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उत्तराखंड

विजय त्रिपाठी के वक्त में टेंशन के लिए तरसता रहा न्यूज रूम

Vivek Singh : देहरादून से विजय त्रिपाठी कानपुर चले गए और उनकी जगह कानपुर से हरीशचंद्र सिंह आ गए। विजय त्रिपाठी मेन स्ट्रीम मीडिया में मेरे पहले बॉस रहे पर मैं इंतजार ही करता रह गया कि कभी मुझसे बॉस की तरह पेश आएंगे। मुझसे क्या, वह किसी से भी कभी बॉस (जैसी बॉस की पारंपरिक छवि है) की तरह पेश आएं हों, याद नहीं आता। 

Vivek Singh : देहरादून से विजय त्रिपाठी कानपुर चले गए और उनकी जगह कानपुर से हरीशचंद्र सिंह आ गए। विजय त्रिपाठी मेन स्ट्रीम मीडिया में मेरे पहले बॉस रहे पर मैं इंतजार ही करता रह गया कि कभी मुझसे बॉस की तरह पेश आएंगे। मुझसे क्या, वह किसी से भी कभी बॉस (जैसी बॉस की पारंपरिक छवि है) की तरह पेश आएं हों, याद नहीं आता। 

उनके साथ डेढ़ साल से ज्यादा काम किया पर न्यूज रूम के तनाव भरे माहौल में उनकी कभी ऊंची आवाज नहीं सुनाई दी। सच कहूं तो कभी-कभी मैं खुद सोचता था कि कभी तो थोड़ा न्यूज रूम में टेंशन हो, कुछ तो हलचल हो पर नहीं हुई। पहली बार देहरादून आया था तो इस शहर में सबसे पहले मिलने वाले सर ही थे। फिर रोज मिलता रहा, सीखता रहा। न्यूज रूम में कोई दिक्कत होती, सीधा उनके केबिन में घुस जाता, बिना फिक्र किए। सबसे नया होने के बावजूद। 

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ऐसी बहुत सी बातें-यादें कहने को हैं पर नहीं कहूंगा। अलविदा भी नहीं कहूंगा क्योंकि ऐसा तो तब कहते हैं जब दूर जा रहे हों। आप नई जगह जा रहे हैं दूर नहीं तो अलविदा कैसा। ढेरों शुभकामनाएं सर लेकिन गुडबॉय नहीं। फिर-फिर मिलेंगे क्योंकि अभी आपके साथ काम करना और सीखना पूरा नहीं हो पाया। 

अमर उजाला देहरादून में कार्यरत युवा पत्रकार विवेक सिंह के एफबी वाल से

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