सबने अच्छा काम किया, पर स्क्रिप्ट कमजोर थी। कहानी को थोड़ा और लंबा खिंचना था। दोनों मुख्य कलाकारों मुलायम और अखिलेश ने अच्छी एक्टिंग की। डायरेक्टर तथा सह कलाकार शिवपाल यादव ने भी अच्छा काम किया है फिल्म में। अमर सिंह का गेस्ट अपियरंस भी ठीक ठाक रहा। रामगोपाल यादव और अच्छा कर सकते थे, पर उन्हें ज्यादा मौका नहीं मिला। आजम खान का छोटा पर असरदार रोल था।
जूनियर आर्टीस्ट (सपा समर्थकों) ने भी भरपूर साथ दिया। वैसे जूनियर आर्टिस्टों का ज्यादा कुछ काम रहता नहीं है, वह सिर्फ पीछे खड़े हो कर, जैसे आगे वाला नाचता है वैसे नाचते हैं। बढ़िया नाचे.. एकाध बेचारे झुलस कर सचमुच का आत्मदाह भी कर डाले… फिल्म पूरी तरह नायक प्रधान थी तो हिरोइन डिंपल भौजी के करने लायक कुछ था नहीं। पाँच साल यूपी को बर्बाद कर अपने बेटे को भ्रष्टाचार तथा जातिवादी राजनीति से उपर उठा कर… उसकी अब तक की नाकामी और अकललेस वाली असलीयत को बदलकर उसे एक मजबूत नेता के रूप में प्रस्तुत करके, फिर एक बार यूपी के विकास के लिये तरस रही जनता के ऊपर मुख्यमंत्री बना कर थोपने की कहानी दर्शाती हुई फिल्म है- ‘समाजवाद के लंहगा में परिवारवाद’।
यह वन-टाइम वॉच मूवी थी। ऐसी फिल्में पहले भी बनी है। समझदार दर्शक इस फिल्म को नकार देंगे। ऐसी स्थिति में इस फिल्म की सफलता इस पर टिकी है कि कितने मानसिक दिव्यांग दर्शक इस झोल वाली (कमजोर) फिल्म को देखते हैं। फिल्म में कलाकार कितनी भी अच्छी एक्टिंग कर ले पर… मजबूत स्टोरी ही फिल्म की जान होती है। कमजोर कहानी तथा वही पुराना घिसापिटा क्लाइमेक्स शायद ही इस फिल्म को फ्लॉप होने से बचा पाये।
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एक थे लोहियाजी जिन्होने अहंकारी इन्दिरा का दिमाग ठिकाने लगा दिया था। दूसरे हैं उनके चेले (तथाकथित समाजवादी) जो अहंकारी कांग्रेसियों से ठगबंधन करने के लिए लालायित हैं। राममनोहर लोहिया जी भाड़े की ‘टैक्सी’ से संसद भवन में घुसे। ड्राइवर सरदार था। तभी सामने सायरन बजाती पायलट कार आई और लोहिया की टैक्सी को हटने का इशारा किया! सरदार ने गाड़ी रोक दी, लोहिया जी बोल उठे – क्या हुआ गाडी क्यों रोक दी?
सरदार ड्राइवर ने कहा, सामने से इंदिरा जी का काफिला आ रहा है। लोहिया जी ने कहा– गाड़ी को बीच में रखो और चलते रहो. इंदिरा गाँधी का पूरा काफिला रुक गया, इंदिरा ने पूछा क्या हुआ? पुलिस वालो ने बताया, लोहिया टैक्सी में है, रास्ता रोक दिया है। इंदिरा ने कहा- पहले उन्हें जाने दो. फिर लोहिया अंदर चले गए. सुरक्षा में लगे पुलिस अधिकारी के हुक्म से संसद भवन से बाहर आते ही सरदार ड्राइवर को गिरफ्तार कर लिया गया.
शाम को सरदारनी बदहवास चीखती हुयी लोहिया आवास में घुसी और उन्हें अपने पति की गिरफ्तारी की बात बताई. लोहिया जी तुरंत थाने पहुंचे और पूछा किसकी हिम्मत हुयी सरदार को गिरफ्तार करने की? उन्होंने तुरंत थाने से गृह मंत्रालय में फोन लगाया और निडरता पूर्वक बोले– नेहरू की बेटी को बोल देना कल संसद में मैं सरकार की ऐसी दुर्गति बनाऊँगा पूरा देश देखेगा। पांच मिनट में PM हाउस से फोन आ गया। सरदार ड्राइवर को तुरंत रिहा कर दिया गया. दूसरे दिन गुस्साये लोहिया कुछ बोलने के लिए खड़े होते, इंदिरा ने कहा कल की घटना के लिए मैं आपसे माफ़ी मांगती हूँ. मैंने अपने सुरक्षा में लगे सब बड़े अधिकारियों को कल ही निलंबित क़र दिया है. लोहिया शांत हो गए. ऐसे थे लोहिया जी जो एक अदना से टैक्सी ड्राइवर के लिए इंदिरा गाँधी को भी झुका देते थे. और, एक ये (परिवार वाद के वाहक) तथाकथित लोहियावादी बाप-बेटा हैं जो सत्ता पाने के चक्कर में इससे उससे सबसे गठजोड़ करते जा रहे हैं.
Dushyant sahu
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