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सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखा रहा है राजस्थान का श्रम आयुक्त कार्यालय

भास्कर प्रबंधन के दबाव में श्रम आयुक्त कार्यालय ने दी श्रम अदालत में जाने की सलाह

माननीय सुप्रीमकोर्ट ने साफ आदेश दिया है कि 11 नवम्बर 2011 से मजीठिया वेज बोर्ड को अमल में लाया जाए। इसके लिए भारत सरकार द्वारा गजट भी जारी किया गया है। मजीठिया वेज बोर्ड का पालन कराना राज्य के श्रम आयुक्तों का काम है मगर लगता है राजस्थान के श्रम आयुक्त कार्यालय का माई बाप दैनिक भास्कर प्रबंधन हो गया है। श्रम विभाग, राजस्थान आँख बंद करके सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर रहा हे। मीडिया मालिक और श्रम विभाग दोनों में कोई अंतर नहीं है, ऐसा साफ लग रहा है।

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भास्कर प्रबंधन के दबाव में श्रम आयुक्त कार्यालय ने दी श्रम अदालत में जाने की सलाह

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माननीय सुप्रीमकोर्ट ने साफ आदेश दिया है कि 11 नवम्बर 2011 से मजीठिया वेज बोर्ड को अमल में लाया जाए। इसके लिए भारत सरकार द्वारा गजट भी जारी किया गया है। मजीठिया वेज बोर्ड का पालन कराना राज्य के श्रम आयुक्तों का काम है मगर लगता है राजस्थान के श्रम आयुक्त कार्यालय का माई बाप दैनिक भास्कर प्रबंधन हो गया है। श्रम विभाग, राजस्थान आँख बंद करके सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर रहा हे। मीडिया मालिक और श्रम विभाग दोनों में कोई अंतर नहीं है, ऐसा साफ लग रहा है।

श्रम विभाग राजस्थान ने पिछले दिनों एक पत्र की प्रतिलिपि कोटा के दैनिक भास्कर कर्मियों को भेजी है और उसकी मूल कॉपी लेबर कोर्ट को भेजी है। इसमें सबसे बड़ा विवाद का बिंदु ये है कि इनकी सूची में 90% कर्मियों का टर्मिनेशन 10-2-2015 को बताया गया है जो विधि के विरुद्ध है। कोटा (राजस्थान) के दैनिक भास्कर के मीडिया कर्मी अलोक शहर ने 10 फरवरी 2015 को लिखित में दैनिक भास्कर के खिलाफ एक शिकायत पत्र श्रम आयुक्त कार्यालय कोटा को भेजा था कि मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ मांगने पर कंपनी प्रबंधन ने उनको मौखिक रूप से काम से निकाल दिया है। उसके बाद आलोक जी का विवाद श्रम विभाग कोटा में चला।

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बताते हैं कि 3-4 बार समझौता वार्ता हुई और श्रम विभाग कोटा को समझौता वार्ता में दिए अपने लिखित जवाब में खुद भास्कर ने कहा है कि सिर्फ 7 लोगों को “loss of confidence” के कारण टर्मिनेट किया गया है, बाकी निलंबित चल रहे हैं और उन्हें शीघ्र निलंबन पीरियड का अलाउंस भी दिया जाएगा। भास्कर ने आलोक को बहुत सारे पत्र भी भेजे। जैसे शो कॉज नोटिस, ब्लैंक लेटर, डोमेस्टिक इनक्वायरी में जाने के लिये बाध्यकारी लेटर इत्यदि। भास्कर ने टर्मिनेट तो 5 नवंबर 2015 को किया है। इसके सारे पेपर श्रम विभाग कोटा में जमा है।

बड़ा विरोधाभास ये है कि जिस श्रम विभाग में आलोक जी और प्रबन्धन के बीच समझौता वार्ता 5 नवम्बर तक चली वही श्रम विभाग आलोक को अपने श्रम न्यायालय में भेजे गए पत्र में टर्मिनेशन  दिनांक 10-2-2015 प्रदर्शित कर रहा है। श्रम विभाग इस तरह की कार्यवाही कर देश के श्रमिकों को संदेश दे रहा है कि वो कर्मचारी का नहीं बल्कि मालिक का पक्षधर है। अब देखना है कि माननीय सुप्रिमकोर्ट ऐसे भ्रष्ट श्रम अधिकारियों को कब चाबुक मारता है।

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शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्टिविस्ट
9322411335

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