2016 at 12:38 pm
कल रात JNU में श्री कन्हैया सिंह जी” का भड़ासपूर्ण भाषण और उसमें RSS, मोदी, भाजपा, ABVP, हिटलर आदि को कोसने-गरियाने के बाद देश को यह पता चला है कि –
१) गरीबी… – पिछले डेढ़ साल में आई है…
२) शोषण… – पिछले डेढ़ साल से अधिक हो गया है…
३) असमानता… – सिर्फ पिछले डेढ़ साल में बढ़ी है…
४) पूंजीवाद… – डेढ़ साल पहले ही पैदा हुआ है…
५) मनुवाद… – डेढ़ साल पहले था ही नहीं…
६) दलितों पर अत्याचार… – डेढ़ साल से ही होने शुरू हुए हैं…
७) आतंकवाद… – डेढ़ साल पहले तक नामोनिशान भी नहीं था…
कहने का तात्पर्य यह है कि 2004 से 2014 तक भारत का “स्वर्णिम काल” था… और कन्हैया के “बौद्धिक पिताओं” द्वारा ३० साल तक शासित राज्य पश्चिम बंगाल दुनिया का सबसे खुशहाल और समृद्ध राज्य है…
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