Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भीड़ के डर से प्रतिबन्ध नहीं लगाया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

JP Singh

पुलिस एक स्वतंत्र समाज में सार्वजनिक नैतिकता की स्वयंभू संरक्षक नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने ममता सरकार को फिल्म निर्माता को 20 लाख का मुआवजा देने को कहा

उच्चतम न्यायालय ने एक सप्ताह में दूसरी बार अभिव्यक्ति की आजादी पर बल दिया है और कहा है कि लोकतंत्र में बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सर्वोपरि है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि भीड़ की डर से बोलने की आजादी पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है। इसी के साथ उच्चतम न्यायालय ने भूतों पर व्यंग्य करने वाली बंगाली फिल्म “भविष्येर भूत” को सिनेमाघरों में सार्वजनिक प्रदर्शनी से रोकने के चलते पश्चिम बंगाल सरकार को फ़िल्म के निर्देशक को 20लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है । उच्चतम न्यायालय ने तल्ख टिप्पणी की है कि हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह सार्वजनिक शक्ति का स्पष्ट दुरुपयोग है। पुलिस को कानून लागू करने का काम सौंपा गया है। इस मामले में पश्चिम बंगाल पुलिस अपनी वैधानिक शक्तियों से बाहर तक पहुँच गई है। पुलिस एक स्वतंत्र समाज में सार्वजनिक नैतिकता की स्वयंभू संरक्षक नहीं है। फ़िल्म रिलीज़ होने के अगले दिन सिनेमाघरों से हटाई दी गई थी।

यह फैसला देते हुए जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने निर्माता इंडिबिलिटी क्रिएटिव प्राइवेट लिमिटेड के इस तर्क से सहमति जताई कि राज्य सरकार और कोलकाता पुलिस “बंगाली फिल्म की सार्वजनिक प्रदर्शनी में पूरी तरह से गैरकानूनी अवरोध” का कारण बने हैं। उनकी शिकायत यह थी कि यह फिल्म 15 फरवरी को रिलीज होने के एक दिन के भीतर ही सिनेमाघरों से हटा ली गई थी। पीठ ने पुलिस द्वारा निर्माता को दिए गए उस पत्र का विशेष रूप से उल्लेख किया है, जिसमे उन्हें अधिकारियों द्वारा ‘मेहमानों के हित में’ स्क्रीनिंग को बंद करने के लिए निर्देशित किया गया था।

पीठ ने सवाल किया कि उन नागरिकों को क्या अधिकार है जो फिल्म का प्रदर्शन करने का एक वैध अधिकार रखते हैं जब उन्हें बताया जाता है कि एक फिल्म, जो विधिवत प्रमाणित और रिलीज के लिए तैयार है, को अनधिकृत रूप से कानून के अधिकार के बिना प्रदर्शित थिएटरों से दूर कर दिया जाता है? पीठ ने कहा कि ऐसे प्रयास कपटपूर्ण होते हैं और यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं। पीठ ने कहा कि समकालीन घटनाओं से पता चलता है कि यह एक बढ़ती हुई असहिष्णुता है। ऐसी असहिष्णुता अस्वीकार्य है जो समाज में दूसरों के अधिकारों को स्वतंत्र रूप से उनके विचारों को उजागर करने और उन्हें प्रिंट में, थिएटर में या सेल्युलाइड मीडिया में चित्रित करने से रोकती है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जो अनुच्छेद 19 की गारंटी है, सार्वभौमिक है। अनुच्छेद 19 (1) में कहा गया है कि सभी नागरिकों के पास स्वतंत्रता है, जिसे वह पहचानता है। एक सार्वजनिक प्राधिकरण के रूप में, कानून के शासन को लागू करने की अपनी क्षमता में, राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता फले फूले। पीठ ने कहा कि जब एक संगठित समूह ने थिएटर मालिकों की संपत्ति या दर्शकों को प्रभावित करने की धमकी दी तो यह सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है कि भीड़ के डर से किसी की अभिव्यक्ति पर बंदिश न लगाया जाए।

पीठ ने कहा, ” स्वतंत्र भाषण के लिए प्रतिबद्धता में भाषण की रक्षा के साथ-साथ तालमेल भी शामिल है जिसे हम सुनना नहीं चाहते। बोलने की स्वतंत्रता का संरक्षण इस विश्वास पर स्थापित किया जाता है कि भाषण तब भी बचाव के लायक होता है, जब कुछ व्यक्ति इस बात से सहमत नहीं होते हैं या यहां तक कि जो बोले जा रहे हैं उसे भी तुच्छ समझते हैं। यह सिद्धांत लोकतंत्र के मूल में है, यह एक बुनियादी मानव अधिकार है और इसका संरक्षण एक सभ्य और सहिष्णु समाज का प्रतीक है। पुलिस एक स्वतंत्र समाज में सार्वजनिक नैतिकता की स्वयंभू संरक्षक नहीं है।”

Advertisement. Scroll to continue reading.

पीठ ने राज्य को निर्माता को 20 लाख रुपये के मुआवजे के साथ- साथ 1 लाख रुपये की लागत देने का निर्देश दिया। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश पारित करके राज्य सरकार से कहा था कि वे सही तरीके से फिल्म ‘भोभिश्योतेर भूत’ की स्क्रीनिंग सुनिश्चित करें।

उच्चतम न्यायालय ने माना कि यह फिल्‍मकारों के अभिव्‍यक्ति की आजादी का उल्‍लंघन है। फिल्‍म निर्देशक अनिक दत्‍त ने कहा था कि ममता बनर्जी के निर्देश पर उनकी फिल्‍म का प्रदर्शन रोक दिया गया। उधर, सिनेमा हॉल मालिकों ने फिल्‍म को हटाने के पीछे के कारण को नहीं बताया है। उन्‍होंने बस इतना कहा है कि ऊपर से आदेश आया है। फिल्‍म के प्रदर्शन को रोके जाने का बांग्‍ला फिल्‍म इंडस्‍ट्री ने जमकर विरोध किया था। न्यायालय के आदेश के बाद अब यह फिल्‍म अब फिर से सिनेमा हॉल में प्रदर्शित हो सकेगी। इस फिल्‍म में भूतों के एक समूह के बारे में दिखाया गया है जिसमें राजनेता भी शामिल हैं। ये भूत एक शरणार्थी शिविर में इकट्ठा हैं और वर्तमान समय में प्रासंगिक होने का प्रयास कर रहे हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दरसअल पश्चिम बंगाल में भविष्येर भूत पर बिना वजह प्रतिबंध को लगाए जाने के खिलाफ न्यायालय में याचिका दायर की गई थी। गौरतलब है कि इस फिल्म में कथित तौर पर राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल काग्रेस समेत अन्य राजनीतिक पार्टियों पर कटाक्ष किया गया था। इसी वजह से पिछले महीने फिल्म रिलीज होने के एक दिन बाद इसे राज्य भर के सभी सिनेमा हॉल से हटा दिया गया था।

फिल्म निर्देशक अनिक दत्त ने दावा किया था कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के निर्देश पर ही सभी सिनेमा हॉल में उनकी फिल्म का प्रदर्शन बंद किया गया है। बाद में इसके खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि 15 फरवरी को यह फिल्म प्रदर्शित हुई थी; लेकिन 16 फरवरी के बाद इसे बिना किसी कारण के कोलकाता के सभी सिनेमा हॉलों से हटा दिया गया था।सिनेमा हॉल प्रबंधन की ओर से कहा गया था कि ऊपर से आदेश है लेकिन ऊपर से किसने आदेश दिया, यह किसी ने भी नहीं बताया था।इसके खिलाफ पूरी बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री सड़कों पर उतर गई थी, लेकिन सिनेमा हॉल वालों की हिम्मत नहीं हुई कि इस फिल्म को दोबारा प्रदर्शित कर सके। .

Advertisement. Scroll to continue reading.

वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के विशेषज्ञ जेपी सिंह की रिपोर्ट.

https://youtu.be/vfC0Rs2aN3w
Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement