JNU की जंग : दक्षिणपंथ सदा वैज्ञानिक-तार्किक सोच नष्ट करने की ताक में रहता है!

Sudipti : जिस कैम्पस में मैं लगभग छह साल रही उसमें पिछले तीन-चार सालों में जो तमाम तरह की घटनाएं घट रही हैं वे सिर्फ दिल दहलाने वाली नहीं हैं। उससे मन का एक बड़ा हिस्सा बुझ जाता है कि सीमित संसाधनों वाले सामान्य ग्रामीण परिवारों की लड़कियाँ जिस सुकून और भरोसे से एक कायदे …

भगवा गुंडों ने ‘आजतक’ के रिपोर्टर को भी वामपंथी-नक्सली कहकर माइक-तार-कैमरे सब तोड़ दिए!

Deepali Das : आजतक का फील्ड रिपोर्टर बता रहा है कि कुछ लोगों से सवाल करने पर उन गुंडों ने उसे ‘वामपंथी-नक्सली’ कहकर उसका माइक-तार-कैमरे की लाईट सब तोड़ दिया. और आजतक की एंकर तब भी, कौन है ये लोग जो ये हिंसा कर रहे हैं, पूछ रही है. जर्नलिज्म की डिग्री लेके बैठी एंकर …

अमर उजाला ने नकाबपोश हमलावरों की संख्या 40-50 बताई है जबकि नभाटा में 200 है!

Sanjaya Kumar Singh : जेएनयू की रिपोर्टिंग से जो तथ्य गायब हैं और क्यों? आज के ज्यादातर अखबारों में जेएनयू में नकाबपोश गुंडों का हमला – लीड खबर है। भिन्न अखबारों ने इसे अलग ढंग से पेश किया है पर सबसे खास बात यह है कि दिल्ली पुलिस कैम्पस में अनुमति नहीं मिलने तक नहीं …

जेएनयू में सत्ता और संघ ने सारा जोर लगा दिया पर जीते लाल झंडे वाले, एबीवीपी का सूपड़ा साफ

Sheetal P Singh : JNU भी अजीब शै है! संघी एक युग से परेशान हैं इससे! कुल जमा दस हज़ार स्टूडेंट्स होंगे जिनके दिल दिमाग़ पर क़ब्ज़ा कर पाने में नागपुर से दिल्ली तक के मठ और सल्तनत अनवरत फेल है! वे दुनिया जीत कर आते हैं पर जेएनयू हार जाते हैं! लाल सलाम वालों …

जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार के समर्थन में पिथौरागढ़ में आंदोलन शुरू

पिथौरागढ़, 06 मई 2016 : जे.एन.यू. के छात्रों पर विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा लगाये गए निष्कासन और आर्थिक दंड के फैसले को वापस लिए जाने की माँग को लेकर आज यहाँ भाकपा (माले) ने जिला अधिकारी के माध्यम से केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री को ज्ञापन दिया। भाकपा माले के जिला सचिव गोविंद सिंह कफलिया ने कहा कि जेएनयू छात्र संघ के नेतृत्व में 19 छात्र जे.एन.यू. के छात्रों पर विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा छात्रों के अन्यायपूर्ण निष्कासन और जुर्माना लगाये जाने के फैसले की वापसी की मांग पर 27 फरवरी से आमरण अनशन पर हैं।

जेएनयू के साथियों को पत्र

प्रिय कामरेड,
लाल सलाम।

सबसे पहले तो मैं यह स्पष्ट कर दूं कि मैं आप लोगों के संघर्ष के साथ हूं। जब आप लोग जेल में थे तो मैं भी उन रैलियों का हिस्सा था जो आप लोगों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ दिल्ली में निकाली गईं थी। बैनर और पोस्टर के साथ मैं भी मंडी हाउस और अम्बेडकर भवन से जंतर मंतर गया था। यकीनन आप लोग न्याय के पक्ष में खड़े है और हर संवेदनशील व्यक्ति को ऐसा ही करना चाहिए। आज की जरूरत यही है।

जेएनयू से निकला एक संत, प्रत्यूष पुष्कर को सलाम करो (देखें वीडियो)

Yashwant Singh : जेएनयू से लोग अफसर बनकर निकलते हैं, नेता बनकर निकलते हैं, इतिहासकार बनकर निकलते हैं, शिक्षक बन जाते हैं, पर बहुत कम लोग संत बनते हैं. प्रत्यूष पुष्कर उनमें से एक हैं. ये शुरुआती दिनों में मीडिया में रहे हैं. आशीष खेतान के साथ काम कर चुके हैं. फ्रीलांस फोटो जर्नलिस्ट के बतौर पूरा देश घूम चुके हैं. इन दिनों वे आर्ट और अध्यात्म पर काम कर रहे हैं. 

मुजफ्फरपुर में ‘JNU Speaks’ कार्यक्रम पर एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने किया हमला, देखें वीडियो

बिहार के मुजफ्फरपुर से खबर है कि ‘जेएनयू स्पीक्स’ नामक कार्यक्रम पर भाजपा के छात्र विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कार्यकर्ताओं ने हमला कर दिया. इसके कार्यक्रम में शामिल कई लोगों को चोटें आई हैं. जेएनयू से जुड़ी रहीं महिलावादी और भाकपा माले नेता कविता कृष्णन ने इस बारे में जानकारी अपने फेसबुक वॉल पर दी है. उन्होंने बोलने के अधिकार पर लोकतांत्रिक तरीके से किए जा रहे कार्यक्रम पर हमला करने की संघी गुंडों की हरकत को बेहद शर्मनाक करार दिया. 

हे सड़े हुए दिमाग वाले भक्तों, कन्हैया के साथ तस्वीर में लड़की कोई प्रोफ़ेसर नहीं, एमफिल स्टूडेंट सौम्या हैं

Samar Anarya : कल 15 साल की बच्ची के सहारे कन्हैया को घेरने की कोशिश करने वाले भक्त आज इस तस्वीर के सहारे यह कोशिश कर रहे हैं। बावजूद इसके कि मुझे समझ ही नहीं आया कि इस तस्वीर में भक्तों के दिमाग़ में भरी यौन कुंठा के सिवा आपत्तिजनक क्या है- कुछ झूठ साफ़ करने की ज़रूरत है। पहला यह कि तस्वीर में मौजूद लड़की कोई प्रोफ़ेसर नहीं बल्कि एक छात्रा हैं, कन्हैया की बहुत अच्छी दोस्त होने के साथ साथ मेरे एक बहुत प्यारे छोटे भाई Shishir Kumar Yadav की भी अच्छी दोस्त हैं। दूसरा यह कि अगर प्रोफ़ेसर भी होतीं तो भी क्या बदल जाता, आपत्तिजनक हो जाता?

कन्हैया कुमार की तरह नरेंद्र मोदी पर ऐसा बड़ा हमला अभी तक कोई भी नहीं कर पाया था

कामरेड कन्हैया में लेकिन आग बहुत है। और लासा भी। ललक और लोच भी बहुत है। लेकिन कुतर्क की तलवार भी तेज़ हो गई है। वह जेल से जे एन यू लौट आए हैं। जैसे आग में लोहा तप कर आया हो। जैसे सोना कुंदन बन कर आया हो। जे एन यू में बोल गए हैं धारा प्रवाह। कोई पचास मिनट। आधी रात में। तेवर तल्ख़ हैं। उम्मीद बहुत दिखती है इस कामरेड में। लोकसभा में बस पहुंचना ही चाहता है। वक्ता भी ग़ज़ब का है। बस हार्दिक पटेल याद आता है। उस का हश्र याद आता है। फिसलना मत कामरेड।

पूरे देश में लाल सलाम गुंजा देने में मदद का शुक्रिया मोदी, ईरानी और बस्सी जी

जी, मैंने झूम के लाल सलाम के नारे लगाए हैं. न न, सिर्फ जेएनयू में नहीं, हम जी उन चंद लोगों में से हैं जो जेएनयू पहुँचने के बहुत पहले कामरेड हो गए थे. उन्होंने जिन्होंने महबूब शहर इलाहाबाद में लाल सलाम का नारा भर आवाज बुलंद किया है. पर जी तब हम बहुत कम लोग होते थे. तमाम तो हमारे सामने ही कामरेडी कह के मजाक उड़ाते थे हमारा. हम भी समझते थे कि बेचारे वो नहीं समझ रहे हैं जो हम समझ पा रहे हैं- रहने दो तब तक जब तक इनके सपनों की राष्ट्रवादी सरकार अडानी का बैंक कर्जा माफ़ करने के लिए इन मध्यवर्गीय भक्तों की भविष्य निधि पर टैक्स नहीं लगा देते.

कन्हैया पहले छात्रनेता हैं जिनके पूरे एक घंटे के भाषण का सीधा प्रसारण हुआ

Mahendra Mishra : जब सड़क पड़ी संसद पर भारी। कल प्रधानमंत्री का दिन होना था। उन्हें संसद में राष्ट्रपति अभिभाषण पर बहस के बाद धन्यवाद देना था। लिहाजा उनकी एक-एक बात बहुत महत्वपूर्ण होनी थी । लेकिन मोदी जी देश के प्रधानमंत्री और सदन के नेता के तौर पर कम सत्ता के मद में चूर एक अहंकारी शासक के रूप में ज्यादा दिखे। अहम उनके चेहरे पर बिल्कुल साफ़ था लेकिन परेशानी भी उसी अनुपात में झलक रही थी। जो माथे की लकीरों और उनके लाल चेहरे से स्पष्ट था।

सलाम तुम्हें कन्हैया, तुमने उन चैनलों को भी आइना दिखा दिया जो भक्त हो गये थे

कन्हैया बोला- मीडिया में कुछ लोग ‘वहां’ से वेतन पाते हैं

Sanjay Sharma : वर्षों से इतना बढिया और दिल की गहराइयों से बोलने वाला भाषण नहीं सुना.. जेएनयू और कन्हैया ने इस देश को लूटने वालों के खिलाफ आज़ादी की जो जंग शुरू की है उसके बड़े नतीजे देश भर में जल्दी ही देखने को मिलेंगे.. ग़लत जगह हाथ डाल दिया भक्तों ने. रात के दस बजे कन्हैया के मुँह से निकले कई नारे कई कंसों के पेट में दर्द कर देगे.. कन्हैया ने जेएनयू पहुँच कर सबसे पहले भारत माँ की जय के नारे लगाये और उसके वाद वही नारे लगाये जो सत्ता के लोगों के पेट मे दर्द पैदा करते हैं.. हमको चहिये आज़ादी .. पूँजीवाद से आज़ादी .. मनुवाद से आज़ादी .. ब्राह्मण वाद से आज़ादी ..सलाम तुम्हें कन्हैया.. तुम्हारा भाषण दिल को छू गया.. तुमने उन चैनलों को भी आइना दिखा दिया जो भक्त हो गये थे.. भरोसा है तुम्हारे जैसे नौजवान समाजवाद को सही रूप मे लायेंगे.. जो राजनैतिक दल कन्हैया की विचारधारा का समर्थन कर रहे थे उन्हे कन्हैया को राज्यसभा भेजना चहिये.. इस देश की संसद को कन्हैया जैसे सांसद और उनकी आवाज़ चहिये संसद में.. सारा विपक्ष मिलकर मोदी सरकार की इतनी बैंड नही बजा पाया जितनी अकेले कन्हैया ने बजा दी..

जेएनयू में वाकई गलत हुआ क्योंकि रिपोर्टिंग के नाम पर मीडिया के एक वर्ग ने नंगा नाच किया

Sanjaya Kumar Singh :  कुछ लोग अभी भी कह रहे हैं कि, “जेएनयू में जो हुआ वो गलत था।” लेकिन जेएनयू में हुआ क्या? रिपोर्टिंग के नाम पर मीडिया के एक वर्ग का नंगा नाच। ऐसा फर्जीवाड़ा जिसकी पोल इतनी जल्दी पूरी तरह खुल गई। ऐसा फर्जीवाड़ा जिसे संभाल नहीं पाए। ऐसा शर्मनाक कृत्य जिसका साथ वालों ने ही विरोध कर दिया – खुले आम। नौकरी छोड़ने की कीमत पर। पत्रकारिता में जो पहले कभी नहीं हुआ वो करवा लिया। फिर भी किसी को मीडिया के इस तरह नंगे होने का अफसोस नहीं है तो उसे भारत के खिलाफ या पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने वालों के खिलाफ कार्रवाई से किसने रोका है। जब पुलिस कमिश्नर जैसा बड़ा अधिकारी अपने रिटायरमेंट के बाद के जुगाड़ में लगेगा और ऐसे ही जुगाड़ होते रहेंगे तो पाकिस्तान के पक्ष में नारा लगाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जरूरत कहां रहेगी।

बिना प्रणव राय की मर्जी के रवीश कुमार एनडीटीवी में सांस भी ले सकते हैं?

: सच यह है कि रवीश कुमार भी दलाल पथ के यात्री हैं : ब्लैक स्क्रीन प्रोग्राम कर के रवीश कुमार कुछ मित्रों की राय में हीरो बन गए हैं। लेकिन क्या सचमुच? एक मशहूर कविता के रंग में जो डूब कर कहूं तो क्या थे रवीश और क्या हो गए हैं, क्या होंगे अभी! बाक़ी तो सब ठीक है लेकिन रवीश ने जो गंवाया है, उसका भी कोई हिसाब है क्या? रवीश कुमार के कार्यक्रम के स्लोगन को ही जो उधार ले कर कहूं कि सच यह है कि ये अंधेरा ही आज के टीवी की तस्वीर है! कि देश और देशभक्ति को मज़ाक में तब्दील कर दिया गया है। बहस का विषय बना दिया गया है। जैसे कोई चुराया हुआ बच्चा हो देशभक्ति कि पूछा जाए असली मां कौन?  रवीश कुमार एंड कंपनी को शर्म आनी चाहिए।

जेएनयू पर एक कविता : यस, आई स्टेंड विद जेएनयू ….

यस, आई स्टेंड विद जेएनयू
यह जानते हुये भी कि
वानरसेना मुझको भी
राष्ट्रद्रोही कहेगी।
काले कोट पहने
गुण्डों की फौज
यह बिल्कुल भी
नहीं सहेगी।
तिरंगा थामे
मां भारती के लाल
मां बहनों को गरियायेंगे।
दशहतगर्द देशभक्त
जूते मारो साले को
चीख चीख चिल्लायेंगे।
जानता हूं
मेरे आंगन तक
पहुंच जायेगा,
उन्मादी राष्ट्रप्रेमियों के
खौफ का असर।
लम्पट देशप्रेमी
नहीं छोड़ेंगे मुझको भी।
फिर भी कहना चाहता हूं
हॉ, मैं जेएनयू के साथ खड़ा हूं।

जेएनयू के बारे में पी साईंनाथ के इस वीडियो को नहीं सुना तो आप अंबानी अडानी के टुकड़खोर हैं!

Shamshad Elahee Shams : एक दो कौड़ी के पशुपुत्र ने मेरी जेएनयू आन्दोलन सम्बंधित पोस्ट पर अपनी मानसिक विकलांगता का प्रदर्शन करते हुए कहा था कि ये संस्थान ब्ल्यू फिल्म बनाने वालों के लिए जाना जाता है. इस वीडियों पर अपने जीवन के 59 मिनट खर्च करें और पता चल जायेगा कि जेएनयू क्या है? पी साईंनाथ को अगर आपने नहीं सुना तो आप अंबानी अडानी के टुकड़खोर है या उनके प्रचारतंत्र के शिकार. गौर से सुनिए देश का हाल, जिसका हिस्सा जेएनयू है. 

‘शटडाउन जेएनयू’ की जगह ‘शटडाउन जी न्यूज’ का मुहिम चलाना चाहिए!

जेएनयू और रोहित वेमुला के मसले पर एबीवीपी के नेताओं के इस्तीफ़ा-पत्र का हिन्दी अनुवाद

मित्रों,

हम लोग, प्रदीप, संयुक्त सचिव एबीवीपी, जे एन यू यूनिट, राहुल यादव , अध्यक्ष सामाजिक अध्ययन संसथान एबीवीपी यूनिट, जे एन यू, और अंकित हंस , सचिव, सामाजिक अध्ययन संसथानएबीवीपी यूनिट, जे एन यू, एबीवीपी से इस्तीफा दे रहे हैं और खुद को एबीवीपी के अगले किसी भी एक्टिविटी से अलग करते है. हम यह निर्णय निम्नांकित कारणों से ले रहे हैं.

1. जेएनयू के हालिया घटनाक्रम
2. संगठन के साथ रोहित वेमुला और मनुस्मृति जैसे मुद्दों पर लम्बे समय से असहमति

जेएनयू को टैंकों से कुचलने का सुझाव दौड़ रहा है!

-डॉ राकेश पाठक-

आइये जान लीजिये हम किस तरफ बढ़ रहे हैं। जेएनयू में कुछ अलगाववादियों  के नारों पर देश भर में उफान आया हुआ है। एक पक्ष है जो बिना किसी जाँच पड़ताल , मुकदमा अदालत , सबूत गवाही के नारे लगाने वालों की जीभ काटने , सीधे गोली मारने या फांसी पर लटका देने की मांग कर रहा है।ऐसे लोगों में उन्मादी भीड़ के साथ पूर्व मंत्री और सांसद तक शामिल हैं।सोशल मीडिया ऐसे बयानों और मांगों से अटा पड़ा है।

दीपक चौरसिया जैसे पत्रकारों के लिए भारतीय संविधान की जगह नागपुरी संविधान ने ले ली है!

दीपक चौरसिया का ‘उन्माद’ और फ़ासीवाद के ख़ूनी पंजों में बदलता मीडिया! जेएनयू में चंद सिरफिरों की नारेबाज़ी को राष्ट्रीय संकट के तौर पर पेश कर रहे न्यूज़ चैनल और अख़बार आख़िर किसका काम आसान कर रहे हैं। हर मोर्चे पर नाकाम मोदी सरकार, संकट से ख़ुद को निकालने के लिए ऐसा करे तो समझ में आता है, लेकिन संपादकों का आलोचनात्मक विवेक कहाँ चला गया ? ऐसा क्यों लग रहा है कि उन्होंने तर्क और विवेक के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ दिया है?

भिंडरावाले और गोडसे के कितने पूजने वालों को देशद्रोह में जेल भेजा!

जेएनयू प्रकरण पर कुछ सवाल हैं जो मुंह बाए जवाब मांग रहे हैं। मालूम है कि जिम्मेदार लोग जवाब नहीं देंगे, फिर भी। लेकिन उससे पहले नोट कर लें-

1. देश को बर्बाद करने की कोई भी आवाज़, कोई नारा मंजूर नहीं। जो भी गुनाहगार हो कानून उसे माकूल सजा देगा।
2. कोई माई का लाल या कोई सिरफिरा संगठन न देश के टुकड़े कर सकता है न बर्बाद कर सकता है। जो ऐसी बात भी करेगा वो यकीनन “देशद्रोही” है।
3. किसी नामाकूल से या देशभक्ति के किसी ठेकेदार से कोई सर्टिफिकेट नहीं चाहिए।
4. कोई भी किसी भी मुद्दे पर असहमत है तो ये उसका हक़ है। हां कोई भी। कोई माई का लाल असहमति को “देशद्रोह” कहता है तो ये उसकी समझ है।

विकास पाठक ने आरएसएस क्यों छोड़ा और बीबीसी ने इसे अपने यहां क्यों छापा?

विकास पाठक जेएनयू से पढ़े हैं. पत्रकार रहे हैं. इन दिनों शारदा यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफ़ेसर के रूप में कार्यरत हैं. बीबीसी संवाददाता सलमान रावी ने विकास पाठक से उनके संघ से जुड़ने से और अलग होने को लेकर विस्तार से बात की. फिर उस बातचीत को विकास पाठक की तरफ से बीबीसी की वेबसाइट पर प्रकाशित करा दिया. ऐसे दौर में जब मोदी, भाजपा और संघ को हरओर महिमामंडित करने का दौर चल पड़ा है, बीबीसी ने संघ को लेकर एक शख्स की जुड़ाव व विलगाव यात्रा को प्रकाशित कर यह साबित किया है कि चारण-भाट बनने के इस दौर में कुछ सच्चे मीडिया ग्रुप भी हैं. कम्युनिस्ट हों या संघी हों, दोनों को लेकर क्रिटिकल खबरें सामने आनी चाहिए ताकि जनता को, पाठकों को खुद फैसला करने में सहूलियत हो और उन्हें दोनों अच्छे बुरे पहलू पता रहे. नीचे बीबीसी में छपी खबर है.

-यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया


कविता कृष्णन मार्का नारीवाद : यौन उत्पीड़न की शिकार पीड़ित छात्रा अगर शिकायत करे तो मार के उसका हाथ तोड़ दो

Samar Anarya : कविता कृष्णन ने सिखाया अपने संगठन को नया नारीवाद। यौन उत्पीड़न करो और पीड़ित शिकायत करने की हिम्मत करे तो मार के उसका हाथ तोड़ दो कि फिर कोई कभी हिम्मत न करे. यही सीख लेकर आइसा नेताओं के खिलाफ यौन शोषण की शिकायत करने वाली छात्रा को आइसा कार्यकर्ताओं ने पीटा। शर्मनाक है यह. वामपंथ के नाम पर सबसे बदनुमा धब्बा। देखें खबर… http://goo.gl/yGnxtW

कथित कामरेड कविता कृष्णन : पाखंडी नारीवाद का पर्दाफाश


 

आइसा नेताओं के खिलाफ यौन शोषण की शिकायत करने वाली छात्रा को आइसा कार्यकर्ताओं ने पीटा

Samar Anarya : आइसा नेताओं के खिलाफ यौन शोषण की शिकायत करने वाली छात्रा को आइसा कार्यकर्ताओं ने पीटा? वह भी इतना कि लड़की ट्रामा सेंटर में भर्ती है. स्तब्ध हूँ इस खबर से. कोई सच बतायेगा? जागरण की वेबसाइट पर यह खबर अभी दिख रही है-

यौन शोषण का आरोप लगाने वाली जेएनयू छात्रा की पिटाई

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। देश के प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में एक छात्रा के साथ ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आइसा) के कार्यकर्ताओं द्वारा शुक्रवार देर शाम मारपीट का मामला सामने आया है। लड़की को एम्स के ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया गया है। बताया जाता है कि यह वही लड़की है, जिसने छात्र संघ पदाधिकारी अकबर चौधरी व सरफराज पर यौनशोषण का आरोप लगाया था, जिसकी जांच विश्वविद्यालय की आंतरिक समिति जेंडर सेंसटाइजेशन कमेटी अगेंस्ट सेक्सुअल हेरासमेंट में चल रही है।

आइसा के एक पदाधिकारी का कहना है कि एनएसयूआइ के कार्यकर्ताओं ने उनके कार्यकर्ता चिंटू, शहला व दो और को पीटा था। चिंटू को भी ट्रामा सेंटर ले जाया गया है। इस बीच, आइसा व एबीवीपी के कार्यकर्ता देर रात तक वसंतकुंज थाने के सामने एफआइआर के लिए डटे रहे। छात्रा के साथियों ने बताया कि जब से छात्रा ने छात्र संगठन पदाधिकारियों के ऊपर यौन शोषण का आरोप लगाया है, तभी से आइसा के कार्यकर्ता लगातार उसे परेशान कर धमकी दे रहे थे।

छेड़छाड़ करने वालों को बचाने में जुटी कविता कृष्णन की असलियत बयान की जेएनयू के सत्यप्रकाश गुप्ता ने

Satyaprakash Gupta : Please do not communalize JNU Campus for the sake of saving alleged molesters. JNU Campus is in state of turmoil because of sexual harassment of a fellow girl by JNUSU President and Joint-Secretary. Student Community is raising a series of poignant questions before AISA , a student outfit of CPI(ML),regarding molestation and this has enlivened the case of late Khurshid Anwar who was not given a chance to prove himself clean.

कविता कृष्णन और गैंग का असल सच

Samar Anarya : तरुण तेजपाल और खुर्शीद अनवर मामले में तथ्यों की, तर्क की बात करने वाले सेकुलर रेप के समर्थक थे और शिकायतकर्ता (उनके लिए ‘पीड़िता”) का बयान अंतिम सत्य – कविता कृष्णन और गैंग। अब उनकी पार्टी के अकबर चौधरी और सरफ़राज़ हामिद के ऊपर यौन हिंसा का आरोप लगने पर श्रीमती कविता कृष्णन उनके बचाव में उतर आई हैं, ‘पीड़िता’ को शिकायतकर्ता बता रही हैं, उसके दूसरी पार्टी से जुड़े होने को लेकर उसके ऊपर अनर्गल आरोप लगा रही हैं. और उनकी समर्थक ‘नारीवादियां’ इस मुद्दे को उठा देने वालों को मानहानि की धमकी दे रही हैं. जाने दो जी, तुमसे न हो पायेगा, हो पाता तो मैंने कोई सच छोड़ा है? मुझ पर कर न पाये। जाओ, अपने सेकुलर रेपिस्टों को बचाओ, उन्हें जिन्होंने यौन हिंसा के लिए इस्तीफ़ा देकर जेएनयूएसयू की शानदार परम्परा को चार (लाल?) चाँद लगा दिए हैं. ( अविनाश पांडेय समर के फेसबुक वॉल से.)

जेएनयू यौन शोषण कांड : कुछ तो है जो Kavita Krishnan गैंग छुपा रहा है…

Samar Anarya : जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष और संयुक्त सचिव पर आरोपों के बारे में कुछ खरी खरी… कल तक लोगों पर पीड़िता का चरित्रहनन करने का आरोप लगाने वाली कविता कृष्णन जैसी फर्जी टीआरपी खोर नारीवादी इस मामले में शिकायतकर्ता को दूसरी पार्टियों का सदस्य बता के उसका चरित्रहनन कर रही हैं. सच यह है कि वह लेफ्ट सर्कल्स की ही नहीं,बल्कि उनकी पार्टी आइसा की ही करीबी रही है. दूसरी बात यह कि GSCASH शिकायत लेने के पहले स्क्रीनिंग करता है और प्रथम दृष्टया सबूत होने पर ही केस स्वीकार करता है. फिर अध्यक्ष और संयुक्त सचिव को इस्तीफ़ा क्यों देना पड़ा? कुछ तो है जो कविता कृष्णन गैंग छुपा रहा है?

Kavita Krishnan

क्या आपने इस मुद्दे पर कम्युनिस्टों की सुपारी किलर Kavita Krishnan का कोई बयान सुना?

Samar Anarya : जेएनयूएसयू के अध्यक्ष और संयुक्त सचिव ने यौन हिंसा का आरोप लगने के बाद इस्तीफा दिया. मगर आपने इस मामले में जहरीले प्रोफ़ेसर आशुतोष कुमार और टीवी नारीवादी और कम्युनिस्टों की सुपारी किलर कविता कृष्णन का कोई बयान सुना? कामरेड खुर्शीद अनवर मामले में तो ये दोनों देश भर में आरोपों की सीडी का प्रदर्शन प्रायोजित और फंड कर रहे थे. इस बार ऐसी चुप्पी क्यों? इसलिए कि आरोपी इनकी पार्टी के सदस्य हैं?