मीडिया का दायरा बहुत बड़ा हो गया है. सो-काल्ड मेनस्ट्रीम मीडिया की कायदे से क्लास सोशल मीडिया वाले लेने लगे हैं. हर व्यक्ति, वो चाहे पत्रकार हो या आम नागरिक, अब सोशल मीडिया का हिस्सा है. वह वहां पर अपने विचार, क्रिया-कलाप के लिए स्वतंत्र है.
बड़े अखबारों और बड़े न्यूज चैनलों में काम करने वाले नौकर पत्रकारों के लिए उनके आकाओं ने आचार संहिताओं का निर्माण कर दिया है कि वे सोशल मीडिया पर क्या करें, क्या न करें.
आचार संहिता के माध्यम से इन नौकर पत्रकारों को इतनी तरह से कस दिया गया है कि वे बेचारे अपनी कंपनी की वाह वाह करने, अपने मीडिया हाउस की खबरों को शेयर पोस्ट लाइक कमेंट करने के सिवाय कुछ न कर सकेंगे.
इन नौकर पत्रकारों के हाथ मुंह दिल दिमाग कितने कायदे से प्यारे प्यारे शब्दों के जरिए बांध दिए गए हैं, उसे देखिए-पढ़िए. हां, इन नौकर पत्रकारों से ये जरूर अपेक्षा की गई है कि वे अगर कुछ नया सोच लें तो तुरंत कंपनी को बताएं क्योंकि उस पर पहला हक कंपनी का है… मतलब कंपनी इन्हें अपना स्थायी गुलाम मानती है… पहले के जमाने में शारीरिक गुलामी कराई जाती थी, आज के जमाने में शारीरिक और मानसिक दोनों.
देखें अमर उजाला की आचार संहिता के पांच पन्ने-
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